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#Remove_Waqf_Act क्या है वक्फ संपत्ति का सच ?

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

भारत में एक ऐसी मुस्लिम विरोधी ताकत सक्रिय है, जो निरंतर इस प्रयास में है कि कैसे इस कौम को जलील कर इसका मोरल डाउन किया जाए. यहां तक कि मुसलमानों की विरासत, उसके रस्म-ओ-रिवाज और  इस्लामिक
दिशा-निर्देशों को भी निशाना बनाने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी जा रही है. पिछले आठ-दस वर्षों की घटनाएं देख लें. ऐसे एक ही अनेक उदाहरण मिल जाएंगे. चूंकि इस्लामिक तरबियत के हिसाब से अधिकांश मामलों में मुसलमान अपने खिलाफ होने वाले दुष्प्रचार और साजिशों को लेकर आवाज बुलंद नहीं करता. इसका परिणाम है कि मुसलमानों पर हमले रूकने का नाम नहीं ले रहे हैं. इस कड़ी में एक नया मामला जुड़ गया है-वक्फ प्रॉपर्टी का.

इसको लेकर देश में ऐसी तस्वीर पेश करने की साजिश चल रही है, जैसे वक्फ संपत्तियां यदि रहेंगी तो भारत का इस्लामीकरण हो जाएगा. यानी देश का वक्फ बोर्ड भारत में समांतर सरकार चला रहा है. इसके अपने कायदे-कानून हैं. यहां तक कि इसके आगे देश की किसी अदालत और सरकार की भी चलती.

हद तो यह है कि मुसलमानों और वक्फ संपत्तियों को लेकर दुष्प्रचार करने वालों में हिंदी के जाने-माने पत्रकार प्रदीप सिंह जैसे सुलझे लोग भी शामिल हैं. लोग यह समझते हैं कि ऐसे वरिष्ठ पत्रकार निष्पक्ष होकर अपनी बातें रखेंगे. मगर चूंकि वह एक खास विचारधारा से बंधे हैं, इसलिए पत्रकारिता के सारे एथिक और निष्पक्षता ताक पर रखकर वक्फ संपत्ति को लेकर फैलाए जा रहे झूठों के झुंड में शामिल हो गए हैं. देश में वक्फ संपत्ति को लेकर दुष्प्रचार करने के लिए #Remove_Waqf_Act   का हैशटैग भी चलाया जा रहा है.

आगे बढ़ने से पहले चंद बातें वक्फ संपत्ति को लेकर. यह वह संपत्ति है, जो मुसलमान कौम की सेवा के लिए अपनी दान कर देते हैं. बाद में यह वक्फ बोर्ड के अधीन आ जाती है. यहां तक कि वक्फ की संपत्तियों में देश बंटवारे के समय भारत से पाकिस्तान जाने वालों की जमीन-जायदा भी हैं. इसके अलावा मुगलों की संपत्तियां भी या तो वक्फ के पास हैं या पुरातत्व विभाग के. वक्फ संपत्तियों की देखभाल के लिए सरकारों ने वक्फ बोर्ड बना रखा है.
अब आते हैं इसके दुष्प्रचार को लेकर. पहले वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह के बारे में बता दूं. यह खास विचारधारा से प्रेरित हैं. एक पत्रिका में उनके साथ इन पंक्तियों के लेखक को भी काम करने का अवसर मिल चुका है. वैसे तो वह सुलझे हुए व्यक्ति लगते हैं, पर कई बार उनकी पत्रकारिता समाज में विष घोलने वाली जैसी लगती है. बुढ़ापे के कारण आजकल बेकार हैं, सो उन्हांेने अपना यूट्यूब चैनल चला रखा है. अपने चैनल के एक संस्करण में उन्हांेने वक्फ संपत्तियों को कुछ इस तरह पेश किया है, सुनने पर ऐसा भ्रम होता है कि हां यार ! वाकई इसने तो भारत का इस्लामीकरण कर दिया है.
इस वीडियो में उन्हांेने बहुत चालाकी से एक नया एजेंडा सेट करने की कोशिश की है. इसमें बताने का प्रयास किया गया है कि भारत का वक्फ वक्फ बोर्ड इस्लामीकरण कर रहा. मंदिर के दान से इकट्ठा धन तो भारत के सभी धर्म, संप्रदाय के विकास पर खर्च होते हैं, मगर मस्जिद, वक्फ का पैसा केवल मुसलमानों के हित में खर्च किया जाता है. चूंकि वीडियो स्क्रिप्टेड है, इसलिए तमिलनाडु और राजस्थान की वक्फ संपत्ति विवाद के  दो उदाहरण को शातिराना अंदाज में पेश कर प्रदीप सिंह जो कहना चाहते थे, कह गए. वीडियो दो पक्षीय होता यानी दूसरा पक्ष इसमें मौजूद रहता तो शायद उनका नैरेटिव सेट नहीं हो पता, क्योंकि दूसरा पक्ष बातचीत में प्रदीप सिंह की सारी पोल-पट्टी खोल के रख देता.

मैं मुसलमानों को कई कारणों से बेवकूफ और अपना अधिकार लेने के मामले में अक्षम मानता हूं. वक्फ बोर्ड का मामला भी कुछ ऐसा ही है. चूंकि वक्फ संपत्ति मुसलमानों के हित के लिए है, इसलिए बहुत पहले ही इस समुदाय को इसे अपने अधिकार क्षेत्र में ले लेना चाहिए था. मुसलमानों का एक देशव्यापी संगठन बनाकर इससे होने वाली आमदनी यदि पिछले पचास वर्षों में इस कौम पर खर्च कर दी गई होेती तो आज यह न तो ये पिछड़ते होते और न ही सच्चर कमेटी और रंगनाथ मिश्र आयोग को मुसलमानों की बदहाली की दास्तान लिखनी पड़ती. इस देश में वक्त संपत्ति इतनी है कि सरकार से बिना किसी तरह की आर्थिक मदद और योजना का लाभ लिए, प्रत्येक वर्ष कई उद्योग स्थापित होते, कई मेडिकल और इंजीनियरिंग यूनिवर्सिटी सहित अध्ययन और शोध संस्थाएं खड़े कर दिए जाते. चूंकि मुसमलानों ने कभी इसपर मजबूत दावेदारी नहीं ठोकी, इसलिए आज यह कौम न केवल हर मामले में पिछड़ापन का शिकार है, साजिशकर्ताओं को भी अनर्गल बोलने का मौका नहीं मिल गया है.

हालांकि, अभी समय नहीं बीता है, मुस्लिम कौम के नुमाइंदों, इस्लामिक रहनुमाओं और मुस्लिम बुद्धिजीवियों को संविधान और कानून का सहारा लेकर वक्फ संपत्तियों को अपने आधिपत्य में लेने के लिए संघर्ष शुरू कर देना चाहिए.
रही बात प्रदीप सिंह कि तो वह अपनी वीडियो रिपोर्ट में ऐसा जाहिर करते हैं कि बोर्ड मुसलमान चलाते हैं. जबकि हकीकत यह है कि बोर्ड से लेकर इसमें तमाम पदों की बहाली सरकार और सरकारी देखरेख में होता है. जिस तरह हिंदू धार्मिक स्थलों वाले जिले के डीएम, उपायुक्त हिंदू होते हैं, उसी तरह का मामला वक्फ बोर्ड के साथ भी है. इस देश में जब प्रसिद्ध हिंदू धार्मिक स्थलों में गैर मुस्लिमों के प्रवेश पर पाबंदी लगी है, उसी तर्ज दूसरे धर्मों के स्थलों का ख्याल रखते हुए सरकार, प्रशासन की कोशिश होती है कि वहां अधिकारी उसी धर्म के अधिकारी लगाए जाएं.  

प्रदीप सिंह ने वक्फ संपत्तियों का जिक्र करते हुए गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी और चर्चों का जान बूझ कर जिक्र नहीं किया. वह  इस बारे में इसलिए बात नहीं करना चाहते थे कि क्यों कि उनका नरेटिव नहीं सेट हो पाता.
एक और बात काबिल-ए-गौर है. वक्फ संपत्तियों को लेकर दुष्प्रचार करने वाले कहते हैं कि इससे प्राप्त धन केवल मुसलमानों पर खर्च किया जाता है. मगर वह यह नहीं बताते कि वक्फ की जमीन पर ही सरकार के अधिकांश बड़े प्रोजेक्ट चल रहे हैं. समय और जरूरत के हिसाब से सरकार वक्फ संपत्तियां अपने विभागों में ट्रांसफर करती रहती हैं. यही नहीं मुगल काल की अधिकांश और कई अरबों-खरबों की संपत्तियों पर या तो वक्फ या पुरातत्व विभाग का कब्जा है. उससे होने वाली सारी आमदनी सरकारी खजाने में जाती है. वक्फ के खिलाफ प्रचार करने वालों को सरकार से सवाल पूछना चाहिए कि इससे प्राप्त धन क्या मुसलमानों पर खर्च किया जा रहा है या देश के विकास और अन्य कौम पर ?
बंटवारे के समय भारत में संपत्ति छोड़कर पाकिस्तान जाने वालों की संपत्तियां तो मामूली हैं. सरकार के पास बड़ा हिस्सा मुगलोें की संपत्तियों का है. जब मुगलों से इतनी चिढ़ है और बाबर, अबकर, औरंगजेब से भारतीय मुसमलनों को जोड कर उन्हें जलील करने की कोशिश की जाती है तो क्यांे न वह तमाम संपत्तियां ट्रस्ट या संगठन बनाकर मुसलमानों को दी जाती है ? इसके नाम पर विवाद खड़ा करने वालों को यह भी बताना चाहिए कि भारत में संपत्ति छोड़कर पाकिस्तान गए लोगों की ‘एनेमी प्रॉपटी्र’ कितनी है और सरकार अब तक कितने पर कब्जा कर चुकी है ?

एक बात और. देश की  मस्जिदों और मदरसों को सरकार पैसे नहीं देती. वक्फ से आने वाले पैसे से भुगतान किए जाते हैं. विवाद खड़ा करने वालों के कानों मंे एक बात और डालना जरूरी है कि मस्जिदों और मदरसों की अधिकांश दुकानों पर मुसलमानों का नहीं गैर-मुस्लिमों का कब्जा है और वे किराए के नाम पर बोर्ड को दस और बीस रूपये पकड़ा रहे हैं. यदि मुसलमानों इनके खिलाफ आंदोलन चलाकर उन्हें दुकान से बाहर कराने पर उतार आएं तो लाखों परिवारों को रोटी के लाले पड़ जाएंगे. यही नहीं दुष्प्रचार करने वालों को एक बात और याद दिलाना चाहता हूं. बोर्ड के ट्रिब्यूनल सरकार और देश के कानून के अधीन हैं. फैसले भी उसी के अनुसार होते हैं. अलग विशेषाधिकार नहीं मिला हुआ है. यही नहीं वक्फ बोर्ड के चेयरमैन और सदस्य भले ही मुसलमान होते हों, पर उसक चीफ एडमिनिस्ट्रेटिव अफसर कोई आईएएस या आईपीएस होता है. इसकी मुहर के बगैर बोर्ड का कोई फैसला मान्य नहीं और आईएएस, आईपीएस मुसलमान नहीं पैदा करते. सरकार उन्हें तैनात करती है. इसलिए वक्फ के नाम पर दुष्प्रचार करने वालों को सझना चाहिए कि उनकी ऐसी हरकतों की क्रिया में प्रतिक्रिया हो सकती है.देश पहले से ही कई तरह की परेशानियों में फंसा है, इसके विपरीत मुसलमानों के खिलाफ रोजाना नए-नए विवाद छेड़कर लोगों की चैन और नींद हराम की जा रही है.