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सामवेद का एक मुसलमान ने किया उर्दू अनुवाद, आरएसएस ने की तारीफ

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

सनातन धर्म में खास महत्व रखने वाले ग्रंथ सामवेद का एक मुसलमान इकबाल दुर्रानी ने किया है. दुर्रानी जाने माने फिल्म निर्देश हैं. उनकी इस उपलब्धि पर आरएसएस नेता इंद्रेश कुमार ने कहा कि सामवेद विश्व का एक ऐसा ग्रंथ है, जिससे विश्व की सभी सभ्यताएं और संस्कृतियां हजारों हजार वर्ष से प्रभावित होती चली आ रही हैं. सामवेद का एक साथ हिंदी व उर्दू अनुवाद हुआ है. इसकी पहली विशेषता है. दूसरी विशेषता हिंदी उर्दू अनुवाद करने वाले इकबाल दुर्रानी हैं जो मजहब से मुसलमान है, पर देश से हिंदुस्तानी भारतीय हैं. आरएसएस नेता ने कहा कि इससे यह संदेश जाएगा कि मजहबो में हिंसा, कट्टरता, कन्वर्जन नहीं होना चाहिए बल्कि मजहबो में प्यार, भाईचारा हो और सभी एक दूसरे के मजहबो की इज्जत करे, सम्मान करे.

उधर, सामवेद का उर्दू में अनुवाद करने वाले इकबाल दुर्रानी का मानना है कि यह पुस्तक इश्क के तराना है, जिसे हर किसी को पढ़ना चाहिए.उन्होंने कहा कि मदरसों में इस पुस्तक को पढ़ाया जाना चाहिए, जिससे कि बच्चे यह जान सके कि क्या सही है क्या गलत है? उन्होंने कहा कि जब तक बच्चे पढ़ेंगे नहीं तब तक जानेंगे कैसे की क्या चीज सही है क्या चीज गलत. उन्हें जो बताया जाता है, वही वह समझते हैं. ऐसे में जब बच्चे सामवेद को पढ़ेंगे तब जाकर उन्हें यह समझ में आएगा कि यह पुस्तक क्या है.

इकबाल दुर्रानी ने कहा कि आम बच्चों तक सही तरीके से यह पुस्तक पहुंचे इसलिए इसको सचित्र बनाया गया है. उन्होंने कहा कि चित्र एक ऐसा माध्यम है जो कि समझने में आमजन को आसानी होती है.उनका साफ कहना था कि इसके बाद इसका डिजिटल वर्जन भी आएगा और बाकायदा इसको यूट्यूब पर अपलोड किया जाएगा. जिससे कि हर व्यक्ति के मोबाइल में हर व्यक्ति के लैपटॉप में सामवेद पहुंच सके.

इकबाल दुर्रानी ने कहा कि इस पुस्तक के अनुवाद में सबसे बड़ी परेशानी मेरा पेशा था. मैं फिल्मों में काम कर रहा था और फिल्मों में काम करते हुए इस पुस्तक का अनुवाद करना बहुत ही मुश्किल था, दूसरा मैं फिजिक्स का स्टूडेंट था और साथ में मैं मुसलमान भी था तो कई सारी चीजें ऐसी थी जो मेरे अनुवाद के काम में आड़े आ रही थी.

इसलिए मैंने फिल्मों को छोड़ना या फिर कह सकते हैं थोड़े समय के लिए ब्रेक लेना बेहतर समझा. तब कहीं जाकर इस पुस्तक का अनुवाद संभव हो पाया है.इकबाल दुर्रानी ने कहा कि इस पुस्तक को अनुवाद करना रेत के दरिया में तैरने के समान है यही वजह है कि उनकी कोशिश है कि अनुवाद के बाद जन-जन तक इसको पहुंचाया जाए क्योंकि उनका मानना है कि यह पुस्तक का तराना है और कौमी एकता का प्रतीक है.

इकबाल दुर्रानी ने कहा की नफरत हर जगह पढ़ाई जा रही है. इतिहास को मिटाया जा रहा है, इतिहास को काटा जा रहा है. यह सब चालू है.उन्होंने कहा की मैं किसी एक की तरफ उंगली नहीं करना चाहता मैं तो सब लोगों के लिए एक ही बात कहता हूं कि सब को जानना चाहिए और सबको पढ़ना चाहिए ताकि वह भ्रांतियां को दूर किया जा सके.

हम हमेशा अपनी तरफ उठाते ही नहीं है उंगलियां हमेशा दूसरों की तरफ उंगली उठाते हैं.इकबाल दुर्रानी ने कहा की मुस्लिम शासन के जब 400 साल पूरे हो गए तब दारा शिकोह जो 1620 या 25 के आसपास पैदा हुए थे उन्होंने 52 उपनिषदों का अनुवाद कराया.लोगों ने कहा कि असल मूल पुस्तक तो वेद है तो उन्होंने कहा कि ठीक है हम वेदों का अनुवाद करेंगे लेकिन इसी बीच औरंगजेब की तलवार चमकी और उसने दारा शिकोह का सर कलम करवा दिया.

तो जो ख्वाब लाल किला बनाने वाले शाहजहां की हुकूमत में अधूरे रह गए थे उसका आपको मैं पूरा करने जा रहा हूं.मैंने अपने पांव में सफर की जंजीर बांध ली है और इस पुस्तक के प्रचार और प्रसार में लग गया हूं. इसको जन-जन तक पहुंचा जाऊंगा. मेरी सांस रुक भी जाएगी लेकिन मैं दिल से दिल तक सफर करता रहूंगा बाकी उसका रिजल्ट कितना आता है यह पता नहीं.

हम किसी के साथ नहीं हैं. हम वेद के साथ हैं और जो वेद के साथ है वह मेरे साथ हैं जो कलाम है उसमें मोहब्बत का कलाम है और उस कलाम में जो मेरे साथ है. मैं उसके साथ हूं मैंने धर्म को माना है लेकिन धर्म से अधिक मैंने कर्म को प्रधानता दी है.उन्होंने कहा हमारा बंटवारा धर्म के आधार पर नहीं बल्कि कर्मों के आधार पर होना चाहिए. जो भी खराब हो खराब है लेकिन जो खराब है और धार्मिक दृष्टिकोण से वह अपना है तो हम उसको बचाने में लग जाते हैं यह ठीक नहीं है.

जब यह किताब लिखना शुरू किया तो फिल्म वालों ने बोला अब तो यह भगवान का काम करने लगा. अब यह क्या इसको लिखेगा. तो कोई मेरे पास काम लेकर आया ही नहीं.मैं 6 वर्षों तक बिना काम के रहा इस समय मेरी कोई आय का जरिया नहीं रहा लेकिन मैं इस भी सर्वाइवल किया मुंबई में परिवार को रखा मुझे मालूम था कि मुश्किल है इस बीच में करोड़ों रुपए कमा सकता था लेकिन यह त्याग करना मुश्किल था.

मैं इस बात को समझ चुका था कि यह जो पैसे हैं वह जिंदगी के लिए है लेकिन सामवेद जिंदगी से इधर है. अगर इस पर मैं कुछ काम करता हूं तो हमेशा के लिए इससे जुड़ा रहूंगा.वैसे, इकबाल दुर्रानी आरएसएस के करीब माने जाते हैं. उन्होंने इस्लाम का कितना मुताला किया है, अब तक उनके किसी इंटरव्यू में यह बात सामने नहीं आई है.