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राकेश टिकैत ने किसानों को किया अगाह, विधानसभा चुनाव में हिंदू,मुसलमान, जिन्ना की बयानबाजी में न फंसें

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, अलीगढ़
विधानसभा चुनाव में जमीन खिसकता देख पार्टियों ने हिंदू-मुसलमान, पाकिस्तान और पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्न को लेकर बयानबाजी शुरू कर दी है. प्रयास है कि वोटों का ध्रुवीकरण कर इसे अपने हक में किया जा सके. ऐसी पार्टियों से किसानों को किसान नेता राकेश टिकैत ने अगाह किया है.

भारतीय किसान संघ के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि राज्य में हिंदू-मुसलमान और जिन्ना पर बयानबाजी को राज्य विधानसभा चुनाव तक ही जीवित रखा जाएगा. उन्होंने अपने समर्थकों और किसानों को आगाह किया कि ऐसे विभाजनकारी बयानों से प्रभावित न हों. यह केवल राजनीतिक लाभ के लिए है.टिकैत ने अलीगढ़ में मीडिया से बात करते हुए कहा कि ‘प्रचार‘ महज ढाई महीने का है.

उन्होंने कहा कि लोगों को सरकारी मंच के नेताओं द्वारा दिए जा रहे बयानों से सावधान रहना चाहिए. हालांकि मैं भविष्यवाणी नहीं कर सकता कि कौन सी पार्टी अगली सरकार बनाएगी, लेकिन लोग निश्चित रूप से ऐसे लोगों को वोट नहीं देंगे.राकेश टिकैत का बयान उनके भाई और बीकेयू प्रमुख नरेश टिकैत द्वारा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अपने समर्थकों से समाजवादी पार्टी-राष्ट्रीय लोक दल गठबंधन की जीत सुनिश्चित करने की अपील करने के कुछ दिनों बाद आया है.

हालांकि, बाद में उन्होंने अपना बयान वापस ले लिया. कहा कि सार्वजनिक रूप से इस तरह का बयान देकर उन्होंने गलती की है.

टिकैत ने कहा कि किसान सरकार से निराश हैं, क्योंकि उन्हें अपनी फसल को आधी कीमत पर बेचने के लिए मजबूर किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि वे आगामी विधानसभा चुनावों में अपनी पसंद के महत्व के बारे में पूरी तरह से जागरूक हैं और उन्हें किसी प्रोत्साहन की आवश्यकता नहीं है.

उन्होंने कहा,‘‘सरकार के तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन के समय दिल्ली में 13 महीने का प्रशिक्षण उनके लिए यह तय करने के लिए पर्याप्त था कि उन्हें क्या करना है. 31 जनवरी को एक विशाल किसान विरोध निर्धारित है क्योंकि न्यूनतम समर्थन पर समिति कीमत अभी केंद्र द्वारा तय नहीं की गई है. जिस देश में राजनीतिक नेता जाति और धर्म के नाम पर वोट मांगते हैं, वह देश कभी आगे नहीं बढ़ सकता है.‘‘

उल्लेखनीय है कि किसान संगठनों ने केंद्र की तीन कृषि कानून को लेकर करीब नौ महीने तक आंदोलन किया था. इस दौरान करीब 800 किसानों की मौत हुई थी और बड़ी संख्या में आंदोलनकारी किसानों को जेल में डाल दिया गया था. आज भी उनमें से कई जेल में समय काट रहे हैं. किसानों के लंबे आदोलन के बावजूद अभी तक केंद्र ने निर्धारित मूल्य को लेकर कानून नहीं बताया है.