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पैगंबर मुहम्मद के संदेश में छुपा है क्षमा और नैतिकता का संदेश

अंदलीब अख़्तर
इंसान जब से इस संसार में आया है, हर युग में, किसी न किसी क्षेत्र में, एक ऐसे व्यक्ति का जन्म हुआ है, जिसने लोगों को चरित्र और नैतिकता के निर्माण के लिए आमंत्रित किया और उन्हें नैतिकता और कार्यों की शुद्धता की शिक्षा दी. इन नैतिक धर्मगरुओं ने हमें बुनियादी मानवीय गुणों पर क़ायम रहना, जानवरों से अलग जीवन जीना और अपने आप में उच्चतम नैतिक गुणों को विकसित करना सिखाया.

इन धर्मगुरुओं  में से एक पैगंबर मुहम्मद हैं.  वह अरब प्रायद्वीप में उस समय पैदा  हुए जब पूरा अरब एक गंभीर नैतिक संकट से गुज़र रहा था और मानवता की दुनिया में एक अजीब उत्तेजना थी. नैतिक सिद्धांतों का उल्लंघन किया जा रहा था और मानवता को सार्वजनिक रूप से अपमानित किया जा रहा था. मनुष्य चरित्र निर्माण से बेखबर था और मान-सम्मान को नष्ट करने में लगा हुआ था। वहां के लोग उस समय सभी मानवीय गुणों से बेपरवाह थे और उच्च नैतिक सिद्धांतों में असमर्थ थे, खुलेआम अनैतिकता करते थे, दूसरों के अधिकारों को हड़पते थे, दूसरों के सम्मान और जीवन पर हमला करते थे. ऐसी स्थिति में नैतिकता और चरित्र की बात करना अपने आप में एक अनहोनी था, लेकिन इस पैगंबर ने अपना पूरा जीवन नैतिक सिद्धांतों के प्रचार और दैवीय नियमों के प्रसार में लगा दिया, और एक दिन के लिए भी वह अपने आस पास के माहौल से निराश नहीं हुए। अंत में, वह अपनी मानवता और नैतिकता से नैतिक भ्रष्टता के मानवतावादी माहौल को खत्म करने में पूरी तरह से सफल रहे.

उनकी कड़ी मेहनत ने एक मृत और उदास समाज में जान फूंक दी. परस्पर अनन्य कुलों के संयोजन ने विभिन्न लोगों को एकजुट किया और एक राष्ट्र बनाया, जिसकी प्रेरणा अनन्त जीवन की आशा थी. उन्होंने उस समय मानव हृदय पर पड़ने वाली प्रकाश की बिखरी हुई किरणों को अलग-अलग लिया और उन्हें एक बिंदु पर केंद्रित किया. उन्होंने न केवल समाज को एक आदर्श समाज में बदल दिया, बल्कि इस समाज के सदस्यों को मानवता के वाहक के रूप में प्रस्तुत किया और उन्होंने उनमें आध्यात्मिक और नैतिक शुद्धता, व्यक्ति की स्वतंत्रता और व्यक्ति और समाज के बीच संतुलन स्थापित किया जिसका उदाहरण इतिहास में देखने को नहीं मिलता है.

हालाँकि अपने शुरुआत दौर में समुदाय से अकल्पनीय घृणा और प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ा, लेकिन पैगंबर मुहम्मद धैर्य, समझ और क्षमा का उदाहरण बनने केअपने दृढ़ संकल्प में दृढ़ रहे। कहा जाता है कि पैगंबर ने अपने साथियों और परिवार के सदस्यों से कहा था: “लोगों के मामलों में नरम रहो और कठोर मत बनो; उन्हें आशा दो और उनमें फूट न डालें…इस्लाम एक संतुलित धर्म है, इसलिए उसकी आज्ञाओं का पालन करने में उदार बनो.”

पैगंबर मुहम्मद  के जीवन में सबसे बड़ा सिद्धांत यह था कि यदि कोई अच्छा और सवाब का काम था, तो वह सबसे पहले उसका पालन खुद करते थे.  जब आपने कुछ आदेश दिए, तो आप इसका पालन करने वाले पहले व्यक्ति होते थे.हज़रत मुहम्मद अपने मेहमान की खातिर में बहुत विनम्र हुआ करते थे, चाहे उसका धर्म कुछ भी हो और वह कितना भी बुरा क्यों न हो.

एक बार कुछ लोग आपके पास आए, आपने उनके आतिथ्य की व्यवस्था की, आपने अपने साथियों से कहा कि एक-एक व्यक्ति को लेकर उनकी अच्छी सेवा करें. इनमें एक शख्स भी था जो अपनी शरारतों के लिए जाना जाता था, उसे कोई रखना पसन्द नहीं कर रहा था. आप ने उसे अपना मेहमान बनाया. जब उसने भरपेट खा लिया तो आपने उसे एक अलग कमरे में सुला दिया और बहुत अच्छा गद्दा वग़ैरा दिया, लेकिन उसे  रात में बदहज़मी (अनपच) हो गई और रात भर उसी कमरे में शौच किया. वह सुबह जल्दी उठा और चला गया.

यह देख कर आपके  सहाबी दोस्त बहुत गुस्से में थे, लेकिन आपने उनका गुस्सा शांत कराया, फिर अपने हाथों से कपड़े धोने बैठ गए, क्या संयोग था ? वह आदमी कोठरी में अपनी कीमती तलवार भूल गया था।  वह उसे लेने के लिए लौटा तो उसने जो देखा हैरान रह गया , जब आपने उसे देखा, तो आपको नहीं लगा उसके लिए खेद है, लेकिन उससे बहुत खुशी से पूछा और एक तलवार निकालकर उसे दे दी, फिर वह उसी समय उनका अनुयायी हो गया। (उर्दू की दूसरी)

एक और रिवायत है कि एक जाहिल मस्जिद में आया और उसने पेशाब करना शुरू कर दिया. उनके साथी बहुत गुस्से में थे और उसे पीटना चाहते थे और उसे मस्जिद से बाहर फेंक देना चाहते थे. आपने फार्म्य इस पर अत्याचार मत करो इसका पेशाब न रोको।  जब वह पेशाब कर चूका तो आपने उससे कहा कि  मस्जिद इस लिए नहीं है  के कोई  इसमें कोड़ा करकट डेल या इसमें  पेशाब पैखाना करे. यहाँ  केवल एक ईश्वर की इबादत  की जाती है, यहाँ सिर्फ इबादत करनी चाहिए.

रवायत है हज़रत अनस बिन मलिक उनके करीबी साथी और वफादार सेवक थे और उन्होंने उनके जीवन को बहुत गहराई से देखा था. उनका कथन है कि मैंने दस साल तक आपकी सेवा की। उन्हों ने मुझसे कभी उफ़ तक नहीं कहा और कभी नहीं कहा कि तुमने ऐसा क्यों किया और कभी नहीं कहा कि तुमने ऐसा क्यों नहीं किया. निस्संदेह, पवित्र पैगंबर लोगों में सबसे नेक थे.