आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का मुसलमानों को एक और नसीहत, बोले-सर्वोच्चता का शोरगुल मचाना छोड़ दें
मुस्लिम नाउ ब्यूरो /नई दिल्ली
लगता है मुस्लिम रहनुमा की बातों में वह दम नहीं या अब वे अपना असर खो चुके हैं. इसलिए राष्ट्रीय स्वंय सेवक पिछले चार-पांच वर्षों से लगातार मुसलमानांे को नसीहत दे रहा है. ऐसा करें, वैसा न करें. इसी कम्र मंे आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की मुसलमानों के लिए एक और नसीहत आई है.आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि भारत में मुस्लिमों को डरने की कोई बात नहीं है, लेकिन उन्हें सर्वोच्चता के अपने बड़बोले बयानबाजी को छोड़ देना चाहिए.
आरएसएस के मुख्य पत्र ऑर्गनाइजर और पाञ्चजन्य को दिए एक साक्षात्कार में, भागवत ने एलजीबीटी समुदाय के समर्थन में भी बात की. कहा कि उनका अपना निजी स्थान होना चाहिए. संघ को इस दृष्टिकोण को बढ़ावा देना होगा.
उन्होंने कहा ,“ऐसी प्रवृत्ति वाले लोग हमेशा से रहे हैं, जब तक मनुष्य का अस्तित्व है… यह जैविक है, जीवन का एक तरीका है. हम चाहते हैं कि उनका अपना निजी स्थान हो और यह महसूस हो कि वे भी समाज का एक हिस्सा हैं. यह इतना आसान मामला है. हमें इस विचार को बढ़ावा देना होगा क्योंकि इसके समाधान के अन्य सभी तरीके व्यर्थ होंगे.
भागवत ने कहा कि दुनिया भर में हिंदुओं के बीच नई-नई आक्रामकता समाज में एक जागृति के कारण थी जो 1,000 से अधिक वर्षों से युद्ध में है.उन्होंने कहा, आप देखिए, हिंदू समाज 1000 से अधिक वर्षों से युद्धरत है. यह लड़ाई विदेशी आक्रमणों, विदेशी प्रभावों और विदेशी साजिशों के खिलाफ चल रही है. संघ ने इस कारण को अपना समर्थन दिया है, इसलिए दूसरों ने भी दिया है.
कई ऐसे हैं जिन्होंने इसके बारे में बात की है. इन सबके कारण ही हिन्दू समाज जाग्रत हुआ है. भागवत ने कहा कि युद्ध में शामिल लोगों का आक्रामक होना स्वाभाविक है.राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख ने कहा कि दर्ज इतिहास के शुरुआती समय से भारत अविभाजित (अखंड) रहा है, लेकिन जब भी मूल हिंदू भावना को भुला दिया गया, तब इसे विभाजित किया गया.
उन्होंने कहा,“हिंदू हमारी पहचान है, हमारी राष्ट्रीयता है, हमारी सभ्यता की विशेषता है जो सबको अपना मानती है, जो सबको साथ लेकर चलता है. हम कभी नहीं कहते, मेरा ही सच्चा है और तुम्हारा झूठा है. तुम अपनी जगह सही हो, मैं अपनी जगह सही. भागवत ने कहा, क्यों लड़ना है, आइए साथ मिलकर चलें, यही हिंदुत्व है.
उन्होंने कहा, सरल सत्य यह है कि इस हिंदुस्थान को हिंदुस्तान ही रहना चाहिए. आज भारत में रह रहे मुसलमानों को कोई नुकसान नहीं.इस्लाम को डरने की कोई बात नहीं है, लेकिन साथ ही, मुसलमानों को वर्चस्व की अपनी उद्दाम बयानबाजी छोड़ देनी चाहिए. हम एक महान जाति के हैं. हमने एक बार इस देश पर शासन किया था. इस पर फिर से शासन करेंगे. सिर्फ हमारा रास्ता सही है, बाकी सब गलत हैं. हम अलग हैं, इसलिए हम ऐसे ही रहेंगे. हम एक साथ नहीं रह सकते. उन्हें (मुसलमानों को) इस नैरेटिव को छोड़ देना चाहिए. वास्तव में, यहां रहने वाले सभी लोग चाहे हिंदू हों या कम्युनिस्ट, उन्हें इस तर्क को छोड़ देना चाहिए.
एक सांस्कृतिक संगठन होने के बावजूद राजनीतिक मुद्दों के साथ आरएसएस के जुड़ाव पर, भागवत ने कहा कि संघ ने जानबूझकर खुद को दिन-प्रतिदिन की राजनीति से दूर रखा है, लेकिन हमेशा ऐसी राजनीति से जुड़ा है जो हमारी राष्ट्रीय नीतियों, राष्ट्रीय हित और हिंदू हित को प्रभावित करती है.
अंतर केवल इतना है कि पहले हमारे स्वयंसेवक राजनीतिक सत्ता के पदों पर नहीं थे. वर्तमान स्थिति में यह एकमात्र जोड़ है. लेकिन लोग यह भूल जाते हैं कि ये स्वयंसेवक ही हैं जो एक राजनीतिक दल के माध्यम से कुछ राजनीतिक पदों पर पहुंचे हैं. संघ संगठन के लिए समाज को संगठित करना जारी रखता है.
हालांकि, राजनीति में स्वयंसेवक जो कुछ भी करते हैं, संघ को उसी के लिए जवाबदेह ठहराया जाता है. भले ही हम दूसरों से सीधे तौर पर न जुड़े हों, लेकिन निश्चित रूप से कुछ जवाबदेही है क्योंकि अंततः यह संघ में है जहां स्वयंसेवकों को प्रशिक्षित किया जाता है. इसलिए, हमें यह सोचने पर मजबूर होना पड़ता है कि हमारा रिश्ता कैसा होना चाहिए, किन चीजों को हमें (राष्ट्रीय हित में) पूरी लगन के साथ आगे बढ़ाना चाहिए.
भागवत ने याद दिलाया कि संघ को पहले तिरस्कार की नजर से देखा जाता था, लेकिन अब वे दिन लद गए.सड़क पर पहले जिन काँटों का सामना करना पड़ा था, उन्होंने उनका चरित्र बदल दिया है. अतीत में हमें विरोध और तिरस्कार के कांटों का सामना करना पड़ा. जिनसे हम बच सकते थे. और कई बार हमने उनसे परहेज भी किया है. लेकिन नई-मिली स्वीकृति ने हमें संसाधन, सुविधा और प्रचुरता प्रदान की है.
भागवत ने कहा कि नई परिस्थितियों में लोकप्रियता और संसाधन कांटे बन गए हैं, जिनका संघ को सामना करना चाहिए.यदि आज हमारे पास साधन और संसाधन हैं, तो उन्हें हमारे काम के लिए आवश्यक उपकरणों से अधिक नहीं देखा जाना चाहिए. हमें उन्हें नियंत्रित करना चाहिए. हमें उनका आदी नहीं होना चाहिए. कठिनाइयों का सामना करने की हमारी पुरानी आदत कभी नहीं छूटनी चाहिए. समय अनुकूल है, लेकिन इससे घमंड नहीं होना चाहिए.
हालांकि भागत के इस इंटरव्यू को पढ़ें तो आपको सहज अहसास हो जाएगा कि संघ और हिंदू धर्म के मामले में तो वह बड़ बोले नजर आते हैं, पर मुसलमानों को नसीहत देने से परहेज नहीं करते कि आप ज्यादा खुश न हों. अपना इतिहास-भुगोल अपने पास ही रखिए. सौहार्द तो तभी आएगा जब दोनों समुदाय अपना दंभ खंटी पर टांग कर नर्मदिल हो जाएं. अन्यता समृद्ध इतिहास सभी समुदाय के पास है. इस मामले में बौद्ध धर्म कहीं सबसे आगे है. मगर चाटुकार मुस्लिम उलेमा और रहनुमा यह बातें भागत से नहीं कह पाएंगे.