संभल: शाही जामा मस्जिद की सफेदी और सजावट पर विवाद, प्रशासन और इंतज़ामिया कमेटी में मतभेद
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मुस्लिम नाउ ब्यूरो,संभल
रमज़ान के मुबारक महीने की शुरुआत से पहले संभल की शाही जामा मस्जिद की सफेदी और सजावट के मुद्दे पर विवाद गहराता जा रहा है। मस्जिद की इंतज़ामिया (प्रबंधक) समिति इसे एक वार्षिक परंपरा मानती है, जबकि प्रशासन का कहना है कि यह संरचना भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा संरक्षित संपत्ति है, और किसी भी प्रकार के परिवर्तन या रंगाई-पुताई के लिए विशेष अनुमति आवश्यक है।
प्रशासन का रुख: बिना अनुमति कोई कार्य नहीं होगा
संभल के जिला मजिस्ट्रेट डॉ. राजेंद्र पेंसिया ने सोमवार को स्पष्ट किया कि मस्जिद की सफेदी और सजावट की अनुमति अभी नहीं दी जा सकती है।
“यह संरचना ASI द्वारा संरक्षित संपत्ति है, और बिना लिखित अनुमति के इस पर कोई कार्य नहीं किया जाएगा। हालांकि, समिति की अपील को मेरठ स्थित पुरातत्व विभाग की इकाई को भेज दिया गया है। मेरी राय में, रमज़ान से पहले मस्जिद की सफेदी और सजावट की कोई आवश्यकता नहीं है।”
उन्होंने यह भी कहा कि जब तक शिक्षण संस्थानों और अन्य सरकारी निकायों से स्पष्ट निर्देश नहीं मिलते, तब तक प्रशासन इस पर कोई निर्णय नहीं ले सकता है।
इंतज़ामिया कमेटी का दावा: सफेदी और सजावट एक वार्षिक परंपरा
शाही जामा मस्जिद प्रबंध समिति के अध्यक्ष जाफ़र अली ने कहा कि मस्जिद की सफेदी और सजावट रमज़ान से पहले हर साल की जाने वाली एक सामान्य प्रक्रिया रही है।
“पिछले कई दशकों से मस्जिद की सफेदी और सजावट नियमित रूप से की जाती रही है, और इसके लिए कभी किसी विशेष अनुमति की आवश्यकता नहीं पड़ी। लेकिन पिछले साल 24 नवंबर को अदालत के आदेश पर हुए सर्वेक्षण के बाद परिस्थितियां बदल गईं।”
उन्होंने आगे बताया कि स्थानीय प्रशासन को इस विषय में अवगत करा दिया गया है, और वे इस पर चर्चा के लिए एक विशेष बैठक आयोजित करने की उम्मीद कर रहे हैं।
पिछले साल हुए विवाद और हिंसा का असर
यह मामला इसलिए भी संवेदनशील हो गया है क्योंकि 24 नवंबर 2023 को एक सर्वेक्षण के दौरान हुई हिंसा में चार लोगों की मौत हो गई थी और 30 से अधिक लोग घायल हो गए थे।
इस घटना के बाद प्रशासन किसी भी संवेदनशील कार्रवाई को लेकर सतर्क है और किसी भी प्रकार की गतिविधि को नियंत्रित ढंग से संचालित करना चाहता है।
ASI और पुरातत्व विभाग की चुप्पी
संभल मस्जिद का मामला अभी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) और अदालत में विचाराधीन है, जिसके चलते मेरठ पुरातत्व विभाग के अधिकारी वी एस रावत ने इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं की है।
हालांकि, पुरातत्व विभाग के शास्त्री नगर कार्यालय में अब तक कोई आधिकारिक पत्र प्राप्त नहीं हुआ है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि इस विषय में अभी कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है।
स्थानीय समुदाय और राजनीतिक दृष्टिकोण
इस विवाद के बीच स्थानीय समुदाय में मिश्रित प्रतिक्रियाएँ देखने को मिल रही हैं।
- कुछ लोगों का मानना है कि मस्जिद की सफेदी और सजावट रमज़ान से पहले होनी चाहिए, क्योंकि यह धार्मिक परंपरा का हिस्सा है।
- वहीं, कुछ लोग प्रशासन के इस रुख का समर्थन कर रहे हैं कि संवेदनशील मुद्दों पर सावधानी बरतनी चाहिए और जब तक कोई आधिकारिक अनुमति न मिले, तब तक कोई बदलाव नहीं किया जाना चाहिए।
क्या हो सकता है अगला कदम?
इस पूरे विवाद को देखते हुए तीन संभावित निर्णय सामने आ सकते हैं:
- ASI और स्थानीय प्रशासन की अनुमति मिलने के बाद सफेदी और सजावट का कार्य हो सकता है।
- कोई अस्थायी समाधान निकाला जा सकता है, जिसमें मामूली मरम्मत की अनुमति दी जाए।
- स्थानीय प्रशासन और अदालत इस पर रोक लगा सकते हैं, और मस्जिद को यथावत रखने का आदेश दे सकते हैं।
प्रशासन और समुदाय के बीच संवाद आवश्यक
संभल की शाही जामा मस्जिद का यह मुद्दा धार्मिक परंपराओं और प्रशासनिक नियमों के बीच संतुलन स्थापित करने की आवश्यकता को दर्शाता है।
- प्रशासन कानूनी बाध्यताओं को ध्यान में रखकर कोई भी निर्णय लेना चाहता है।
- इंतज़ामिया समिति और स्थानीय समुदाय अपनी धार्मिक परंपराओं को बनाए रखना चाहते हैं।
अगले कुछ दिनों में इस मुद्दे पर प्रशासन की तरफ से कोई ठोस निर्णय लिया जा सकता है, ताकि रमज़ान से पहले इस विवाद का शांतिपूर्ण समाधान निकाला जा सके।
🔹 आप इस मुद्दे पर क्या सोचते हैं? क्या मस्जिद की सफेदी की अनुमति मिलनी चाहिए या प्रशासन का रुख सही है? अपनी राय हमें कमेंट में बताएं!