इज़राइल की ताकत और छवि को ताजा समझौते से भारी झटका
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मुस्लिम नाउ विशेष
इज़राइल को दुनिया के सबसे शक्तिशाली देशों में गिनने वालों को अब अपनी सोच पर पुनर्विचार करना चाहिए. गाजा मुद्दे पर हुए ताजा समझौते ने यह साबित कर दिया है कि इज़राइल की स्थिति एक साधारण देश से ज्यादा नहीं है. लंबे युद्ध के बाद हमास और इज़राइल के बीच हुए समझौते से यह साफ हो गया है कि इज़राइल थक चुका है और अब अपनी बर्बादी को और अधिक समय तक नहीं झेल सकता.
एक छोटे से समूह के साथ इतनी लंबी जंग लड़ने के बावजूद इज़राइल को हासिल क्या हुआ? लगभग 50,000 निर्दोष लोगों की जान ली गई, गाजा के शहर खंडहर में तब्दील हो गए, और आतंकवाद के नाम पर कुछ लोगों को मारा गया. इसके बावजूद इज़राइल ने अपने बंधकों को छुड़ाने में सफलता नहीं पाई.
इज़राइल की खुफिया और सैन्य विफलता
7 अक्टूबर की घटना ने इज़राइल की खुफिया और सैन्य ताकत को पूरी तरह से उजागर कर दिया. हमास के लड़ाकों ने इज़राइल में घुसपैठ कर लगभग 1,200 लोगों को मौत के घाट उतार दिया और 300 से अधिक लोगों को बंधक बना लिया. हैरानी की बात यह है कि इतने लंबे युद्ध और भारी हथियारों के इस्तेमाल के बावजूद इज़राइल अपने बंधकों को न तो ढूंढ सका और न ही छुड़ा सका.
ताजा समझौते में भी हमास ने बंधकों को रिहा करने के बदले अपने कैदियों को छुड़वाया. इसके साथ ही, इज़राइल को गाजा के नागरिक क्षेत्रों से अपनी सेना हटाने पर सहमति जतानी पड़ी. गाजा पर पूर्ण नियंत्रण का सपना देखने वाला इज़राइल इस समझौते के बाद पूरी तरह विफल साबित हुआ.
युद्ध का नुकसान और इज़राइल की छवि
इस युद्ध से इज़राइल को सबसे बड़ा नुकसान उसकी वैश्विक छवि का हुआ है. हमास ने उसकी खुफिया और सैन्य शक्ति की पोल खोल दी है. इस युद्ध ने न केवल इज़राइल को राजनीतिक और कूटनीतिक रूप से कमजोर किया है, बल्कि उसकी अर्थव्यवस्था को भी भारी झटका दिया है. वर्षों तक इज़राइल को अपनी अर्थव्यवस्था को सुधारने में लगाना पड़ेगा,
नेतन्याहू पर मुकदमे की संभावना
प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को अब अंतरराष्ट्रीय अदालत में मुकदमे का सामना करना पड़ सकता है. उनके नेतृत्व में हुए इस युद्ध ने न केवल इज़राइल की स्थिति को कमजोर किया, बल्कि उनके राजनीतिक भविष्य को भी खतरे में डाल दिया है.
मुस्लिम और अन्य देशों को सबक
इस समझौते ने उन मुस्लिम और अन्य देशों को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है जो इज़राइल को एक मजबूत और अजेय देश मानते थे. इस युद्ध ने साबित कर दिया है कि ताकतवर दिखने वाला इज़राइल भी कमजोर है और उसकी असलियत अब दुनिया के सामने आ चुकी है.
यह युद्ध और उसके बाद का समझौता इज़राइल के लिए एक कड़वा सबक है. अगर यह समझौता पहले किया जाता, तो हजारों जानें बचाई जा सकती थीं. अब सवाल उठता है कि इज़राइल को इस युद्ध से आखिर क्या मिला? जवाब है—कुछ नहीं.