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संभल जामा मस्जिद विवाद: पुलिस की कार्रवाई, अदालत के फैसले और राजनीतिक आरोपों के बीच मची खलबली

मुस्लिम नाउ ब्यूरो | संभल ,नई दिल्ली

उत्तर प्रदेश के संभल जिले में शाही जामा मस्जिद विवाद के बाद हुए संघर्ष में पांच मुस्लिम युवकों की मौत और पुलिस की कार्रवाई को लेकर नए सिरे से बहस छिड़ गई है. सोशल मीडिया पर पुलिसकर्मियों की ओर से भीड़ पर गोली चलाने और मुस्लिम घरों पर पत्थर फेंकने के वीडियो और तस्वीरें वायरल हो रही हैं. इन वीडियो को लेकर आम जनता और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग तेज कर दी है.

संभल में हुई इस हिंसा के बाद यूपी पुलिस ने कथित “दंगाइयों” की तस्वीरें सोशल मीडिया पर साझा कीं. इसके जवाब में सोशल मीडिया पर एक पुलिस अधिकारी, सीओ अनुज चौधरी के खिलाफ गंभीर आरोप लगाते हुए उनके पुराने विवादों की जानकारी साझा की गई.

मामला क्या है?

संभल की ऐतिहासिक शाही जामा मस्जिद के सर्वेक्षण के आदेश के बाद वहां हिंसा भड़क उठी. इस दौरान पुलिस और स्थानीय लोगों के बीच झड़पें हुईं, जिनमें पांच मुस्लिम युवकों की मौत हो गई. पीड़ित परिवारों ने पुलिस पर सीधे तौर पर गोली चलाने का आरोप लगाया है, खासकर पुलिस कप्तान कृष्ण कुमार बिश्नोई और सीओ अनुज चौधरी का नाम लिया जा रहा है..

पीड़ित परिवारों और स्थानीय समुदाय का कहना है कि पुलिस ने हिंसा भड़काने में अहम भूमिका निभाई और अपने कर्तव्यों का दुरुपयोग किया.

अनुज चौधरी पर लगे आरोप

सीओ अनुज चौधरी का नाम बार-बार विवादों में घिरता रहा है. सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ लगाए गए आरोप इस प्रकार हैं:

  • खेल कोटे से नौकरी: पुलिस की परीक्षा पास किए बिना खेल कोटे के आधार पर उन्हें नियुक्ति मिली.
  • धार्मिक कार्यक्रम में भागीदारी: ड्यूटी के दौरान एक धार्मिक भजन गाने का वीडियो पहले वायरल हो चुका है.
  • विवादित तबादले: रामपुर में आजम खान से बहस, दादरी में विजय पंडित हत्याकांड, और मुजफ्फरनगर में विक्की त्यागी हत्याकांड जैसे मामलों में उनका नाम सामने आया.
  • स्थानीय आरोप: संभल में उनके खिलाफ धमकाने और मारपीट की शिकायतें पहले भी दर्ज हुई हैं.

अदालत की भूमिका पर उठे सवाल

शाही जामा मस्जिद का सर्वेक्षण कराने के आदेश पर स्थानीय अदालत और प्रशासन की मंशा पर सवाल खड़े हो रहे हैं. आरोप लगाया जा रहा है कि अदालत ने दूसरी पक्ष को सुने बिना ही यह फैसला सुना दिया. सुप्रीम कोर्ट के एक वरिष्ठ वकील ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा, “यदि हर मस्जिद के नीचे मंदिर खोजने की प्रक्रिया शुरू होगी, तो हर मंदिर के नीचे बौद्ध स्थल भी मिल सकता है.”

उन्होंने जज की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए कहा कि ऐसे फैसले न्यायपालिका की निष्पक्षता पर सवाल खड़े करते हैं.

राजनीतिक आरोप और सियासी खींचतान

इस घटना को लेकर यूपी सरकार और केंद्र सरकार के बीच सियासी खींचतान की बात भी सामने आ रही है. एक राजनीतिक दल के नेता ने आरोप लगाया कि यह पूरा मामला राज्य को अस्थिर करने और साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की साजिश है.

उन्होंने यह भी दावा किया कि विहिप की सूची में शाही जामा मस्जिद का नाम नहीं था, फिर भी इसे विवादित बनाने की कोशिश की गई.

सोशल मीडिया पर आक्रोश

सोशल मीडिया पर पुलिस की कार्रवाई के वीडियो वायरल हो रहे हैं, जिनमें पुलिसकर्मी मुस्लिम घरों पर पत्थर फेंकते दिख रहे हैं. एक वायरल पोस्ट में लिखा गया:”दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश की पुलिस संभल में मुसलमानों के घरों पर पत्थरबाजी कर रही है. इसी हिंसा में पांच बेगुनाह मुसलमानों की जान गई है.”

मामले की वर्तमान स्थिति

संभल हिंसा में मारे गए पांच युवकों के परिवार न्याय की गुहार लगा रहे हैं. स्थानीय प्रशासन और पुलिस के रवैये को लेकर नाराजगी बढ़ रही है. इस घटना ने उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था और प्रशासन की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि इस मामले में प्रशासन और न्यायपालिका क्या कदम उठाते हैं और क्या पीड़ित परिवारों को न्याय मिल सकेगा.