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संभल जामा मस्जिद विवाद: तीन मुस्लिम युवाओं की मौत, कई सवाल खड़े हुए

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

उत्तर प्रदेश के संभल की जामा मस्जिद में सर्वे के दौरान हुई पुलिस फायरिंग और तीन मुस्लिम युवाओं की मौत ने न केवल संवेदनशील सवाल खड़े किए हैं, बल्कि राज्य सरकार और प्रशासन की भूमिका पर भी गंभीर प्रश्नचिन्ह लगाए हैं. इस घटना ने स्थानीय जनता, मुस्लिम संगठनों और देश के बौद्धिक वर्ग को झकझोर दिया है.

पहला सवाल यही है कि मस्जिद और मकबरे को मंदिर बताकर हंगामा पैदा करने वाले क्या देश को अस्थिर रखना चाहते हैं? एक अहम सवाल यह भी है किक निचली अदालतें ऐसे आवेदन पर तत्तकाल सर्वे की इजाजत देने की हड़बड़ी में क्यों रहती हैं ? इस कड़ी में एक और सवाल, संभल मस्जिद के सर्वे के दौरान कट्टरवादी हिदुओं को नारे लगाने की इजाजत किसके इशारे पर दी गई ? एक दिन पहले जब सर्वे में किसी तरह की कोई नारेबाजी नहीं की गई तो फिर अगले दिन ऐसा क्यों हुआ ? वीडियो फुटेज मे साफ दिख रहा है कि लोग नारो लगाते हुए मस्जिद की ओर बढ़ रहे हैं और पुलिस वाले उन्हें खामोश कराने या रोकने का कोई प्रयास नहीं कर रहे हैं. क्यों ? इन सारे हंगामे में तीन मुस्ल्मि नौजवानों की मौत का जिम्मेदार कौन है ? क्या उन्हें उकसाने वाला या पुलिस प्रशासन की निष्क्रियता ?

घटना का क्रम

संभल की जामा मस्जिद और उससे जुड़े मकबरे को लेकर किए जा रहे दावे के तहत निचली अदालत के आदेश पर सर्वे की इजाजत दी गई. पहले दिन सर्वे प्रक्रिया शांतिपूर्ण रही, लेकिन दूसरे दिन माहौल अचानक बिगड़ गया. वीडियो फुटेज में स्पष्ट देखा गया कि कट्टरपंथी हिंदुओं ने मस्जिद के आसपास भड़काऊ नारेबाजी की.

विडंबना यह रही कि पुलिस इस नारेबाजी को रोकने या भड़काऊ भीड़ को काबू करने में असफल रही. इसके परिणामस्वरूप मस्जिद के पास हिंसा भड़क गई, जिसमें पुलिस ने फायरिंग की. इस फायरिंग में तीन मुस्लिम युवकों की जान चली गई.

मौलाना महमूद असद मदनी का कड़ा रुख

जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने इस घटना पर गहरा दुख और नाराजगी व्यक्त की. उन्होंने कहा कि यह घटना राज्य सरकार और प्रशासन की विफलता का नतीजा है. मौलाना मदनी ने इसे अन्यायपूर्ण और भेदभावपूर्ण करार देते हुए कहा कि निर्दोष लोगों की जान गई, और इसके लिए जिम्मेदार पुलिस और प्रशासन पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए.

मौलाना मदनी ने सवाल उठाया कि मस्जिद में सर्वे के दौरान भड़काऊ नारेबाजी और कट्टरपंथियों को उकसाने की अनुमति किसके इशारे पर दी गई? उन्होंने कहा कि पहले दिन सर्वे प्रक्रिया शांतिपूर्ण थी, लेकिन दूसरे दिन अचानक हिंसा क्यों भड़की?

मस्जिदों को निशाना बनाना खतरनाक: मदनी

मौलाना मदनी ने मस्जिदों में मंदिर खोजने के दावों को देश की शांति और सांप्रदायिक सौहार्द के लिए खतरनाक बताया. उन्होंने कहा कि इस तरह की गतिविधियां संविधान और न्यायिक प्रणाली के खिलाफ हैं. उन्होंने याद दिलाया कि संविधान धार्मिक स्थलों की 1947 की स्थिति को सुरक्षित रखने की गारंटी देता है.

उन्होंने यह भी कहा कि अदालतें ऐसे संवेदनशील मामलों में जल्दबाजी में सर्वे के आदेश जारी कर रही हैं, जो न्यायिक प्रक्रिया की गंभीरता पर सवाल खड़े करता है.

जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने इस घटना पर निम्नलिखित मांगें रखीं:

  • अदालत की निगरानी में निष्पक्ष जांच: घटना की पूरी जांच हो और दोषी पुलिसकर्मियों और अधिकारियों को सख्त सजा दी जाए.
  • पीड़ित परिवारों को न्याय और मुआवजा: तीन युवकों के परिवारों को तुरंत मुआवजा दिया जाए और न्याय दिलाया जाए.
  • शांति और सामाजिक सौहार्द की प्राथमिकता: प्रशासन को सुनिश्चित करना चाहिए कि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो.

जमीयत के प्रयास

जमीयत उलेमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना हकीमुद्दीन कासमी घटना के बाद से लगातार स्थानीय लोगों के संपर्क में हैं. वह शांति और सामाजिक सौहार्द बनाए रखने के लिए काम कर रहे हैं.

निचली अदालतों पर सवाल

मौलाना मदनी ने निचली अदालतों द्वारा सर्वे के आदेश पर भी सवाल उठाया. उन्होंने कहा कि अदालतें धार्मिक स्थलों की संवेदनशीलता को समझे बिना जल्दबाजी में निर्णय ले रही हैं, जिससे सांप्रदायिक तनाव बढ़ता है.

सरकार और प्रशासन की जिम्मेदारी

मौलाना मदनी ने कहा कि हर नागरिक को संविधान द्वारा समानता, सम्मान और सुरक्षा का अधिकार है. यदि कोई सरकार या प्रशासन किसी समुदाय की सुरक्षा को नजरअंदाज करता है, तो यह संविधान और कानून का उल्लंघन है.

संभल की जामा मस्जिद में हुई यह घटना न केवल स्थानीय प्रशासन की विफलता को उजागर करती है, बल्कि सांप्रदायिक सौहार्द और संवैधानिक मूल्यों पर भी गंभीर सवाल खड़े करती है. यह समय है कि सरकार और न्यायपालिका इस पर विचार करें और ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए सख्त कदम उठाएं.

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