बिहार में सांप्रदायिकता का नया चेहरा: खुशबू पांडे की गिरफ्तारी और इसके पीछे की साजिश
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मुस्लिम नाउ विशेष
बिहार, जो हमेशा से समाजवाद, वामपंथ और धर्मनिरपेक्षता की मजबूत नींव पर खड़ा रहा है, अब सांप्रदायिकता की एक नई लहर से जूझ रहा है. जयप्रकाश नारायण, डॉ. राजेंद्र प्रसाद और राममनोहर लोहिया की धरती पर सामंतवाद के खिलाफ संघर्ष हुए, भागलपुर जैसे दंगे भी हुए, लेकिन प्रदेश कभी उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे भाजपा-शासित राज्यों की तरह सांप्रदायिक नफरत की आग में पूरी तरह नहीं झुलसा. अब, बिहार में एक नई चुनौती सामने आई है—खुशबू पांडे.
खुशबू पांडे कौन है और उसे कौन बढ़ावा दे रहा है?
हाल ही में बिहार के जमुई जिले में हिंदू कार्यकर्ता खुशबू पांडे की गिरफ्तारी ने एक नया विवाद खड़ा कर दिया है. आरोप है कि पांडे ने जमुई की एक मस्जिद पर कब्जा करने की कोशिश की और भड़काऊ भाषण दिए, जिसके कारण सांप्रदायिक तनाव भड़क उठा.
सोशल मीडिया पर खुशबू पांडे के पुराने पोस्ट और तस्वीरें देखी जाएं, तो यह स्पष्ट होता है कि वह पहले ऐसी नहीं थीं। लेकिन अब उन्हें ‘हिंदू शेरनी’ की उपाधि दी जा रही है, सवाल उठता है कि आखिर कौन उन्हें कट्टर हिंदुत्व के मंच पर आगे बढ़ा रहा है? क्या यह बिहार को सांप्रदायिकता की आग में झोंकने की एक साजिश है?
जमुई में भड़काऊ भाषण और गिरफ्तारी
आईएएनएस की रिपोर्ट के अनुसार, जमुई में हिंसक झड़प के बाद जिला पुलिस ने सोमवार रात को खुशबू पांडे को गिरफ्तार कर लिया। जमुई की जिला मजिस्ट्रेट अभिलाषा शर्मा ने गिरफ्तारी की पुष्टि करते हुए बताया कि पांडे ने हनुमान चालीसा पाठ के दौरान भड़काऊ भाषण दिया और आपत्तिजनक नारे लगाए, जिससे दो समुदायों के बीच तनाव उत्पन्न हुआ.
खुशबू पांडे पर आरोप है कि उन्होंने बिना अनुमति के एक कार्यक्रम आयोजित किया, जिसमें लोगों को इकट्ठा किया और सांप्रदायिक उन्माद भड़काने की कोशिश की. पुलिस ने इस मामले में सात नामजद और 50 अज्ञात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया है.
सोशल मीडिया पर समर्थन और सांप्रदायिक राजनीति
खुशबू पांडे की गिरफ्तारी के बाद सोशल मीडिया पर ‘हिंदू शेरनी’ ट्रेंड करने लगा. कट्टर हिंदुत्ववादी संगठनों ने उनके समर्थन में मुहिम छेड़ दी। लेकिन सवाल यह है कि बिहार जैसे धर्मनिरपेक्ष राज्य में यह नई लहर कौन ला रहा है? क्या यह किसी बड़े राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा है?
बिहार में सांप्रदायिकता की राजनीति और नीतिश सरकार की जिम्मेदारी
बिहार अब तक भाजपा-शासित राज्यों की तरह सांप्रदायिक एजेंडे का शिकार नहीं हुआ है। लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार की राजनीति ने हमेशा सांप्रदायिक शक्तियों को कमजोर करने का काम किया है। लेकिन अब जिस तरह से हिंदूवादी ताकतें बिहार में सक्रिय हो रही हैं, यह चिंता का विषय है।
नीतीश सरकार को इस मामले की गहन जांच कर यह पता लगाना चाहिए कि कौन सी ताकतें बिहार में सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा देना चाहती हैं। साथ ही, सोशल मीडिया पर चल रहे अभियानों की भी जांच होनी चाहिए ताकि यह स्पष्ट हो सके कि आखिर कौन बिहार के सौहार्दपूर्ण माहौल को बिगाड़ने की कोशिश कर रहा है।
काबिल ए गौर
बिहार में खुशबू पांडे की गिरफ्तारी केवल एक घटना नहीं, बल्कि एक बड़े सांप्रदायिक खेल की ओर संकेत कर रही है. यह जरूरी है कि राज्य सरकार इस मामले में सख्ती से कार्रवाई करे और बिहार को उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश की तरह सांप्रदायिक राजनीति का अखाड़ा बनने से बचाए। बिहार की धरती ने हमेशा सामाजिक न्याय और भाईचारे की वकालत की है, और इसे बनाए रखना ही प्रदेश के लिए सबसे जरूरी है.