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भारत में बढ़ती धार्मिक उन्माद की लहर: एक चिंताजनक भविष्य की ओर?

मुस्लिम नाउ ब्यूरो,नई दिल्ली

भारत की सामाजिक समरसता और लोकतांत्रिक मूल्यों पर एक नई चुनौती मंडरा रही है। सोशल मीडिया के मंचों पर लगातार बढ़ रही धार्मिक कट्टरता और घृणा फैलाने वाले बयान देश की अखंडता के लिए गंभीर संकट पैदा कर सकते हैं। वर्तमान स्थिति में धर्म और संप्रदाय के नाम पर भड़काऊ बयानबाज़ी, नफरत भरे कृत्य और धार्मिक उन्माद को भड़काने की कोशिशें एक गंभीर चेतावनी की ओर इशारा कर रही हैं।

भारत को पाकिस्तान और बांग्लादेश के हालात से बचाने की जरूरत

यदि भारत को अपने पड़ोसी देशों पाकिस्तान और बांग्लादेश की राह पर जाने से बचाना है, तो धार्मिक अराजकता और कट्टरता को समय रहते रोकने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। पाकिस्तान और बांग्लादेश में मजहबी उन्माद की आग ने वहां की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को चौपट कर दिया है। वहां महंगाई चरम पर है, बेरोजगारी अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच चुकी है और राजनीतिक अस्थिरता के कारण समाज में अशांति फैली हुई है। भारत को इस दिशा में बढ़ने से रोकने के लिए आवश्यक है कि धार्मिक सद्भाव और आपसी भाईचारे को बढ़ावा दिया जाए।

सोशल मीडिया: भड़काऊ प्रचार का नया मंच

सोशल मीडिया आज अभिव्यक्ति का सबसे प्रभावी साधन बन चुका है, लेकिन दुर्भाग्यवश इसका उपयोग अब समाज को बांटने और धर्म के नाम पर नफरत फैलाने के लिए किया जा रहा है। कुछ कट्टरपंथी तत्व इस मंच का दुरुपयोग कर समाज में जहर घोलने का काम कर रहे हैं। बाबा बागेश्वर जैसे लोग खुलेआम इस्लाम, मुसलमानों और हिंदू धर्म के खिलाफ अनर्गल टिप्पणियां कर रहे हैं, लेकिन इनके खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई नहीं हो रही।

यह भी देखा गया है कि कुछ संगठनों द्वारा लालच देकर या अन्य माध्यमों से मुसलमानों का धर्मांतरण करवाया जा रहा है। वहीं, दूसरी ओर, जब कोई मुसलमान स्वेच्छा से हिंदू धर्म अपनाता है, तो इसे सामाजिक क्रांति के रूप में दिखाया जाता है। इस दोहरे मापदंड ने समाज को और अधिक ध्रुवीकृत कर दिया है।

भारत में कानून का दोहरा मापदंड?

एक लोकतांत्रिक देश में कानून का पालन सभी नागरिकों के लिए समान रूप से होना चाहिए। लेकिन हाल के घटनाक्रमों से ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ लोगों को विशेष रूप से छूट दी जा रही है। कुछ पुलिसकर्मी और वकील ऐसे जोड़ों को खुलेआम पीटते हैं, जिनमें से एक हिंदू और दूसरा मुस्लिम होता है। यह शर्मनाक है कि ऐसे कृत्यों को रोकने की बजाय न्यायालय के बाहर ही फैसले सुनाए जा रहे हैं।

अगर अंतरधार्मिक संबंधों को अवैध माना जाता है, तो यह नियम सभी पर समान रूप से लागू होना चाहिए। लेकिन जब एक मुस्लिम महिला हिंदू धर्म अपनाती है, तो उसे ‘घर वापसी’ का नाम देकर सम्मानित किया जाता है। ऐसे दोहरे मानदंडों से सामाजिक तानाबाना कमजोर हो सकता है और धार्मिक उन्माद को बढ़ावा मिल सकता है।

सऊदी अरब से सीखने की जरूरत

अगर हम सऊदी अरब और अन्य विकसित इस्लामी देशों की ओर देखें, तो वे अब धार्मिक कठमुल्लापन को त्यागकर आधुनिकता और विकास की राह पर आगे बढ़ चुके हैं। वहां अब धार्मिक कानूनों में सुधार किया जा रहा है और समाज को एक नया रूप देने की कोशिश हो रही है। भारत को भी चाहिए कि वह धार्मिक कट्टरता और नफरत की राजनीति को दरकिनार कर समावेशी विकास की ओर बढ़े।

देशहित में क्या किया जाना चाहिए?

  1. सोशल मीडिया मॉनिटरिंग: सोशल मीडिया पर धार्मिक भड़काऊ बयान देने वालों पर कड़ी कार्रवाई की जाए और ऐसे तत्वों पर रोक लगाई जाए।
  2. कानूनी व्यवस्था का सुधार: धार्मिक आधार पर भेदभाव करने वाले अधिकारियों और संगठनों पर कार्रवाई हो।
  3. शिक्षा और जागरूकता अभियान: स्कूलों और कॉलेजों में धार्मिक सहिष्णुता और आपसी सौहार्द्र को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रम शुरू किए जाएं।
  4. राजनीतिक हस्तक्षेप पर रोक: सियासी दलों को धार्मिक मुद्दों का इस्तेमाल अपने राजनीतिक लाभ के लिए करने से रोका जाए।

काबिल ए गौर

भारत एक धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक राष्ट्र है, जहां सभी धर्मों को समान अधिकार प्राप्त हैं। धार्मिक उन्माद और कट्टरता को बढ़ावा देने वाले तत्वों को रोकना न केवल सरकार की बल्कि हर नागरिक की जिम्मेदारी है। अगर हम समय रहते सतर्क नहीं हुए, तो हमारा देश भी उन देशों की श्रेणी में आ सकता है, जहां धर्म के नाम पर समाज को बर्बादी की ओर धकेल दिया गया।

देश को इस चुनौती से बचाने के लिए सभी भारतीयों को एकजुट होकर सहिष्णुता, भाईचारे और समानता की भावना को मजबूत करना होगा।