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संभल हिंसा: पत्थरबाजी के आरोप में 87 दिन जेल में रही फरहाना, सबूतों के अभाव में जमानत

मुस्लिम नाउ ब्यूरो,संभल, उत्तर प्रदेश

बीते नवंबर में संभल में हुई हिंसा के दौरान पत्थरबाजी करने के आरोप में गिरफ्तार की गई 45 वर्षीय फरहाना को 87 दिन जेल में बिताने के बाद अब न्याय मिला है। सबूतों के अभाव में कोर्ट ने उन्हें जमानत दे दी है। पुलिस की स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (SIT) ने अपनी रिपोर्ट में साफ किया कि फरहाना के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं मिला है, जिसके बाद कोर्ट ने उन्हें एक लाख रुपये के निजी मुचलके पर रिहा करने का आदेश दिया।

कैसे फर्जी फंसाया गया फरहाना को?

संभल हिंसा के दौरान पुलिस ने फरहाना को दंगा भड़काने, हत्या के प्रयास, सरकारी कार्य में बाधा पहुंचाने जैसी गंभीर धाराओं के तहत गिरफ्तार किया था। लेकिन SIT की जांच में यह सामने आया कि फरहाना का नाम झूठे आरोपों के तहत घसीटा गया था। फरहाना की पड़ोसी जिकरा ने पुलिस को दिए बयान में स्वीकार किया कि उसने अपनी बहन मरियम को बचाने के लिए फरहाना का नाम लिया था। दरअसल, फरहाना और जिकरा के बीच पुराना विवाद था, जिसका फायदा उठाकर फरहाना को झूठे मुकदमे में फंसा दिया गया।

120 किलो की फरहाना छत पर चढ़ ही नहीं सकती थी

SIT ने कोर्ट में पेश की गई रिपोर्ट में बताया कि फरहाना का वजन लगभग 120 किलो है और वह शारीरिक रूप से इतनी सक्षम नहीं हैं कि दंगे के दौरान किसी छत पर चढ़कर पत्थरबाजी कर सकें। इसके अलावा, हिंसा स्थल से उनके खिलाफ कोई वीडियो फुटेज या अन्य सबूत नहीं मिले।

संभल सर्किल ऑफिसर कुलदीप कुमार ने कहा, “हिंसा के दौरान गिरफ्तार की गई जिकरा ने बयान में बताया कि उसने अपनी बहन को बचाने के लिए फरहाना का नाम झूठा लिया था। इस मामले की जांच के दौरान हमें फरहाना के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं मिला। SIT ने कोर्ट में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी है।”

87 दिन जेल में बिताने के बाद मिली रिहाई

संभल हिंसा के बाद पुलिस ने कुल 26 लोगों को गिरफ्तार किया था, जिनमें से 25 के खिलाफ आरोप तय किए गए, लेकिन फरहाना के खिलाफ कोई भी प्रमाण नहीं मिला। इंस्पेक्टर लोकेंद्र त्यागी ने कोर्ट से अपील करते हुए कहा कि फरहाना को न्यायिक हिरासत में रखने का कोई औचित्य नहीं है। कोर्ट ने इस दलील को स्वीकार करते हुए फरहाना को रिहा करने का आदेश दिया।

परिजनों का दर्द: “बेकसूर होते हुए भी जेल में रहना पड़ा”

फरहाना के परिजनों के लिए ये 87 दिन किसी बुरे सपने से कम नहीं थे। उनके परिवारवालों ने कहा कि उन्हें अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ा। फरहाना के भाई ने कहा, “हमारी बहन को फर्जी तरीके से फंसाया गया। बिना किसी अपराध के उसने जेल में इतने दिन बिता दिए। हमें न्यायिक प्रक्रिया पर भरोसा था और अंततः न्याय मिला।”

फरहाना की रिहाई पर क्या बोले कानून विशेषज्ञ?

इस मामले को लेकर कई कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि “फरहाना के मामले से साफ है कि बिना जांच-पड़ताल के किसी निर्दोष को गिरफ्तार करने से लोगों की जिंदगी बर्बाद हो सकती है। पुलिस को इस तरह के मामलों में अधिक सतर्कता बरतनी चाहिए।”

क्या बेगुनाहों को जेल भेजने पर कोई जवाबदेही होगी?

फरहाना को 87 दिनों तक जेल में रखने के बाद अब जब वह निर्दोष साबित हुई हैं, तो बड़ा सवाल यह है कि क्या झूठे मामलों में फंसाने वालों पर कोई कार्रवाई होगी? यह मामला न्याय प्रणाली में सुधार और पुलिस की जवाबदेही को लेकर गंभीर बहस छेड़ सकता है। फरहाना की रिहाई उन सभी लोगों के लिए सबक हो सकती है, जिन्हें झूठे आरोपों में फंसाया जाता है।

संभल हिंसा की यह घटना एक बार फिर न्यायिक प्रक्रिया की खामियों और निर्दोष लोगों को गलत मामलों में फंसाने के खतरों की ओर इशारा करती है। सवाल यह भी है कि क्या झूठे आरोप लगाने वालों पर कोई कानूनी कार्रवाई होगी?

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