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समाज में न्याय स्थापित करने के लिए मज़हबी रहनुमाओं की महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी : प्रो मोहम्मद सलीम इंजीनियर

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

धार्मिक जन मोर्चा और सद्भाव एवं शांति अध्ययन संस्थान (आईएचपीएस) ने संयुक्त रूप से जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के मुख्यालय में “विभिन्न धर्मग्रंथों में न्याय की धारणा” शीर्षक पर एक सम्मेलन का आयोजन किया.सम्मेलन में विभिन्न समुदायों के धार्मिक और सामाजिक नेता विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में न्याय की अवधारणा का पता लगाने और इस बात पर चर्चा करने के लिए एक साथ आए कि समाज में इन सिद्धांतों को कैसे बरकरार रखा जा सकता है.

जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के उपाध्यक्ष और धार्मिक जन मोर्चा के राष्ट्रीय समन्वयक प्रोफेसर मोहम्मद सलीम इंजीनियर ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की. अपने उद्घाटन भाषण में उन्होंने क़ुरआन और अन्य धार्मिक ग्रंथों में बताये गए न्याय में समानता की मौलिक भूमिका पर जोर दिया.

उनहोंने कहा कि “समाज में न्याय स्थापित करने के लिए हर नागरिक खासतौर से मज़हबी रहनुमाओं की महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी है. क़ुरआन ईश्वर की ओर से मानव के मार्गदर्शन के लिए अवतरित अंतिम ग्रन्थ है जिसमें कहा गया है के रसूल और पैग़म्बरों के भेजे जाने और ग्रंथों के अवतरित किये जाने का असल उद्देश्य मानव समाज में न्याय की स्थापना है-“

आईएचपीएस के संस्थापक निदेशक डॉ. एम. डी. थॉमस ने भारतीय संविधान के धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक सिद्धांतों को विभिन्न धर्मों के पवित्र मूल्यों के साथ संरेखित करने पर चर्चा की. उन्होंने कहा कि अन्य धर्मों की तरह ईसाई धर्म भी न्याय की एक समान अवधारणा को मानता है.

भारतीय सर्व धर्म संसद के संस्थापक गोस्वामी सुशीलजी महाराज ने कहा कि सभी धर्म शांति और न्याय की वकालत करते हैं. उन्होंने सुझाव दिया कि धार्मिक नेता समाज में इन मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए एक साझा एजेंडा विकसित करें. हिंसा और अन्याय की घटनाओं पर नजर रखने के लिए एक पंचायत गठित करने का भी उन्होंने एक प्रस्ताव रखा.

जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के राष्ट्रीय सचिव मोहम्मद अहमद ने धर्मनिरपेक्षता के संवैधानिक सिद्धांत पर प्रकाश डाला तथा धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा में राज्य की भूमिका को रेखांकित किया.

उन्होंने विशिष्ट धार्मिक समुदायों के व्यक्तियों को निशाना बनाने और उन्हें शैतान बताने की बढ़ती प्रवृत्ति की ओर ध्यान दिलाया तथा नागरिकों के बीच घनिष्ठ सामाजिक एकीकरण और तालमेल का आह्वान किया.

हलीमा अज़ीज़ विश्वविद्यालय के चांसलर और इंडो-अरब सोसायटी के सद्भावना राजदूत डॉ. सैयद अहमद इकबाल ने कुरान को उद्धृत करते हुए मानव जीवन की पवित्रता और किसी निर्दोष व्यक्ति के जीवन को अन्यायपूर्वक समाप्त करने की गंभीरता पर बल दिया.

ब्रह्मा कुमारी से बहन हुसैन ने कहा कि रहम और उत्कृष्ट कर्म के बिना न्याय का सन्देश संभव नहीं. जैन समुदाय से अजय जैन, सिख समुदाय से यशपाल और बौद्ध समुदाय से आचार्य येशी फुंटसोक सहित विभिन्न धार्मिक समुदायों के प्रतिनिधियों ने भी अपने विचार साझा किए। उन्होंने अपने-अपने धर्मग्रंथों में बताए गए न्याय के व्यावहारिक अनुप्रयोगों पर चर्चा की.

सम्मेलन का समापन नेताओं की ओर से शांति और न्याय को बढ़ावा देने की दिशा में मिलकर काम करने तथा समकालीन समाज में इन शाश्वत मूल्यों के कार्यान्वयन की वकालत करने की सामूहिक प्रतिबद्धता के साथ हुआ.