Rao and Pandey इस्लाम व मुसलमान के खिलाफ बकवास करने का दिया मौका
-दोनों के बारे में कहा जा रहा कि उनके मन में अचानक हिंदू व मुस्लिम प्रेम उमड़ने के पीछे मंशा है किसी खास राजनीतिक दल में प्रवेश के लिए आवेदन
दो वरिष्ठ पुलिस प्रशासनिक अधिकारियों की बयानबाज़ी के कारण इस्लाम और मुसलमान बेवजह कट्टर वादियों के निशाने पर हैं। विरोध में खूब आग उगली जा रही है। कोई ‘ईद उल अजहा’ में पशुओं की कुर्बानी पर सवाल उठा रहा, तो कोई मुस्लिम शिक्षाविदों को घेरने की कोशिश में है। कई कह रहे हैं, ‘ला इलाहा इल्लललाह’ नफरत फैलाने वाले अरबी शब्द हैं। मजे कि बात है कि उक्त दोनों आईपीएस अधिकारियों ने अपने कार्यकाल में न कोई इस्लाम-मुसलमान हितैशी काम किया, न कभी किसी मामले में मुसलमानों का उनके प्रति विरोध रहा।
उक्त दो वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों में एक हैं एम नागेश्वर राव और दूसरे बिहार के पुलिस महानिदेशक गुप्तेश्वर पांडेय। राव सीबीआई के निदेशक रहे और 31 जुलाई को सेवानिवृत्त हुए हैं। इसके साथ ही उन्होंने मुस्लिम विरोधी झंडा उठा लिया है। इस समय उनके निशाने पर तमाम मुस्लिम बुद्धिजीवी हैं। वह 1947 से 1977 तक देश के शिक्षा मंत्री रहे मौलाना अब्दुल कलाम आजाद, हुमायूं कबीर, एमसी छागला, फखरूद्दीन अली अहमद और नुरूल हसन की निष्पक्षता पर सवाल उठाते हैं। राव का आरोप है कि उन्हांने शिक्षा के माध्यम से हिंदू की नकारात्मक तस्वीर प्रस्तुत की। डिजिटल पत्रिका ‘हिंदुइज्म टुडे’ के माध्यम से उन्होंने मुस्लिम शासकों पर ब्राह्रमणों की छवि खराब करने का आरोप लगाया है। पत्रिका में छपे लेख-‘ द कोलोनियल जेनेसिस ऑफ एंटी-ब्राह्रमिनिज्म’ में कहा गया है कि भारत आने वाले मुस्लिम शासकों को सांस्कृतिक व अध्यात्मिक तौर पर समृद्ध करने वाले बहादुर व बुद्धिजीवी ब्राह्रमन थे। बावजूद इसके उन्होंने समाज में ब्राहा्रमण विरोधी छवि बनाई। उन्हें धूर्त व शोषक बताया। बाद में मिश्नरियों, मॉर्क्सवादियों, अलगाववादियों एवं जातिवादियों ने इस नकारात्मक तस्वीर को आगे बढ़ाया। डॉक्टर भीम राव अंबेडकर के हवाले से लेख में कहा गया कि अरब से आए मोहम्मद बिन कासिम ने ब्राह्रमनों का खतना कराया था। पूर्व आईपीएस अधिकारी एम नागेश्वर राव मंदिरों के सरकारी करण के विरोध में भी सवाल उठाते हुए मुसलमानों और उनके धार्मिक स्थलों को निशाना बना रहे हैं।
दूसरी तरफ बिहार के डी जीपी गुप्तेश्वर पांडे का मामला राव से थोड़ा भिन्न है। पांडे ने ‘ईद उल अजहा’ के मौके पर भाईचारे का संदेश देने के लिए एक वीडियो संदेश में ‘अल्लाह-हो-अकबर’ और ‘ला इलाहा इल्लललाह’ का नारा लगया था। गुप्तेश्वर पांडे भी जल्द सेवानिवृत्त होने वाले हैं। उनके और राव के बारे में कहा जा रहा है कि उनके अचानक हिंदू और मुस्लिम प्रेम छलकाने के पीछे किसी खास राजनीतिक दल के लिए आवेदन की मंशा है। जबकि इससे पहले न तो एम नागेश्वर राव और न ही गुप्तेश्वर पांडे ने कभी हिंदू और मुसलमानों के हितों में कोई उल्लेखनीय कार्य किए, न बयान दिए। उत्तर प्रदेश के एक पूर्व पुलिस महानिदेशक ने राव पर कई संगीन आरोप लगाए हैं। कहते हैं कि जब वह पश्चिम बंगाल में पोस्टेड थे आर्थिक सहित कई तरह की अनियमितताएँ बरतने के आरोप लगे थे।
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बहरहाल, दोनों आईपीएस अधिकारियों के बयानबाजी में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हिस्सा नहीं होने के बावजूद मुसलमान व इस्लाम नफरी गिरोह के निशाने पर है। चूंकि दोनों के बयान सोशल मीडिया पर हैं। इसलिए इसपर जमकर जहर उगला जा रहा। शेफाली वैध ने गुप्तेश्वर पांडे की वीडियो ट्वीट कर उन्हें जाकिर नायक जैसी आवाज निकालने वाला थर्डग्रेड का व्यक्ति बताया। रितु सत्यसाधक लिखती हैं, पांडे अल्लाह-हो-अकबर का नारा लगाएँ तो धर्मनिरपेक्ष और एम नागेश्वर राव 1947 से भारतीय शिक्षा में हिंदू के प्रति अस्वीकारता फैलाए जाने की बात करें तो सांप्रदायिक। हरीश ने मुसलमान की बुनियाद ‘ला इलाहा इलल्ललाह’ को नफरत फैलाने वाला जुमला करार दिया। नवीन ने इसी बहाने बकरीद पर पशुओं की कुर्बानी के औचित्य पर सवाल उठाए हैं। आईपीएस अधिकारियों के बयान पर मुसलमान और इस्लाम को बुरा-भला कहने वालों में शीतल शर्मा, राहुल, अंजुला जैसे लोग भी शामिल हैं।
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संपादक