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समायरा हुल्लूर : 12 साल की उम्र में देखा सपना, 18 में बन गईं कमर्शियल पायलट

गुलाम कादिर

कर्नाटक की 18 वर्षीय समायरा हुल्लूर ने भारत की सबसे कम उम्र की वाणिज्यिक पायलट बनकर इतिहास रच दिया. उनकी यह उपलब्धि केवल उनके परिवार और राज्य के लिए ही नहीं, पूरे देश के लिए गर्व का विषय है. समायरा की कहानी न केवल दृढ़ता और समर्पण का प्रतीक है, बल्कि उन युवाओं के लिए प्रेरणा है जो बड़े सपने देखने का साहस करते हैं.

समायरा की उड़ान की यात्रा तब शुरू हुई, जब वह महज 12 साल की थीं. उनके माता-पिता, अमीन हुल्लूर और उनकी पत्नी ने उन्हें बीजापुर उत्सव के दौरान हेलीकॉप्टर की सवारी करवाई. जब हेलीकॉप्टर शहर के ऊपर उड़ रहा था, समायरा आसमान में उड़ने के रोमांच और पायलट के कौशल से इतनी प्रभावित हुईं कि उन्होंने उसी पल निर्णय लिया, “मैं पायलट बनना चाहती हूं.”

परिवार का समर्थन और शिक्षा की नींव

समायरा के इस सपने को उनके माता-पिता ने न केवल स्वीकार किया, उसे पूरा करने के लिए हर संभव प्रयास भी किया. उन्होंने समायरा को नई दिल्ली के विनोद यादव एविएशन अकादमी में दाखिला दिलवाया, जहां उन्होंने पायलट बनने के लिए सैद्धांतिक प्रशिक्षण प्राप्त किया.

हालांकि, भारत में वाणिज्यिक पायलट बनने के लिए रेडियो ट्रांसमिशन टेक्नोलॉजी परीक्षा देना अनिवार्य है, जिसे देने की न्यूनतम आयु 18 साल है. इस कारण समायरा को व्यावहारिक प्रशिक्षण शुरू करने से पहले इस परीक्षा के लिए इंतजार करना पड़ा.

उड़ान प्रशिक्षण और समर्पण

सैद्धांतिक प्रशिक्षण के बाद, समायरा ने महाराष्ट्र की कारवार एविएशन अकादमी में दाखिला लिया, जहां उन्होंने 200 घंटे की उड़ान का अनुभव प्राप्त किया. इस दौरान उन्होंने रात में उड़ान भरने, मल्टी-इंजन प्रशिक्षण और जटिल विमान संचालन जैसी महत्वपूर्ण क्षमताओं में महारत हासिल की.

छह महीने के गहन प्रशिक्षण और अपने दृढ़ संकल्प के बल पर, समायरा ने 18 साल की उम्र में वाणिज्यिक पायलट का लाइसेंस प्राप्त कर लिया.

समाज के लिए प्रेरणा

समायरा हुल्लूर की यह उपलब्धि विशेष रूप से उत्तरी कर्नाटक की लड़कियों के लिए एक रोल मॉडल के रूप में देखी जा रही है. इस क्षेत्र में लड़कियों को शिक्षा और करियर के लिए अधिक अवसर नहीं मिलते, लेकिन समायरा ने यह साबित कर दिया कि सपने पूरे करने की कोई सीमा नहीं होती.

बीजापुर के अक्का महादेवी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर करकरे ने कहा,”समायरा की सफलता उनकी लगन और कड़ी मेहनत का प्रमाण है. वह उत्तरी कर्नाटक की उन लड़कियों को प्रेरित करेंगी, जो अभी तक अपने सपनों को पूरा करने की हिम्मत नहीं जुटा पाईं हैं.”

प्रेरणा की मिसाल

समायरा की यह यात्रा हमें यह सिखाती है कि उम्र, पृष्ठभूमि या परिस्थितियां कभी भी सपनों के आड़े नहीं आ सकतीं. उन्होंने अपने पंखों को फैलाकर यह साबित किया कि अगर जुनून और समर्पण हो, तो असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है.

समायरा हुल्लूर अब न केवल एक पायलट हैं, बल्कि युवाओं के लिए प्रेरणा की मिसाल भी बन चुकी हैं. उनकी कहानी उन सभी को प्रेरित करती है, जो अपने सपनों को हकीकत में बदलने की चाह रखते हैं.

समायरा की सफलता ने साबित कर दिया है कि अगर किसी के सपने में जुनून और मेहनत हो, तो आसमान भी उनकी सीमा नहीं हो सकता. अब देश उनकी आने वाली उड़ानों का इंतजार कर रहा है, जो उन्हें और ऊंचाई पर लेकर जाएगी.