मुस्लिम स्वामित्व वाले विश्वविद्यालयों को चुनिंदा रूप से निशाना बनाया जाना चिंताजनक: मलिक मोतसिम खान
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मुस्लिम नाउ ब्यूरो,नई दिल्ली
जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के उपाध्यक्ष मलिक मोतसिम खान ने भाजपा शासित राज्य सरकारों द्वारा मुस्लिम स्वामित्व वाले विश्वविद्यालयों को चुनिंदा रूप से निशाना बनाए जाने पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि हाल के दिनों में इन शैक्षणिक संस्थानों के खिलाफ की जा रही कानूनी कार्रवाइयों और प्रशासनिक दमन एक पैटर्न का संकेत देते हैं, जो शिक्षा के क्षेत्र में मुस्लिम नेतृत्व की प्रगति को रोकने की साजिश प्रतीत होता है।
मुस्लिम विश्वविद्यालयों पर बढ़ते दबाव और दमन
मलिक मोतसिम खान ने अपने बयान में कहा, “देश भर में भाजपा शासित राज्यों में मुस्लिमों द्वारा संचालित शैक्षणिक संस्थानों को निशाना बनाकर की गई गिरफ्तारियों और कानूनी कार्रवाइयों की घटनाएं चिंता का विषय हैं।” उन्होंने असम के यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी, मेघालय (USTM) के चांसलर महबूब-उल-हक की मध्य रात्रि में गिरफ्तारी, राजस्थान में मौलाना आज़ाद विश्वविद्यालय के अध्यक्ष के उत्पीड़न, उत्तर प्रदेश में मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय पर लगातार की जा रही प्रशासनिक कार्रवाइयों और उत्तराखंड स्थित ग्लोकल विश्वविद्यालय की संपत्तियों की कुर्की का हवाला देते हुए कहा कि इन घटनाओं से स्पष्ट होता है कि मुस्लिम नेतृत्व वाले उच्च शिक्षण संस्थानों को चुनिंदा रूप से निशाना बनाया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि यह सिलसिला केवल प्रशासनिक दबाव तक ही सीमित नहीं है, बल्कि राजनेताओं और कुछ मीडिया समूहों द्वारा भी मुस्लिम विश्वविद्यालयों को कट्टरपंथ और आतंकवाद से जोड़ने की कोशिशें की जा रही हैं, जिससे इन संस्थानों की साख धूमिल हो रही है।
उच्च शिक्षा की साख पर खतरा
जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के वरिष्ठ नेता ने कहा, “हमारा मानना है कि इस तरह की कार्रवाइयों से न केवल इन विश्वविद्यालयों की प्रतिष्ठा धूमिल होती है, बल्कि वहां अध्ययनरत हजारों छात्रों और शिक्षकों के भविष्य पर भी संकट मंडराने लगता है। इन विश्वविद्यालयों को मान्यता प्राप्त शैक्षणिक उपलब्धियों के बावजूद निशाना बनाया जा रहा है, जो शिक्षा और समान अवसर के संवैधानिक अधिकार के खिलाफ है।”
उन्होंने कहा कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है, जहां सभी नागरिकों को जाति, धर्म और पंथ के भेदभाव के बिना समान अधिकार प्राप्त हैं। लेकिन यदि सरकारें विशेष रूप से मुस्लिम स्वामित्व वाले संस्थानों को निशाना बनाएंगी, तो यह न केवल संविधान के मूल मूल्यों पर चोट होगी, बल्कि देश की वैश्विक शैक्षिक प्रतिष्ठा भी प्रभावित होगी।
‘A ग्रेड’ प्राप्त विश्वविद्यालय भी निशाने पर
उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि भारत में नेशनल असेसमेंट एंड एक्रेडिटेशन काउंसिल (NAAC) द्वारा ‘A ग्रेड’ से मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय भी सरकार के निशाने पर हैं। यह शिक्षा नीति के भविष्य पर सवाल खड़ा करता है।
उन्होंने कहा, “यदि उच्च शिक्षा के इन प्रमुख केंद्रों को राजनीतिक अवसरवाद और सांप्रदायिक पूर्वाग्रह का शिकार बनाया जाता रहेगा, तो भारत में उच्च शिक्षा का भविष्य गंभीर संकट में पड़ जाएगा। इससे न केवल देश के भीतर शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित होगी, बल्कि विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत में अपने परिसर खोलने के लिए आमंत्रित करने की सरकार की कोशिशें भी धूमिल हो जाएंगी।”
सरकार से निष्पक्षता की मांग
मलिक मोतसिम खान ने सरकार से अपील करते हुए कहा कि “हम मुस्लिम स्वामित्व वाले उच्च शिक्षा संस्थानों को इस तरह से निशाना बनाए जाने की कार्रवाई को तुरंत रोकने की मांग करते हैं। राज्य सरकारों को इस तरह की सांप्रदायिक और वोट बैंक की राजनीति से बचना चाहिए, क्योंकि इससे हजारों छात्रों के शैक्षिक हितों पर गंभीर असर पड़ रहा है।”
उन्होंने अंत में कहा कि शिक्षा को राजनीति और सांप्रदायिकता से अलग रखा जाना चाहिए, ताकि भारत वास्तव में एक वैश्विक शैक्षिक शक्ति के रूप में उभर सके।