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राष्ट्रपति के अभिभाषण पर रूहुल्लाह मेहदी का तीखा हमला: कश्मीर और मुसलमानों की अनदेखी का आरोप

मुस्लिम नाउ ब्यूरो,नई दिल्ली

जम्मू-कश्मीर से सांसद रूहुल्लाह मेहदी का एक भाषण चर्चा का विषय बन गया है. उनका यह बयान सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें उन्होंने कहा, ‘‘मुसलमान बीजेपी से डरने वाले नहीं हैं, और राष्ट्रपति ने भी मुसलमानों का जिक्र करना जरूरी नहीं समझा.’’

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि मुसलमान बीजेपी या किसी अन्य पार्टी से डरकर चुनाव में वोट नहीं करते. रूहुल्लाह मेहदी का यह भाषण विपक्षी दलों के लिए एक सशक्त संदेश है, जो जम्मू-कश्मीर और मुस्लिम समुदाय के संदर्भ में अक्सर बीजेपी पर सवाल उठाते रहते हैं.

रूहुल्लाह मेहदी ने यह बयान संसद में दी अपनी महत्वपूर्ण स्पीच के दौरान दिया, जब पीठासीन अधिकारी संध्या राय की मौजूदगी में उन्होंने जम्मू-कश्मीर की वर्तमान स्थिति पर चिंता जताई. उन्होंने विशेष रूप से राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के अभिभाषण की आलोचना की, जिसमें अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में चुनाव कराने को केंद्र सरकार की एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर पेश किया गया था.

मेहदी का कहना था कि अनुच्छेद 370 के हटने से पहले भी जम्मू-कश्मीर में चुनाव शांतिपूर्ण तरीके से होते आए हैं, और इन चुनावों को किसी राजनीतिक दल के प्रचार का हिस्सा बनाना गलत है.

रूहुल्लाह मेहदी ने अपने भाषण में जम्मू-कश्मीर और भारतीय राज्यों के बीच विभिन्न पहलुओं का तुलनात्मक विश्लेषण किया. उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर का मानव विकास सूचकांक (HDI) बीजेपी शासित गुजरात, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और हरियाणा से कहीं बेहतर था, और उच्च शिक्षा में दाखिले के मामले में भी जम्मू-कश्मीर का प्रदर्शन अन्य राज्यों से कहीं बेहतर रहा था.

उनका कहना था कि जब जम्मू-कश्मीर में पहले भी चुनाव होते थे, तो क्यों अब अनुच्छेद 370 हटाने के बाद इसे किसी उपलब्धि के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है..

सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया

रूहुल्लाह मेहदी के भाषण के बाद सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएं आईं. कई लोगों ने उनकी बातों का समर्थन किया और कश्मीर की स्थिति पर चिंता जताई. जामिद जुनैद, एक सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर, ने रूहुल्लाह मेहदी के भाषण को ‘‘अद्वितीय और सशक्त’’ बताते हुए कहा, ‘‘यह एक साहसी कदम था, लेकिन उन्हें इस लड़ाई में अकेला छोड़ दिया गया है.’’

एडवोकेट मुज़ामिल शाह ने भी उनके भाषण का समर्थन करते हुए लिखा कि ‘‘इस समय रूहुल्लाह मेहदी ही कश्मीर के लोगों की आवाज़ हैं.’’ उन्होंने बीजेपी के साथ कथित गठबंधन को लेकर भी सवाल उठाए और कहा कि बीजेपी कश्मीर में बाहरी लोगों को लाकर स्थानीय लोगों को विस्थापित करने की कोशिश कर रही है.

साथ ही, खुर्शीद अहमद ने एसपीओ (स्पेशल पुलिस ऑफिसर्स) के अधिकारों पर भी सवाल उठाया और कहा कि 2009 से पहले शहीद होने वाले एसपीओ को अनुकंपा नियुक्ति में नजरअंदाज किया जा रहा है, जबकि बाद में शहीद हुए एसपीओ को यह लाभ दिया जा रहा है.

कश्मीर की स्थिति पर टिप्पणियां

कश्मीर के बारे में विभिन्न टिप्पणियों ने इस बात की ओर इशारा किया कि कश्मीर की स्थिति में बदलाव के बावजूद स्थानीय लोगों की आवाज़ को प्रमुखता से नहीं लिया जा रहा है. मेहराज अकेला ने इस संबंध में कहा, ‘‘रूहुल्लाह मेहदी ने कश्मीरी लोगों की बात उठाई है, और इस संघर्ष में उन्हें समर्थन मिलना चाहिए.’’

साहिल मकबूल ने कश्मीर के संदर्भ में कहा, ‘‘मुझे लगता है कि भारतीय संसद में पहली बार कश्मीर का सही प्रतिनिधित्व हो रहा है.’’

यासिर ने रूहुल्लाह मेहदी की साहसिकता की सराहना करते हुए कहा, ‘‘शेर की दहाड़ कुछ ऐसी ही होती है.’’

रूहुल्लाह मेहदी का यह भाषण जम्मू-कश्मीर की सच्चाई को सामने लाने की कोशिश था, जिसमें उन्होंने बीजेपी के खिलाफ अपनी कड़ी आलोचना की और कश्मीरियों की अधिकारों के लिए लड़ाई जारी रखने का आह्वान किया. यह भाषण न केवल कश्मीर की राजनीतिक स्थिति पर सवाल उठाता है, बल्कि मुस्लिम समुदाय के अधिकारों और उनके राजनीतिक अस्तित्व को भी मजबूत करता है. इस पूरे विवाद ने देशभर में कश्मीर की स्थिति और भारतीय राजनीति में मुसलमानों के स्थान पर एक अहम बहस को जन्म दिया है.