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राजा महमूदाबाद के बेटे नहीं रहे

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

राजा महमूदाबाद अमीर मोहम्मद खान का मंगलवार देर रात निधन हो गया. पारिवारिक सूत्रों ने बताया कि अवध के प्रसिद्ध शाही परिवार के 80 वर्षीय वंशज कुछ समय से बीमार थे.उनके निधन पर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव समेत कई हस्तियों ने दुख जताया है. उन्हें बुधवार शाम 4 बजे कर्बला महमूदाबाद में सुपुर्द-ए-खाक कर दिया गया.

राजा महमूदाबाद शत्रु संपत्ति अध्यादेश 2016 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने के लिए सुर्खियों में थे. कहा जाता है कि यह एक ऐसा मामला है जिसमें भाजपा और कांग्रेस के कुछ प्रमुख राजनेताओं ने उनकी अकूत संपत्ति छीनने के लिए हाथ मिला लिया था.

मोदी सरकार ने पाकिस्तान चले गए संपत्ति मालिकों के उत्तराधिकारियों से जमीन कब्जाने के लिए 2016 में एक विवादास्पद अध्यादेश को पुनर्जीवित किया, जिसके मुख्य शिकार महमूदाबाद के राजा थे. उनके पिता अमीर अहमद खान, जिन्हें राजा महमूदाबाद के नाम से भी जाना जाता है, कराची चले गए थे. कायदे आजम मोहम्मद अली जिन्ना के सहयोगी रहे उनके बेटे कभी उनके साथ नहीं गए.

सुप्रीम कोर्ट ने अब दिवंगत हो चुके राजा महमूदाबाद, सुलेमान मियां की विशाल संपत्तियां बहाल कर दी हैं, लेकिन तत्कालीन कांग्रेस गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने फैसले को नकारने के लिए एक अध्यादेश जारी किया था. चिदम्बरम पहले राजा के दावे का विरोध करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में एक वकील के रूप में उपस्थित हुए थे. पाकिस्तान के अखबार डान की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कथित तौर पर उन्होंने एक मंत्री के रूप में अदालत के फैसले को कमजोर करने के लिए एक वकील के रूप में अपनी विशेषाधिकार प्राप्त अंतर्दृष्टि का उपयोग किया.

भाजपा द्वारा लाया गया दूसरा अध्यादेश पिछले अध्यादेश का ही एक रूप है. हालांकि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी उस समय खुश नहीं थे जब इसे दोबारा लागू करने के लिए कैबिनेट के परामर्श के बिना उनके पास भेजा गया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कथित तौर पर राष्ट्रपति को अध्यादेश भेजने के लिए व्यापार और लेनदेन के नियम 12 का इस्तेमाल किया, जो शत्रु संपत्ति अधिनियम में संशोधन करता है और 48 साल पुराने कानून में स्थानांतरित हुए लोगों द्वारा संपत्तियों के उत्तराधिकार या हस्तांतरण के दावों से रक्षा करता है.

मुखर्जी ने उस कानून में संशोधन के लिए चैथी बार अध्यादेश या कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए, जिसे सरकार संसद में पारित करने में असमर्थ रही है. लेकिन रिपोर्टों में कहा गया है कि वह इस बात से नाराज थे कि इस बार इसे केंद्रीय मंत्रिमंडल के माध्यम से पारित किए बिना उनके पास भेजा गया था. इस कदम से राजा का दिल टूट गया. कहते हैं उन्हें सांप्रदायिक रूप से ध्रुवीकृत उत्तर प्रदेश में कई तरह की परेशानियां झेलनी पड़ी थीं.