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स्वतंत्रता संग्राम में मुसलमानों की भूमिका पर सेमिनार: इस्लाम को बताया गया स्वतंत्रता का प्रतीक

मुस्लिम नाउ ब्यूरो,नई दिल्ली

इंस्टीट्यूट ऑफ स्टडी एंड रिसर्च, दिल्ली और जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के तहक़ीक़ व तस्नीफ़ विभाग ने “आधुनिक भारत को आकार देना और स्वतंत्रता आंदोलन में मुसलमानों की भागीदारी” विषय पर एक संयुक्त सेमिनार का आयोजन किया. यह सेमिनार जमाअत-ए-इस्लामी हिंद के मुख्यालय में आयोजित किया गया, जिसकी अध्यक्षता जमाअत के उपाध्यक्ष प्रोफेसर मोहम्मद सलीम इंजीनियर ने की.

प्रोफेसर मोहम्मद सलीम ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि मुसलमानों की संघर्ष में भागीदारी हमेशा उनकी आस्था और इस्लामी शिक्षाओं से प्रेरित रही है. इस्लाम अपने आप में एक आंदोलन है. यदि इसे वर्तमान संदर्भ में देखा जाए, तो इस्लाम एक स्वतंत्रता आंदोलन है जिसे हर युग में पैगंबरों ने समाज में चलाया है. इसका उद्देश्य मानवता को सच्ची आजादी दिलाना है.

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उन्होंने कहा कि अंग्रेजों ने अपने हितों के आधार पर भारत का इतिहास लिखा, जिससे विभिन्न समुदायों के बीच की एकता को तोड़ने का प्रयास किया गया. वर्तमान सरकार भी इसी तरह के प्रयास कर रही है. इतिहास का पुनर्लेखन पक्षपातपूर्ण मानसिकता से किया जा रहा है. हमें इतिहास को सही दृष्टिकोण से पढ़ना चाहिए, ताकि हम अपने भविष्य को विस्तृत रूप में देख सकें.

सेमिनार में चार शोध पत्र प्रस्तुत किए गए. इतिहासकार और लेखक सैयद उबैद रहमान ने “भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में उलमा की भूमिका” पर चर्चा करते हुए कहा कि 1857 के विद्रोह में मुसलमानों, विशेषकर मुस्लिम विद्वानों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी.

मौलवी लियाकत अली, अल्लामा फजल हक खैराबादी, हाजी इमदादुल्लाह महाजिर मक्की और अन्य विद्वानों ने इस विद्रोह का नेतृत्व किया. देश की आजादी के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया.

वरिष्ठ पत्रकार सय्यदा सालेहा जबीन ने “स्वतंत्रता संग्राम में मुस्लिम महिलाओं की भूमिका” पर प्रकाश डाला. बेगम हजरत महल, आब्दी बानु बेगम, अरुणा आसिफ अली सहित अन्य महिलाओं के योगदान का उल्लेख किया. उन्होंने बताया कि किस प्रकार इन महिलाओं ने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

जामिया मिलिया इस्लामिया के प्रोफेसर डॉ. अब्दुल्लाह चिश्ती ने “मुस्लिम पॉलिटिकल लीडरशिप: शेपिंग द डिस्कोर्स ऑफ फ्रीडम मूवमेंट” पर अपनी बात रखते हुए कहा कि अधिकांश मुस्लिम समुदाय एक अलग देश नहीं चाहता था. उन्होंने विभिन्न आंदोलनों में अन्य धर्मों के लोगों के साथ मिलकर देश को औपनिवेशिक शासन से मुक्त कराने में योगदान दिया.

डॉ. अभय कुमार ने “भारत में इस्लामी सांस्कृतिक विरासत के स्थायी निशान” विषय पर अपनी बात रखते हुए कहा कि भारत की विरासत पर इस्लामी सभ्यता का गहरा प्रभाव है. हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि वर्तमान और भविष्य के भारत पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है.

जमाअत-ए-इस्लामी हिंद दिल्ली जोन के अमीर मोहम्मद सलीमुल्लाह खान ने उद्घाटन भाषण में बताया कि जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने भारतीय इतिहास को सही रूप में प्रस्तुत करने के लिए एक दीर्घकालिक परियोजना शुरू करने का निर्णय लिया है.

उन्होंने कहा कि सेमिनार का उद्देश्य स्वतंत्रता संग्राम और देश के निर्माण में मुसलमानों की भूमिका की समीक्षा करना और इसे तर्कसंगत ढंग से समाज के सामने रखना है.