जामिया मिल्लिया इस्लामिया में “ट्रेवल, ट्रांसपोर्टेशन एंड ट्रांसलेशन” पर संगोष्ठी
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साहित्य अकादमी के सहयोग से हुआ विशेष आयोजन
मुस्लिम नाउ ब्यूरो,नई दिल्ली
जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग ने साहित्य अकादमी के सहयोग से “ट्रेवल, ट्रांसपोर्टेशन एंड ट्रांसलेशन” विषय पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया। यह संगोष्ठी विश्वविद्यालय के मीर अनीस हॉल में संपन्न हुई, जिसमें यात्रा, अनुवाद और साहित्य के अंतर्संबंधों पर विस्तृत चर्चा की गई।
इस शैक्षणिक आयोजन का उद्देश्य यह पता लगाना था कि कैसे यात्रा साहित्य को प्रभावित करती है और कैसे साहित्य भौतिक और आध्यात्मिक यात्राओं को प्रेरित करता है, साथ ही इन अनुभवों को संभव बनाने में अनुवाद की महत्वपूर्ण भूमिका पर भी प्रकाश डाला गया।

संगोष्ठी का उद्घाटन और प्रथम सत्र
संगोष्ठी की शुरुआत जामिया मिल्लिया इस्लामिया के अंग्रेजी विभाग की डॉ. सबा बशीर के स्वागत वक्तव्य से हुई। उन्होंने यात्रा और अनुवाद की पारंपरिक परिभाषाओं से परे जाकर इनके गहरे अर्थों को समझने की जरूरत पर बल दिया।
इसके बाद प्रख्यात अनुवादक सुश्री मारिया स्काकुज पुरी ने अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने पोलिश, हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं में अपने दशकों के अनुवाद कार्य से प्राप्त अंतर्दृष्टियों को प्रस्तुत किया।
इस सत्र के अंत में अंग्रेजी विभाग के प्रमुख प्रो. मुकेश रंजन ने अध्यक्षीय संबोधन दिया। उन्होंने कहा कि,
“यात्रा और स्थानांतरण हमारे द्वारा खुद के बारे में बताई जाने वाली कहानियों को बदल देते हैं और यह परिवर्तन साहित्य में स्पष्ट रूप से झलकता है।”
दूसरा सत्र: अनुवाद और कला का संबंध
दूसरे सत्र की अध्यक्षता दिल्ली विश्वविद्यालय के जानकी देवी मेमोरियल कॉलेज की प्रिंसिपल प्रो. स्वाति पाल ने की। इस सत्र में तीन विद्वानों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए।
- डॉ. विनीता सिन्हा (दिल्ली विश्वविद्यालय, इंद्रप्रस्थ महिला कॉलेज) –
उन्होंने “जीवन के अनुभव और मध्यवर्ती अनुवाद: कला में अनकही कहानियों का विश्लेषण” विषय पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि अनुवाद और मौखिक परंपरा के बीच गहरा संबंध है और अनुवाद नए मीडिया के लिए नए अर्थ खोलता है। - डॉ. अंजना नीरा देव (दिल्ली विश्वविद्यालय, गार्गी कॉलेज) –
उन्होंने “भारतीय सड़कों पर चलते हुए, ‘मुझे एक और पल याद है जो केवल अपने आप को संदर्भित करता है’” विषय पर शोध पत्र प्रस्तुत किया। उन्होंने वेद मेहता और अन्य लेखकों के संदर्भ में बताया कि अनुवाद कैसे अन्य संस्कृतियों में जीवन के नए आयाम जोड़ता है। - डॉ. अमित रंजन –
उन्होंने औरंगज़ेब और दारा शिकोह के बीच पारंपरिक छवि (योद्धा बनाम कवि) की सामान्य धारणा को चुनौती दी और कहा कि दारा शिकोह केवल एक कवि नहीं थे बल्कि उन्होंने उपनिषदों के अनुवादक के रूप में एक अहम भूमिका निभाई थी।
तीसरा सत्र: ऐतिहासिक संदर्भों में अनुवाद और यात्रा

तीसरे सत्र की अध्यक्षता जेएमआई के अंग्रेजी विभाग की प्रो. निशात जैदी ने की। इस सत्र में दो प्रस्तुतकर्ता थे –
- डॉ. हारिस कदीर –
उन्होंने “जीवन का दस्तावेजीकरण/अनुवाद: औपनिवेशिक भारत के अंतिम दौर में तीन मुस्लिम महिलाओं की शैक्षणिक यात्राएँ” विषय पर शोध पत्र प्रस्तुत किया। इसमें अतिया फैजी (1877-1967), मोहम्मदी बेगम (1911-1990) और इकबालुन्निसा हुसैन (1897-1954) की इंग्लैंड में शिक्षा संबंधी यात्राओं पर प्रकाश डाला गया। - सुश्री चंदना दत्ता –
उन्होंने विभिन्न संस्कृतियों के बीच की खाई को पाटने में अनुवाद की भूमिका को समझाया। उन्होंने बताया कि अनुवाद और यात्रा दोनों में अन्वेषण और सांस्कृतिक समझ का तत्व शामिल होता है।
संगोष्ठी का समापन
संगोष्ठी का समापन डॉ. सबा महमूद बशीर के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ। इस आयोजन में 100 से अधिक छात्र, शोधार्थी और संकाय सदस्य उपस्थित रहे और इस शैक्षणिक चर्चा का लाभ उठाया।
निष्कर्ष: अनुवाद, यात्रा और साहित्य का अद्भुत संगम
यह संगोष्ठी एक महत्वपूर्ण बौद्धिक मंच साबित हुई, जिसने यह स्पष्ट किया कि यात्रा साहित्य को गहराई से प्रभावित करती है और अनुवाद इन अनुभवों को एक नई सांस्कृतिक दृष्टि प्रदान करता है।

इस आयोजन ने साहित्य, अनुवाद और यात्रा के बीच घनिष्ठ संबंधों को उजागर किया और शोधकर्ताओं को नए दृष्टिकोण विकसित करने के लिए प्रेरित किया।
इस तरह की और संगोष्ठियों के लिए जामिया मिल्लिया इस्लामिया और साहित्य अकादमी का यह संयुक्त प्रयास सराहनीय माना जा रहा है।