मंदिर-मस्जिद राजनीति: विकास का रास्ता या विनाश का संकेत ?
मुस्लिम नाउ विशेष
एक बयान और मस्जिद-दरगाह खोदकर मंदिर निकालने का सिलसिला बंद ! आखिर इसे क्या समझा जाए ? क्या कोई इतना पाॅवर फुल हो सकता है कि उसके केवल मुंह खोलने मात्र से एक बड़े विवाद पर पानी पड़ जाए या उसका बोलना और विवाद का शांत हो जाना, किसी खास दिशा में इशारा करता है ?
यह कुछ ऐसे सवाल हैं,जो हर समझदार आदमी के मन-मस्तिष्क में गूंज रहे हैं. पहले विवाद खड़ा करना और उसपर पानी डाल देना अथवा किसी के बोलने मात्र से विवाद पर पानी पड़ जाना, दरअसल यह खास दिशा में इसारा करते हैं. मगर ऐसा करने से क्या हासिल होने वाला है ? कुछ भी नहीं !!
सोशल मीडिया के युग में किसी को पहचानने में देर नहीं लगती. इधर मुंह खुला और उधर बयानों की समीक्षा शुरू. इसलिए ऐसी चालबाजियों की जगह देश को आगे बढ़ाने में दिमाग लगाना चाहिए. यह पूरे देशवासियों के लिए जरूरी है. धर्म-कर्म के नाम पर लड़ने-लड़ाने से कुछ नहीं मिलने वाला.
यदि उनका इतिहास दागदार था तो तुम मौन सा सुंदर इतिहास रच रहे हो. सौ-दो सौ साल बाद उन्हें भी याद करने वाला वैसा ही एक वर्ग होगा जो अभी बाबर और अकबर को याद करता है.हमें देश के प्रति ईमानदार होना पड़ेगा. देश है तो हम हैं.
यदि इसी तरह की कुत्ता घसीटी होती रही तो देश आगे बढ़ने की जगह रसातल में चला जाएगा. ठीक उसी तरह, जैसे आज कुछ देश धर्म और मजहब के नाम पर बर्बादी के कगार पर हैं. अरब जैसे देश यह समझ गए हैं कि ऐसा करने से किसी का कुछ भला नहीं होने वाला. अरब देश मजहब और विकास को अलग-अलग कर देखने लगे हैं.सबसे बड़ी बात कि तालिबान बदल रहा है. मगर अपने देश में क्या हो रहा है.
भव्य मंदिर बनाकर ही इसे विकास मान रहा है. मस्जिद और दरगाह के नीचे मंदिर खोदकर अपनी उन्नति समझ रहा है. ठीक है अभी सत्ता हाथ में है तो अदालत के कुछ जज और व्यवस्था तुम्हारे इशारे पर नाच रही है. तुम सत्ता से बाहर चले जाओगे तो फिर क्या होगा. पिछले दस वर्षों में गलत नीतियों के चलते आम आदमी सांप्रदायिक हो गया.
हर चीज को बहुत बुरे ढंग से लेने लगा है. घरों में बच्चे हिंदू-मुसलमान करने लगे हैं. आखिर कहां लिए जा रहे हो देश को. तुम ने सोशल मीडिया पर धर्म-मजहब के नाम पर लड़ाने वाले शैतान छोड़ रखे हैं. देश का माहौल खराब हो रहा है. अब बंद होना चाहिए.
बंद नहीं करोगे तो सत्ता से भी जाओगे और सियासत, समाज से भी. इसके दो उदाहरण अपने करीब हैं. एक शेख हसीना और दूसरा इमरान खान. सत्ता के लिए धर्म का दुरुपयोग हानिकारक है और होता रहेगा. यकीन नए जो माॅस्को में छुपे सीरिया के पूर्व शीर्ष नेता से पूछ लो.