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शब-ए-बारात पर श्रीनगर की जामा मस्जिद बंद, मीरवाइज और उमर अब्दुल्ला ने उठाए सवाल

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, श्रीनगर

जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने के बाद भी हालात सामान्य नहीं हुए हैं, यह सवाल एक बार फिर तब उठ खड़ा हुआ जब शब-ए-बारात (Shab-e-Barat) के मौके पर श्रीनगर की ऐतिहासिक जामा मस्जिद को बंद कर दिया गया. सरकार की ओर से मस्जिद के बाहर भारी सुरक्षा तैनात की गई और किसी को भी वहां नमाज पढ़ने की अनुमति नहीं दी गई.

क्या अनुच्छेद 370 हटाने के बावजूद हालात काबू में नहीं?

सरकार ने बार-बार यह दावा किया है कि अनुच्छेद 370 हटाने के बाद जम्मू-कश्मीर में हालात सुधर रहे हैं, लेकिन आतंकवादी घटनाओं (Terrorist Attacks), आम नागरिकों की हत्याओं और फौजियों की शहादत से हालात कुछ और ही तस्वीर बयां कर रहे हैं.

क्या मीरवाइज उमर फारूक (Mirwaiz Umar Farooq) से अब भी केंद्र सरकार को खतरा महसूस होता है? क्या उनकी तकरीरें सरकार के लिए मुश्किल खड़ी कर सकती हैं? और सबसे बड़ा सवाल – शब-ए-बारात जैसे पवित्र मौके पर जामा मस्जिद को बंद करना क्या सरकार के सुरक्षा इंतजामों पर सवालिया निशान नहीं लगाता?

मीरवाइज उमर फारूक का सवाल – “मुझे मस्जिद जाने से क्यों रोका गया?”

श्रीनगर के प्रमुख धार्मिक नेता मीरवाइज उमर फारूक ने अपनी नजरबंदी और सुरक्षा घेरे को लेकर तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा:

“जहाँ तक मेरा सवाल है, मेरे चारों ओर सुरक्षा का एक बड़ा घेरा बना दिया गया है और मुझे बताया गया है कि मेरी जान को बहुत बड़ा खतरा है। मेरी आवाजाही अधिकारियों की मंजूरी के अधीन है।”

उन्होंने आगे कहा:

“मैं हुक्मरानों से पूछना चाहता हूँ कि जब उन्होंने मुझे इतनी सुरक्षा मुहैया कराई है तो मुझे जामा मस्जिद जाने की अनुमति क्यों नहीं दी जा रही है? क्या जिन लोगों को खतरा है और जिन्हें सुरक्षा मुहैया कराई गई है, वे इधर-उधर नहीं जा सकते? क्या उन्हें भी घर में नज़रबंद कर दिया जाता है?”

उमर अब्दुल्ला का बयान – “सरकार को अपने ही सिस्टम पर भरोसा नहीं”

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला (Omar Abdullah) ने भी सरकार के इस फैसले की आलोचना करते हुए कहा:

“यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि सुरक्षा प्रतिष्ठान ने इस्लामी कैलेंडर की सबसे पवित्र रातों में से एक – #शबएबारात पर श्रीनगर की ऐतिहासिक जामा मस्जिद को सील करने का फैसला लिया है.”

उन्होंने आगे कहा:

“यह फैसला लोगों में विश्वास की कमी और कानून-व्यवस्था तंत्र में भरोसे की कमी को दर्शाता है कि चरम उपायों के बिना शांति कायम नहीं हो सकती. श्रीनगर के लोग इससे बेहतर के हकदार थे.”

क्या सरकार की रणनीति पर उठते हैं सवाल?

केंद्र सरकार का दावा है कि जम्मू-कश्मीर में स्थिति पहले से बेहतर हुई है, लेकिन मस्जिदों की बंदी, धार्मिक आयोजनों पर रोक और लगातार बढ़ती हिंसा इस दावे को कमजोर करते हैं.

क्या अनुच्छेद 370 हटाने के बाद भी केंद्र सरकार को कश्मीर में अपनी पकड़ मजबूत करने में दिक्कत हो रही है? क्या मीरवाइज उमर फारूक और अन्य कश्मीरी नेता अब भी सरकार के लिए चुनौती बने हुए हैं?

निष्कर्ष

शब-ए-बारात पर जामा मस्जिद को बंद करना और मीरवाइज उमर फारूक को मस्जिद जाने से रोकना सुरक्षा और कश्मीर की मौजूदा स्थिति पर गंभीर सवाल खड़े करता है. उमर अब्दुल्ला और अन्य स्थानीय नेताओं की प्रतिक्रियाएं बताती हैं कि सरकार को अब भी अपने नियंत्रण पर संदेह है.

क्या यह फैसला स्थानीय लोगों के विश्वास को और कमजोर करेगा या सरकार की स्थिति को मजबूत बनाएगा? यह देखना बाकी है।