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शब-ए-बरात पर मालेगांव में हुए बम धमाके का मुकदमा 14 साल बाद भी नहीं सुलझा

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, मुंबई

सन 2008 में शब-ए-बरात के रोज मालेगांव के शकील गुड्स ट्रांसपोर्ट के सामने मोटरसाइकिल से धमाका करने वालों को अभी तक सजा नहीं मिली है. हालांकि, अब तक सजाए नहीं सुनाए जाने से केवल पीड़ित मुसलमान ही नहीं, वे लोग भी परेशान हैं जिन्हें इस मामले में आरोपी बनाया गया है. वे जल्द मामले के निपटारे की मांग कर रहे हैं. बता दें कि इस बम धमाके में करीब 10 लोगों की मृत्यु हुई थी और 1001 लोग घायल हुए थे.

मालेगांव विस्फोट में आरोपी बनाए गए कुलकर्णी ने हाल में इंडियान एक्सप्रेस अखबार को दिए एक इंटरव्यू में मुकदमे में देरी का आरोप लगाते हुए कहा था- घटना को 13 साल से अधिक बीत चुके हैं. मालेगांव बम विस्फोट मामले की रोजाना सुनवाई के लिए मुंबई में विशेष राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की अदालत गठित होने पर भी सुनवाई बहुत धीमी गति से चल रही है.

2008 के मालेगांव बम विस्फोट मामले के आरोपी समीर कुलकर्णी ने मांग की है कि मामले की सुनवाई में देरी नहीं होनी चाहिए और ‘‘प्रासंगिक गवाहों‘‘ से पूछताछ की जानी चाहिए.

कुलकर्णी ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि घटना को 13 साल बीत चुके हैं और मालेगांव बम विस्फोट मामले की रोजाना सुनवाई के लिए मुंबई में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की विशेष अदालत गठित होने के बावजूद सुनवाई बेहद धीमी गति से चल रही है.

इसके अलावा, कुलकर्णी ने कहा कि जब तक मामले के एक आरोपी कर्नल प्रसाद पुरोहित को ‘सेवा से बर्खास्त‘ नहीं किया जाता, तब तक विशेष एनआईए अदालत में त्वरित सुनवाई और मामले को समाप्त करना संभव नहीं होगा.

पुणे के रहने वाले कुलकर्णी ने 2019 में इसी तरह के आरोप लगाए थे और दावा किया था कि पुरोहित सहित ‘हाई प्रोफाइल‘ सह-आरोपियों के वकील इस मामले की सुनवाई में देरी करने के लिए ‘ संगठित तरीके से‘ काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘‘अदालत के समक्ष अब तक 223 गवाहों से पूछताछ की जा चुकी है, कई मुकर गए हैं. लेकिन महत्वपूर्ण और प्रासंगिक गवाहों से पूछताछ नहीं की जा रही है. मैं नियमित रूप से परीक्षण में भाग लेता हूं. इस ट्रायल पर मोटी रकम खर्च की जा रही है. लेकिन इसमें लगातार देरी हो रही है. मैं निर्दोष हूं. लेकिन जब तक अदालत मुझे बरी नहीं कर देती, मैं सामान्य जीवन नहीं जी सकता.
उन्हांेने कहा, तेरह साल पहले ही बीत चुके हैं. यह एक लंबा समय है. परीक्षण तेजी से और दैनिक आधार पर किया जाना चाहिए.‘‘

उन्होंने इंडियान एक्सप्रेस से बातचीत मंे कहाः ‘‘उन आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए जो उन्हें जमानत देते समय अदालत द्वारा निर्धारित शर्तों का पालन नहीं कर रहे हैं. उनकी जमानत रद्द होनी चाहिए.‘‘

कुलकर्णी ने महाराष्ट्र के गृह मंत्री दिलीप वालसे-पाटिल द्वारा लिए गए फैसले का स्वागत किया कि राज्य के आतंकवाद विरोधी दस्ते (एटीएस) के वकील और अधिकारी, जिन्होंने पहले मालेगांव मामले की जांच की थी, मुकदमे के दौरान अदालत में मौजूद रहेंगे. गवाहों के मुकर जाने के बाद यह फैसला लिया गया.

आईपीएस अधिकारी हेमंत करकरे के नेतृत्व में राज्य एटीएस टीम ने तब पुरोहित, साध्वी प्रज्ञा, जो अब भोपाल से भाजपा सांसद हैं, दयानंद पांडे, कुलकर्णी और अन्य को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) की धाराओं के तहत गिरफ्तार किया था. उनपर कथित तौर पर बम विस्फोट की साजिश रचने का आरोप लगाया गया था. पुरोहित उस समय भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल थे.
अभियोजन पक्ष के अनुसार, कुलकर्णी पर आरोप है कि उसने विस्फोट में प्रयुक्त रसायनों की व्यवस्था की थी. यह भी आरोप है कि कुलकर्णी उन बैठकों में शामिल होने के लिए इंदौर और नासिक गए थे जिनमें कथित तौर पर साजिश रची गई थी. 2017 में उन्हें जमानत मिल गई थी.

क्या था साल 2008 का मालेगांव बम धमाका मामला?

29 सितंबर 2008 की रात करीब 9 बजकर 35 मिनट पर मालेगांव में शकील गुड्स ट्रांसपोर्ट कंपनी के ठीक सामने एक बम धमाका हुआ था. इस मामले में अब तक 15 गवाह कोर्ट के सामने अपने पहले के बयान से मुकर चुके हैं.चूंकि यह मामला आतंक से जुड़ा हुआ था, इसलिए महाराष्ट्र सरकार के आदेश के बाद महाराष्ट्र एटीएस ने इस मामले की जांच अपने हाथ में ले ली और 21 अक्टूबर 2008 को मकोका ( की धाराओं के तहत मामला दर्ज कर लिया.

20 जनवरी 2009 को पहली चार्जशीट

जांच के दौरान 20 जनवरी 2009 को महाराष्ट्र एटीएस ने मामले में पहली चार्जशीट दायर की थी, जिसमें 11 लोगों को गिरफ्तार और तीन लोगों को फरार दिखाया गया था. मामले में एटीएस ने 21 अप्रैल 2011 को सप्लीमेंट्री चार्जशीट दायर की थी.

13 मई 2016 को दायर की गई चार्जशीट

01 अप्रैल 2011 को केंद्रीय गृह मंत्रालय के आदेश के बाद मालेगांव बम धमाके की जांच एनआईए को सौंप दी गई थी. एनआईए ने जांच के दौरान 13 मई 2016 को चार्जशीट दायर की, जिसने 6 लोगों के बारे में बताते हुए कहा कि उनके खिलाफ सबूत नहीं मिले हैं. इनमें प्रज्ञा सिंह ठाकुर, शिव नारायण करसंग्रा, श्याम भंवर लाल साहू, प्रवीण तकलकी, लोकेश शर्मा और धनसिंह चैधरी का नाम था.
एनआईए ने यह भी कहा कि इस मामले में मकोका नहीं लग सकता. इसके बाद आरोपियों ने जमानत की अर्जी डाली, जिसके बाद कर्नल पुरोहित और प्रज्ञा सिंह ठाकुर समेत दूसरे आरोपियों को जमानत मिल गई.

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कोर्ट में डिस्चार्ज एप्लिकेशन

जमानत मिलने के बाद में सभी आरोपियों ने कोर्ट में डिस्चार्ज एप्लिकेशन दायर किया. 27 दिसंबर 2017 को एनआईए की स्पेशल कोर्ट में आरोपियों के डिस्चार्ज एप्लिकेशन पर फैसला सुनाया गया, जिसमें श्याम साहू, शिव नारायण कालसंग्रा और प्रवीण तकलकी को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया. वहीं, राकेश धावड़े और जगदीश म्हात्रे पर से कई धाराएं कोर्ट ने हटाईं और उन दोनों पर सिर्फ आर्म्स एक्ट के तहत ही आरोप तय किए.

हत्या और हत्या की साजिश की धाराएं

वहीं, प्रज्ञा सिंह ठाकुर, कर्नल प्रसाद पुरोहित, रमेश उपाध्याय, समीर कुलकर्णी, अजय रहिकर, सुधाकर चतुर्वेदी, सुधीर द्विवेदी के खिलाफ दायर मकोका, यूएपीए की धारा 17, 29, 23 और आर्म्स एक्ट की धाराएं हटा दी गई, लेकिन उन पर से यूएपीए की धारा 18, हत्या और हत्या की साजिश की धाराएं लगाकर आरोप तय कर दिए गऐ. उसके बाद से ट्रायल चल रहा है.

220 गवाहों का बयान दर्ज

गौरतलब है कि एटीएस मालेगांव ब्लास्ट 2008 मामले की जांच शुरू में कर रही थी, तभी इन गवाह की गवाही दर्ज की गई थी. मामले में अब तक 220 गवाहों का बयान अदालत में दर्ज किया गया है. इनमें से आज 15 गवाह अपनी गवाही से पलट गया.