Politics

Ram Mandir Bhoomi Pujan भारतीय मीडिया का रामधुन

स्टूडियो को भी राम मंदिर में बदल दिया गया। खुद को तठस्थ बताने वाला ND TV भी इस रंग में रंगा दिखा

एनडी टीवी इंडिया के सीनियर जर्नलिस्ट हैं अखिलेश शर्मा। उन्होंने अपने ट्वीटर हैंडल पर लिखा है,‘‘आज न्यूज़ चैनलों एवं धार्मिक चैनलों का अंतर मिट गया।’’ अयोध्या के प्रस्तावित राम मंदिर भूमिपूजन को लेकर भारतीय मीडिया जगत का जैसा रवैया रहा, शर्मा की यह पंक्ति हकीक़त को उधेड़ने वाली है। पिछले एक सप्ताह से मीडिया को ‘भूमिपूजन’ के नाम का जैसे हिस्ट्रियाई दौरा पड़ा हुआ है। इसके सिवाए उसे कुछ और नहीं सूझ रहा। पाठक-दर्शक कोई एक कौम से नहीं होते। सभी वर्गों-धर्मों के लोगों की अपनी भावना और रूचित होती है। इसे जानने-समझने के लिए ही वे मीडिया पर पैसे खर्चते हैं। मगर मीडिया घराना ज़बरदस्ती अपनी मनमर्जी थोपने पर तुला है। अभी कोरोना के बढ़ते मामले, उससे होने वाली 40 हजार मौतें, बाढ़ से तबाही देश के चिंता का कारण बने हुए हैं। मुंबई सहित देश के कई शहर बारिश के पानी में डूबे हैं। मगर एक सप्ताह से इन खबरों को अहमित नहीं दी जा रही। न्यूज चैनल्स की निष्पक्षता ताक पर रखकर हर कोई भूमिपूजन ही दिखा व पढ़ा रहा है। स्टूडियो को भी राम मंदिर में बदल दिया गया। खुद को तठस्थ बताने वाला एनडी टीवी भी इस रंग में रंगा दिखा। धार्मिक चैनल की तरह इसने भी अपने स्टूडियो ग्राफिक्स के जरिया राम मंदिर में बदल लिए। किसी चैनल से मुकाबला नहीं करने की बात करने वाले इस चैनल ने भूमिपून कार्यक्रम की कवरेज के लिए अपने तीन सीनियर रिपोर्टर अयोध्या में लगाए थे। हद यह कि चैनल के सीनियर जर्नलिस्ट संकेत उपाध्याय अयोध्या के रेलवे स्टेशन और हवाई पट्टी जैसी निम्न दर्जे की रिपोर्टिंग करते दिखे। ज्यादा जोगी, मठ उजाड़ में यही होता है। दूसरे न्यूज़ चैनल अयोध्या, राम मंदिर और भूमिपूजन के नाम पर इससे भी कई हाथ आगे निकल गए। आज तक की तमाम महिला पत्रकार विशेष वस्त्रों में सजी-धजी नजर आईं। मानों वह अयोध्या रिपोर्टिंग करने नहीं, रामल्ला के दर्शन को गई हैं। बरखा दत भी पीछे नहीं रहीं। उन्होंने अपने सोशल मीडिया न्यूज़ चैलल के लिए एक ऐसे बीमार मुसलमान को खोज निकाला जो चाहकर भी भूमिपूजन कार्यक्रम में शामिल नहीं हो पाया। टाइम्स नाउ जैसा बड़ा अंग्रेजी चैनल अयोध्या पर एक रॉयल फैमिली के सदस्य की जुबानी कहानी सुनाता दिखा।

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यहां तक पहुंचने के चक्कर में देश ने न जाने कितने शहरों में गुजरात, बुंबई, अलीगढ., मुरादाबाद जैसे सांप्रदायिक दंगे देखे हैं

  इसमें शक नहीं कि मर्यादा पुरूषोत्तम भारत के प्रतीक हैं। हिंदू मतावलंबियों में उनके प्रति अगाध प्रेम, आदर और भक्ति भावना है। वे भगवान राम को अपनी प्रेरणा पुरूष मानते हैं। अन्य धर्मावलंबी भी उन्हें श्रद्धा देते हैं। अल्लामा इकबाल जैसे शायर ने उन्हें ‘इमाम-ए-हिंद’ बताया था। इसके बावजूद इस हकीक़त से किसी को इनकार नहीं कि जिस जगह राम मंदिर का निर्माण होने जा रहा है, वहां कभी बाबरी मस्जिद थी। इरफान जफर ट्वीट करते हैं,‘‘ कोई कितना भी कट्टर हो मंदिर में दाखिल होगा तो एक बार मस्जिद जरूर याद आएगी।’’ लंबे विवाद के बाद सुप्रीम कोर्ट ने हिंदुओं के पक्ष में फैसला सुनाते हुए जमीन का मालिकाना हक उन्हें सौंपा है। बावजूद इसके यहां तक पहुंचने के चक्कर में देश ने न जाने कितने शहरों में गुजरात, बुंबई, अलीगढ., मुरादाबाद जैसे सांप्रदायिक दंगे देखे हैं। मुंबई ब्लॉस्ट कांड हुआ। अरबों रूपये की सरकारी और गैर सरकारी संपित्तयां खाक हो गईं। इस दौरान पगलाई भीड़ मस्जिद पर चढ़ बैठी और उसे ध्वस्त कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने रामलाल के पक्ष में फैसला सुनाते हुए मस्जिद ढहाने की घटना को आपराधिक कृत बताया है। इस मामले में सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी के बुजुर्ग नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती सहित कई लोग आरोपी हैं। यह मुकदमा अभी भी अदालत में लंबित है। मगर भूमिपूजन पर कई दिनों से ख़बरें दिखाने वाले न्यूज़ चैनल्स इन बातों को बिसरा गए। इस बारे में देश का मुसलमान क्या सोचता है ? इस अहम सवाल को भी तरजीह देना जरूरी नहीं समझा गया। जिम्मेदार एवं निष्पक्ष मीडिया से दर्शक यह उम्मीद तो कर ही सकते है! वॉशिंगटन पोस्ट और टाइम जैसे विदेशी पत्र-पत्रिकाओं के लिए पत्रकारिता करने वाली राणा अयूब ट्वीट कर कहती हैं कि देश के एक भी मीडिया चैनल ने भूमिपूंजा के दिन बाबरी मस्जिद आंदोलन में मारे गए हजारों लोगों और मस्जिद गिराने की घटना पर रिपोर्ट दिखाने की हिम्मत नहीं दिखाई। यहां तक कि कांग्रेस समर्थित न्यूज पोर्टल भी भूमिपूजन पर लाइव स्टोरी कर रहा था। कांग्रेस के दो पूर्व प्रधानमंत्रियोें राजीव गांधी एवं पीवी नरसिम्हा राव पर विवादास्पद फैसले के जरिए बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि आंदोलन को खाद-पानी देने का आरोप है। आज भी इसके नेताओं का रवैया नहीं बदला है। केरल के मुख्यमंत्री कहते हैं कि राहुल और प्रियंका भी उसी रास्ते पर हैं।  


सोशल मीडिया पर चलने वाले सवालों पर बात करना किसी मीडिया घराने ने जरूरी नहीं समझा

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बहरहाल, अयोध्या में भूमिपूजन से कुछ घंटा पहले लेबनान के बैरूत में 250 किलोमीटर तक सुनाई देने वाले धमाके में सैकड़ों इमारतें मटियामेट हो गई थीं तथा सौ से अधिक लोग मारे गए थे। मगर ‘रामधुन’ में मस्त न्यूज चैनल इस खबर को भी खा गए। किसी ने दिखाया भी तो मात्र एक पंक्ति में। पीके मेहता ट्वीट करते हैं,‘‘आज देश की प्राथमिकता होनी चाहिए कोरोना, बेरोजगारी, आर्थिक मंदी, छोटे-मंछोले उद्योग। मगर पीएम का पूरा ध्यान मंदिर पर है। इसी तरह नेहा लिखती हैं, ‘‘ बात मंदिर या मस्जिद की नहीं। बात हक की, कानून की है। वरना सबको पता है कि अयोध्या रामजी की जन्मभूमि है, मंदिर कभी भी बन जाता। मगर मस्जिद तोड़ी क्यों ? भूमिपूजन के दिन ट्वीटर पर चलने वाले इन सवालों पर बात करना किसी मीडिया घराने ने जरूरी नहीं समझा। जबकि अमिताभ बच्चन के कोरोना पीड़ित होकर अस्पताल में भर्ती होने पर कौन क्या ट्वीट कर रहा है, इसे चैनल पर लाइव दिखाया जाता है। सलमान जफर ट्वीटर पर लिखते हैं,‘‘ मीडिया वालों… कोराना और बाढ़ ने तबाही मचा रखी है। जरा भी शर्म, हया बची है जो डूबते, मरते, तबाह होते इंसानों की खबरें दिखाओ।’’ लोगों को मीडिया से ऐसी गुहार तब लगानी पड़ रही है जब कि अभी केवल भूमिपूजन हुआ है। मंदिर के उदघाटन के मौके पर पता नहीं क्या होगा ? सेवानिवृत आईपीएस अब्दुर रहमान सलाह देते हैं कि सभी के लिए नेशन फर्स्ट होना चाहिए।  

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संपादक