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देश में मानवाधिकार की सुरक्षा का रिकार्ड निराशाजनकः जमाअत इस्लामी हिन्द

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

देश का इतिहास रहा है कि इसने हमेशा मानवाधिकार और व्यक्ति की आज़ादी का समर्थन किया है. हालिया दिनों में धार्मिक अल्पसंख्यकों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और पत्रकारों के अधिकारों की सुरक्षा को लेकर हमारे देश का रिकार्ड बहुत अच्छा नहीं रहा है. इसका ताज़ मिसाल विगत महीने देखने को मिला जब कुछ दोस्त और विश्वसनीय देशों जैसे अमरीका, कनाडा और जर्मनी ने भारत पर दबाव बनाया कि वे अपने यहां मानवाधिकार के रिकार्ड को बेहतर और अल्पसंख्यकों के अधिकारों और अभिव्यक्ति की आज़ादी को सुरक्षा प्रदान करे। कुछ देशों ने आशा व्यक्त की कि भारत एनआरसी के डिज़ाइन और इसे लागू किए जाने की समीक्षा करे.

ये बातें जमाअत इस्लामी हिन्द के उपाध्यक्ष प्रोफेसर सलीम इंजीनियर ने जमाअत इस्लामी हिन्द के मुख्यालय में आयोजित मासिक प्रेस कान्फ्रेंस में कही. उन्होंने कहा कि मानवाधिकार के सुरक्षा के सिलसिले में हमारी अंतर्राष्ट्रीय दर्जाबंदी में स्पष्ट कमी आयी है. मूल अधिकार, सुरक्षा, शान्ति और दिवानी और फौजदारी इंसाफ जैसे मामलों में भी हमारे देश के प्रदर्शन में कमी आयी है. उन्होंने धर्म परिवर्तन पर मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के दो-सदस्यीय पीठ के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि हम इस फैसले का स्वागत करते हैं जिसमें कहा गया है कि अधिकारी नागरिकों को अपने धर्म को परिवर्तन के इरादे का एलान करने पर मजबूर नहीं कर सकते हैं.
अदालत का यह फैसला देश के संविधान के अनुच्छेद 25 के अनुसार है जिसमें हर नागरिक को अंतःकरण की आज़ादी, धर्म अपनाने, इसका अनुपालन करने और इसके प्रचार प्रसार का अधिकार दिया गया है.

प्रेस कान्फ्रेंस का सम्बोधित करते हुए जमाअत के मर्कज़ी तालीमी बोर्ड के निदेशक सैयद तनवीर अहमद ने पहली से आठवीं वर्ग तक के अल्पसंख्यक छात्रों के लिए प्री-मैट्रीक छात्रवृत्ति को निलंबित किये जाने पर चिंता प्रकट करते हुए कहा कि सरकार अल्पसंख्यक योजनाओं को सिलसिलेवार बंद करती जा रही है. पहले प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति को खत्म किया गया और अब मौलाना आज़ाद फेलोशिप को बंद करने का एलान किया जा रहा है. सरकार के इन फैसलों से अल्पसंख्यक छात्रों के ड्राॅपआउट और अब उच्च शिक्षा से वंचित होने की दर में इज़फ़ा होगा और उनका शैक्षिक करियर को और भी नुक़सान पहुंचेगा. कई सर्वेक्षणों ने संकेत दिया है कि अल्पसंख्यक, विशेष रूप से मुस्लिम, प्राथमिक और उच्च शिक्षा दोनों में पीछे हैं. इस प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति ने शैक्षिक अवसरों तक पहुँचने के लिए गरीब, वंचित, और हाशिए पर रहने वाले छात्रों (लड़कियों और लड़कों दोनों) की मदद की है। ऐसे सभी छात्रों का भविष्य अब अधर में लटक गया है. जमाअत ने सरकार से कक्षा 1 से 8 तक के छात्रों के लिए प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति एक बार फिर से बहाल करने का आग्रह करती है. युवा पीढ़ी को शिक्षा के अवसरों और अकादमिक रूप से उत्कृष्टता प्राप्त करने के प्रोत्साहन से वंचित करके राष्ट्र प्रगति नहीं कर सकता है.