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पाकिस्तानी जंगली सुअरों का आतंक बरकरार, बांदीपोरा के किसानों में हाहाकार

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, बांदीपोरा ( कश्मीर )

सेना और केंद्र सरकार के दावों पर यकीन करें तो अनुच्छे 370 हटने के बाद कश्मीर के आतंकवाद में बहुत कमी आई है. इसके इतर घाटी में ‘घुसपैठ’ कर पाकिस्तान से कश्मीर में आए जंगली सुआरों ने आतंक मचा रखा है. इसकी वजह से कश्मीर के हाजिन क्षेत्र के किसान इनदिनों खासे परेशान हैं. जंगली सूअरों का एक बड़ा झुंड खेतों में न केवल हर दम मंडराता रहता है. खड़ी फसलों को भी तजबाह किए हुए है. उन्हें खेतों से निकालने के क्रम में जंगली सूअर किसानांे पर टूट पड़ते हैं. इसकी वजह से पिछले तीन महीने में इस क्षेत्र के कई लोग गंभीर रूप से घायल हो चुके हैं.

कुछ ऐसा ही हाल कश्मीर के बांदीपोरा जिला के बाकी क्षेत्रों का भी है. ‘अज-जजीरा’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, यह इलाका श्रीनगर से 40 किमी (25 मील) उत्तर पश्चिम में स्थित है.जंगली सूअरों के हले में आलू और बीन्स की खेती करने वाले एक किसान की पत्नी 48 वर्षीय शरीफा बेगम बुरी तरह घायल हो चुकी हैं.

वह कहती हैं, उन्होंने कभी जंगली सूअर नहीं देखा था. इस काले जानवर के हमले के बाद चार बच्चों की मां शरीफा बेगम बुरी तरह डर गई हैं. हमले के समय एक सूअर ने अपने सिर से उनका पेट बुरी तरह दबाकर जमीन पर गिरा दिया. बचाव-बचाव चिल्लाने पर जंगली सूबर घनी झाड़ियों में गायब हो गया.

बेगम इस घटना को याद करते हुए कहती हैं, शुरुआत में मैं समझती थी कि यह छोटी भैंस है. लेकिन इसकी नाक पर छोटे-छोटे सींग थे जिससे उसने बानो की कमीज फाड डाली थी और पेट में उसे चोट पहुंचाई थी. बेगम जंगली सूअर के हमले के अपने घावों को दिखाती हुए यह सारा किस्सा बयान करती हैं.

विशेषज्ञों का कहना है कि जंगली सूअर सबसे पहले कश्मीर के हिमालयी क्षेत्र में महाराजा गुलाब सिंह द्वारा पालने का रिवाज शुरू किया था. वह सिख साम्राज्य के डोगरा सैन्य जनरल थे, जिन्होंने 1846 में अमृतसर की संधि के तहत औपनिवेशिक ब्रिटिश शासकों से इस क्षेत्र को खरीदा था.

साम्राज्य की सेवा करने वाले एक ब्रिटिश अधिकारी वाल्टर रोपर लॉरेंस ने 1895 में लिखी गई अपनी पुस्तक, द वैली ऑफ कश्मीर में लिखा है कि जंगली सूअर का मांस डोगरा और सिखों का पसंदीदा व्यंजन था.

क्षेत्र के अंतिम डोगरा शासक महाराजा हरि सिंह ने श्रीनगर के बाहरी इलाके में घने जंगल दाचीगाम में 10 गांवों को खाली कर इसे एक विशेष शिकार रिजर्व में बदल दिया था.1947 में डोगरा शासन के अंत के साथ जब उपमहाद्वीप ने ब्रिटेन से स्वतंत्रता प्राप्त की, मुस्लिम बहुल क्षेत्र कश्मीर भारत और पाकिस्तान मंे बंट गया. इसके बाद जंगली सूअरों की आबादी घटने लगी.

इस्लाम मुसलमानों को सूअर का मांस खाने की इजाजत नहीं देता. कई कश्मीरी मुसलमानों का मानना है कि केवल सुअर को देखने और उनका नाम लेसे से ही धार्मिक संवेदनाएं आहत होती हैं.सूअर फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं. इनकी वजह से पशुओं में रोग फैलता है. जमीन के आवरण को भी सूअर नष्ट करते है.

भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम में पोबितोरा जंगली सूअरों का वन्यजीव अभयारण्य

डोगरा शासन के समापन के बाद, जंगली सुअर को कश्मीर में एक आक्रामक प्रजाति के रूप में मान्यता दे दी गई थी. इसके बाद इसे संरक्षित करने की कोई जरूरत भी नहीं समझी गई. जर्नल ऑफ थ्रेटेड टैक्सा में 2017 के एक अध्ययन में इसका उल्लेख मिलता है.

लेकिन 2013 में, 29 साल के अंतराल के बाद, दाचीगाम, जो अब एक राष्ट्रीय उद्यान है, में जंगली सूअरों को देखकर वन्यजीव वैज्ञानिक और शोधकर्ता चकित रह गए.कश्मीर के वन्यजीव वैज्ञानिक खुर्शीद अहमद, जो खोज करने वाली टीम का हिस्सा रहे हैं, ने 2013 में सिफारिश की थी कि जानवर को इसकी जनसंख्या नियंत्रित करने की आवश्यकता है.

बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के जर्नल में छपे पेपर में कहा गया है, यह पता लगाना दिलचस्प होगा कि सूअर फिर कहां से आए.

एक साल बाद, वन्यजीव शोधकर्ताओं की एक और टीम ने भारतीय प्रशासित कश्मीर के उत्तरी भाग में एक जंगली सूअर को रास्ता पार करते देखा था. इस मामले में, शोधकर्ताओं का मानना था कि जानवर नियंत्रण रेखा को पार कर पाकिस्तान से कश्मीर में आ रहे हैं. इसकी वजह से हाल के वर्षों में जंगली सूअर की आबादी कश्मीर में बढ़ी है.

भारत ने कश्मीर के उस हिस्से में जंगली सूअरों पर कोई जनगणना नहीं की है. माना जाता है कि यह संख्या हजारों नहीं तो सैकड़ों में जरूर है.

क्षेत्र के वन्यजीव वार्डन रशीद याहया नकाश ने बताया, देखने को जंगली क्षेत्रों तक सीमित कर दिया गया है, लेकिन जानवर अब अक्सर मानव परिदृश्य के करीब पहुंच जाता है. विशेष रूप से उत्तरी कश्मीर में, जहां हमें खड़ी फसलों को नुकसान की लगातार रिपोर्ट मिल रही है.

किसान जहाँगीर अली कहते हैं,जंगली सुअरों से बचाने के लिए कश्मीरी किसान सेब के पेड़ों के तने के चारों ओर घास, कपड़े के अवशेष और पॉलिथीन की चादरें बांध रहे हैं. हाल के सप्ताहों में, दो दर्जन गांवों में सूअरांे के झुंड ने किसानों पर हमलाकर उन्हंे नुकसान पहुंचाया. खेतों की फसलें बर्बाद कर दीं.

स्थानीय लोगों ने बताया कि जानवरों ने धान के खेतों को ज्यादा नुकसान पहुंचाया है. सब्जियों के बागानों को भी नहीं छोड़ते. सेब के पेड़ों को नष्ट कर देते हैं, जिससे उनकी आजीविका को गंभीर चुनौती मिल रही है.

हाजिन गांव पाकिस्तान में बहने से पहले झेलम नदी के किनारे फैले खेत और सेब के घने बागों के बीच में स्थित है. इसे देखकर लगता है कि दुनिया के इस कोने तक विकास के पहुंचने में अभी और समय लगेगा. सड़कें, सीवर प्रणाली यहां कुछ भी नहीं हैं. यहां के ज्यादातर पुरुष किसान हैं. महिलाएं बच्चों की परवरिश करती हैं, घर का काम संभालती हैं. बेगम की तरह कुछ सब्जियां भी उगाती हैं.

हमारे बच्चे भूखे मर जाएंगे

बॉन मोहल्ला इलाके में सूअर का एक झुंड पिछले हफ्ते एक सेब के बगीचे में घुस गया था और पेड़ों की छाल को नोच डाला था.किसान रमीज अहमद ने कहा, सूअरों की वजह से सब कुछ ठीक है, यह सुनिश्चित करने के लिए हमें अब कई बार अपने बागों का दौरा करना पड़ता है. सरकार इन जानवरों को क्यों नहीं पकड़ कर उन्हें वापस पाकिस्तान भेजती है, यह समझ के परे है.खेती के मौसम में ग्रामीण दिन-रात इसी बेचैनी में रहते हैं.

हाजिन के एक अन्य किसान गुलाम मोहम्मद पर्रे ने बताया, अगर धान के पौधे क्षतिग्रस्त हो जाता है, तो इसका मतलब है कि सैकड़ों किलोग्राम चावल का नुकसान हो गया. हम गरीब लोग हैं. हमारे बच्चे भूख से मर जाएंगे.

जंगली सूअरों का उत्तरी कश्मीर में आतंक

जंगली सूअरों ने पूरे उत्तरी कश्मीर में आतंक मचा रखा है. सूअर स्कूली बच्चों के लिए खतरा बने हुए हैं. इस बारे में नाराज ग्रामीण स्थानीय अधिकारियों से संपर्क कर चुके हैं, पर उन्हें इस बारे में अब तक कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला है. अधिकारी कहते हैं कि वे केवल जानवरों को भगा सकते हैं, उन्हें मार नहीं सकते.

किसानों का कहना है कि अगर सरकार कार्रवाई नहीं करती है, तो हम इस मामले को अपने हाथ में लेने के लिए मजबूर होंगे. ष्हमें बंदूकें दो. हम जानते हैं कि इससे कैसे निपटना है. मगर संघीय सरकार के बिना कुछ करना लगभग असंभव है.

कश्मीर में शेर-ए-कश्मीर यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर साइंसेज के एक नए अध्ययन में पाया गया कि जंगली सूअरों की उपस्थिति ने दाचीगाम राष्ट्रीय उद्यान के नदी और वुडलैंड आवासों में वनस्पति और जमीनी आवरण को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया है.

उच्च जंगली सूअर घनत्व वाले क्षेत्रों में, उनके जड़ व्यवहार से जड़ी-बूटियों के पैदावार में 80 से 90 प्रतिशत तक की कमी हो सकती है. यहां तक कि पौधों की प्रजातियों के स्थानीय विलुप्त होने का कारण बन सकता है.अध्ययन में कहा गया है कि सरकार से उनके हानिकारक को कम करने का आग्रह किया गया है.

एक विपुल प्रजनक होने के नाते, जंगली सूअर तेंदुए के लिए वैकल्पिक शिकार बन सकते हैं, लेकिन इसकी उपस्थिति लाल हिरण की एक गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजाति हंगुल के लिए भी हानिकारक है.

ग्लोबल वार्मिंग लिंक ?

विशेषज्ञों का मानना है कि हिमालय क्षेत्र में जानवर का पुनरुद्धार, जो दुनिया के बाकी हिस्सों की तुलना में अधिक तेजी से गर्म हुआ है, को ग्लोबल वार्मिंग से जोड़ा जा सकता है.वन्यजीव अधिकारी इंतिसार सुहैल ने कहा, जलवायु परिवर्तन ने कश्मीर में जंगली सूअरों के पुनरुद्धार को कैसे प्रभावित किया है, इस पर प्रकाश डालने के लिए एक विस्तृत अध्ययन की आवश्यकता है.

इस बीच, हाजिन में सूअर के हमले के बाद बेगम ने अपने घर के कामों में शामिल होने से एक कदम पीछे खींच लिया है.हालांकि कमजोर दिखने वाली महिला नया जीवन पाने के लिए आभार से भरी हुई है. मगर जंगली सूअर से वह बुरी तरह भयभीत है.हमले के बाद बेगम अपने सब्जी के खेत में नहीं लौटी हैं. उन्होंने बताया, मैं फिलहाल वहां नहीं जाऊंगी, कम से कम तब नहीं जब मैं अकेली हूं. मैं अपने जीवन को जोखिम में नहीं डालूंगा, भले ही हमें भूखा रहना पड़े.