रामनवमी हिंसा: अमित शाह और मौलाना मदनी टीम की मुलाकात किसी सियासी रणनीति का हिस्सा तो नहीं
मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली
चर्चित शेर है-सब कुछ लुटा के होश में आए तो क्या हुआ ! कुछ ऐसा ही मामला बुधवार को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और जमीयत उलेमा ए हिंद के सदर मौलाना मदनी और मुस्लिम बुद्धिजीवियों के मुलाकात का है. हिंसक और कट्टरवादी प्रवृति के लोग रामनवमी जुलूम के नाम पर जब देश के कई स्थानों पर उतपात मचा गए और इन घटनाओं को लेकर दुनिया भर में भारत की किरकिरी हो रही है तो अब ये इसके रोक-थाम पर बात कर रहे हैं. यही नहीं, बातचीत का जो लुब्बोलुबाब सामने आया है, उससे लगता है कि घटना पर चिंता जाहिर करने से कहीं अधिक सियासी खिचड़ी पकाने के लिए सभी इकट्ठे हुए थे.
पिछले दो-तीन सालों में भारत में जिस तरह वोट बैंक की खातिर सांप्रदायिकता को उभारा गया है, उससे देश खतरनाक मोड़ पर आ गया है. लोग गोकशी के नाम पर इंसानों को जिंदा जला दे रहे हैं और ऐसे आरोपियों को बचाने के लिए खुलेआम पंचायतें की जा रही हैं और जुलूस निकाल कर धमकी दी जा रही है. बावजूद इसके कार्रवाई इसलिए नहीं की जाती कि एक बड़ा वोट बैंक नाराज हो गया तो सत्ता में वापसी असंभव है.
इसका परिणाम यह है कि देश को हिंदू-मुसलमान की आग में झोंकर अपना उल्लू सीधा करने वालों ने इसे ही अमीर और ख्याति प्राप्त करने का अहम जरिया मान लिया है. बिहार शरीफ में रामनवमी के जुलूस के नाम पर इलेक्ट्रोनिक के शोरूम से छह करोड़ रूपये से अधिक के सामान लूट लिए गए और एक 110 साल के मदरसे को इस लिए बेरहमी से फूंक दिया गया कि कोई निशानी बाकी न रहे.
ऐसी घटनाएं रोकने के लिए ठोस उपाय करने की बजाए राजनीति चमकाने और समाज में सुरखुरू बनने लिए कहीं गंगा-जमुनी तहजीब को बढ़ाने के नाम पर जलसे-जुलूस के ढोंग किए जा रहे हैं तो कोई मस्जिद-मदरसे में जाकर फोटो खिंचवाकर बांट रहा है ताकि उसे मान लिया जाए कि वह देश-समाजहितैषी है. यदि ये हितैषी होते तो क्या दंगे होते ? सरेआम किसी समुदाय विशेष को गाली देने की घटनाएं होतीं ? ऐसे लोगों पर अनेक मुकदमे दर्ज हैं. इसके बावजूद वे खुला घूम रहे हैं. आखिर किसी की शह पर ? इनके मकान क्यों नहीं बुल्डोजर से ढहाए जाते ?
यदि देश का खुफिया तंत्र इतना ही मजबूत है. रामनवमी के नाम पर साजिश रचने वालों को पहले क्यों नहीं दबोचा गया ? असम और बिहार में अलकायदा के जाल बिछाने की जानकारी तो मिल जाती है, पर 110 साल पुराने मदरसे में आगे लगाने की तैयारी चल रही है, खुफिया तंत्र को कैसे पता नहीं चला ? इसमें किसी की जवाबदेही बनती है ? ऐसे लेागों पर कार्रवाई कर इस जानकारी को सार्वजनिक की जानी चाहिए ताकि दूसरे लापरवाह अधिकारियों को सबक मिल सके.
दंगा फसाद से पहले और इसके बाद कार्रवाई नहीं किए जाने के कारण ही इस्लामिक देशों के संगठन को भारत की आलोचना करने का एक और मौका मिल गया है. यदि कार्रवाई पहले होती तो क्या उसे बोलने का मौका मिलता ? उक्त संगठन के बयान के जवाब में आप चाहे जो भी दलीलें दे लें, सवाल तो अपनी जगह कायम ही रहेगा.
75 इस्लामिक देशों के संगठन ओआईसी ने रामनवमी पर भारत में हुई हिंसा पर उठाए सवाल
— چاندنی 🤍 (@chandnii__) April 4, 2023
भारतीय मुसलमानों की तरफ से जो ट्रेंड चलाया था ये उसका रिएक्शन है , देखो ये होती है एकता की ताकत , @OIC_OCI का स्टेटमेंट आना छोटी बात नही है #RebuildMadarsaAzizia pic.twitter.com/qxzPMKcjf2
इन तमाम विवादों और सवालों के बीच मुस्लिम धर्मगुरुओं और बुद्धिजीवियों के एक 16 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी के नेतृत्व में मंगलवार देर शाम गृह मंत्री अमित शाह से उनके आवास पर मुलाकात की और उनके सामने देश में हो रहे सांप्रदायिक दंगों, नफरती अभियान, इस्लामोफोबिया, मॉब लिंचिंग, समान नागरिक संहिता, मदरसों की स्वायत्तता, कर्नाटक में मुस्लिम आरक्षण, कश्मीर की वर्तमान स्थिति, असम में जबरन बेदखली और वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा जैसे मुद्दों को लिखित रूप में प्रस्तुत किया.
मगर एक घंटे से अधिक समय तक चली बैठक मंे मौलाना ने उपरोक्त सावालों को लेकर गृहमंत्री से कोई बात नहीं की. मौलाना की ओर से मुलाकात को लेकर जो बयान जारी किया गया है, उससे तो यही लगता है. मौलाना और उनके साथ जाने वाले प्रतिनिधिमंडल ने पुराने ही गीत गाए. मौलाना मदनी को शायाद याद नहीं कि उन्हांेने ऐसे मुददे कितनी बार उठाए और उनका क्या बना ? ताजा घटनाएं तो लिटमस टेस्ट है. इसपर खुलकर बात करते और फिर देखते कार्रवाई किस हद तक हुई है.
बहरहाल, इन सब से इतर इस बैठक में मौलाना कलीम सिद्दीकी और उमर गौतम की जमानत का मुद्दा भी उठाया गया. मगर मौजूद संकट पर जितना जोर देना था. इन घटनाओं की एनआईए से जांच की मांग करनी चाहिए थी, नहीं की गई.
बातचीत के आरंभ में जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि देश के दूसरे सबसे बड़े बहुसंख्यक वर्ग को निराशा के अंधेरे में धकेलने का प्रयास किया जा रहा है और नफरत एवं संप्रदायिकता की खुलेआम अभिव्यक्ति द्वारा देश के वातावरण को दूषित करने का हर संभव प्रयास किया जा रहा है. इसके कारण आर्थिक और व्यावसायिक हानि होने के अलावा देश की अच्छी छवि भी धूमिल हो रही है. इन परिस्थितियों में हम आपसे यह आशा करते हैं कि इसके समाधान के लिए आप तत्काल कदम उठाएंगे.
गृह मंत्री ने प्रतिनिधिमंडल द्वारा प्रस्तुत की गई मांगों को ध्यान से पढ़ा और देश की सांप्रदायिक स्थिति पर कहा कि इस बार रामनवमी त्योहार के अवसर पर जो धार्मिक तनाव और हिंसा हुई है, उससे हम भी चिंतित हैं. जिन राज्यों में हमारी सरकारें नहीं हैं, वहां हमने राज्यपाल या मुख्यमंत्री के जरिए इसे नियंत्रित करने की कोशिश की है और जहां हमारी सरकारें हैं, वहां जो भी घटनाएं हुई हैं, जांच के बाद दोषियों विरुद्ध कठोर कार्रवाई की जाएगी.
गृह मंत्री ने मॉब लिंचिंग की घटनाओं के संबंध में कहा कि मॉब लिंचिंग की घटनाएं देश के किसी भी हिस्से में हुई हों, हमें यह देखने की जरूरत है कि हत्या की स्थिति में क्या धारा 302 के तहत हत्या का मामला दर्ज हुआ है या नहीं, अगर नहीं हुआ है, आप हमें लिख कर भेजें. हम इसे तत्काल सुनिश्चित करेंगे. इस संबंध में जमीअत उलमा-ए-हिंद जल्द ही ऐसी घटनाओं की सूची बनाकर गृह मंत्री को भेजेगी. प्रतिनिधिमंडल ने विशेष रूप से मेवात में एक के बाद एक हुई घटनाओं का भी उल्लेख किया और बताया कि वहां गौरक्षकों के नाम पर अराजक तत्वों का एक गिरोह है, जैसा कि स्टिंग ऑपरेशन में भी सामने आया है, उस पर अंकुश लगाने की आवश्यकता है.इस पर गृह मंत्री अपनी सहमति व्यक्त की.
मीडिया के जरिए मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने पर उन्होंने कहा कि मीडिया के शिकार तो स्वयं भी हैं. इस्लामिक मदरसों के संदर्भ में उन्होंने कहा कि सरकार को इस पर कोई आपत्ति नहीं है कि मदरसों में कुरान और हदीस की शिक्षा दी जाए लेकिन इन मदरसों में बच्चों को आधुनिक शिक्षा भी प्रदान की जानी चाहिए. प्रतिनिधिमंडल के एक सदस्य ने मुस्लिम छात्रों के लिए मौलाना आजाद छात्रवृत्ति का मुद्दा भी उठाया.
गृह मंत्री ने कर्नाटक में मुस्लिम आरक्षण समाप्त किए जाने के संबंध में कहा कि जिन मुसलमानों को पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण मिल रहा था, वह मिलता रहेगा. अलबत्ता पहले की सरकारों ने सभी मुसलमानों को पसमांदा बना दिया था, इसलिए जो पसमांदा जातियों से संबंध नहीं रखते, उनको ईडब्ल्यूएस श्रेणी में आरक्षण मिलेगा. इस संबंध में जो भ्रांतियां फैलाई जा रही हैं, हम उसे जल्द दूर करेंगे. इसके साथ ही कर्नाटक सरकार के कानून मंत्री द्वारा भी इस पर स्पष्टीकरण दिलवाएंगे.
कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाए जाने पर जब प्रतिनिधिमंडल ने आलोचना की, तो गृह मंत्री ने कहा कि अनुच्छेद 370 को हिंदू और मुसलमानों की समस्या नहीं बनाया जाना चाहिए, यह स्टेट पॉलिसी का हिस्सा है, लेकिन जहां तक वहां अधिकारियों द्वारा उत्पीड़न की शिकायत है, तो इस संबंध में कोई विशेष मामला हो तो वह हमारे संज्ञान में लाईए, हम कठोर कार्रवाई करेंगे.
गृह मंत्री ने कहा कि उनकी सरकार किसी समुदाय के साथ भेदभाव नहीं करती है. सरकार की नीतियों और योजनाओं में हिन्दू-मुसलमान सब शामिल हैं, हम अलग से किसी के लिए योजना नहीं बनाते हैं. प्रतिनिधिमंडल ने एक बार फिर दोहराया कि समस्या सरकारी योजनाओं की नहीं है, बल्कि सबसे बड़ी समस्या यह है कि मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है, हेट क्राइम और इस्लामोफोबिया की घटनाओं ने देश की अच्छी छवि को प्रभावित किया है। इस संबंध में सरकार को अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी स्वीकार करते हुए कदम उठाना चाहिए.
इस प्रतिनिधिमंडल में मौलाना महमूद असद मदनी अध्यक्ष, जमीअत उलमा-ए-हिंद, मौलाना असगर अली इमाम महदी सलफी अमीर मरकजी जमीयत अहले हदीस हिंद, मौलाना शब्बीर नदवी, अध्यक्ष नासेह एजुकेशन ट्रस्ट बैंगलोर, कमाल फारूकी, सदस्य ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, प्रो. अख्तरुल वासे, अध्यक्ष खुसरो फाउंडेशन, दिल्ली, पीए इनामदार, अध्यक्ष, एमसीई सोसायटी, पुणे, महाराष्ट्र, डॉ. जहीर काजी, अध्यक्ष, अंजुमन-ए-इस्लाम, मुंबई, मौलाना मोहम्मद सलमान बिजनौरी, उपाध्यक्ष जमीअत उलमा-ए-हिंद, मौलाना नदीम सिद्दीकी, अध्यक्ष जमीअत उलेमा महाराष्ट्र, मुफ्ती इफ्तिखार अहमद कासमी, अध्यक्ष जमीअत उलेमा कर्नाटक, मुफ्ती शमसुद्दीन बिजली महासचिव जमीयत उलेमा कर्नाटक, मौलाना अली हसन मजाहेरी, अध्यक्ष जमीयत उलेमा हरियाणा-पंजाब-हिमाचल प्रदेश, मौलाना याहिया करीमी महासचिव, जमीयत उलेमा हरियाणा-पंजाब-हिमाचल प्रदेश, मौलाना मोहम्मद इब्राहिम, अध्यक्ष जमीअत उलेमा केरल, हाजी हसन अहमद, महासचिव जमीअत उलेमा तमिलनाडु, मौलाना नियाज अहमद फारूकी, सचिव जमीअत उलेमा हिंद शामिल थे।