प्रो लावण्या वेमसानी की पुस्तक ‘द हैंडबुक ऑफ इंडियन हिस्ट्री’ पर इस्लामोफोबिया का साया
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मुस्लिम नाउ विशेष
अमेरिका के शॉनी स्टेट यूनिवर्सिटी की भारतीय मूल की शिक्षाविद् प्रोफेसर लावण्या वेमसानी की हाल ही में प्रकाशित पुस्तक “द हैंडबुक ऑफ इंडियन हिस्ट्री” ने एक गहरे विवाद को जन्म दिया है. यह पुस्तक भारतीय इतिहास के प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिक पहलुओं पर आधारित है और इसे विश्व प्रसिद्ध प्रकाशक स्प्रिंगर ने प्रकाशित किया है. लेकिन इसके प्रकाशन के बाद, इसे लेकर एक तीखी बहस छिड़ गई है.
पुस्तक में भारतीय इतिहास के विभिन्न कालखंडों को शामिल किया गया है, लेकिन इसमें इस्लामिक काल और मुसलमानों के योगदान को जानबूझकर नजरअंदाज किया गया है. आलोचना के केंद्र में यह दावा है कि पुस्तक हिंदुत्व विचारधारा से प्रेरित है और भारतीय इतिहास को एक पक्षीय दृष्टिकोण से प्रस्तुत करती है.
Friends, thrilled to share the publication of Handbook of Indian History. Please check it out: https://t.co/qUc7nO52wN. #IndianHistory #NewBook this book contains 21 chapters many of which contain new groundbreaking research on Indian History
— Dr. Lavanya Vemsani Ph.D. (@ProfVemsani) November 22, 2024
आलोचना और विरोध का केंद्र
द हैंडबुक ऑफ इंडियन हिस्ट्री में 21 अध्याय हैं, जो विभिन्न विशेषज्ञों द्वारा लिखे गए हैं. इस पुस्तक का संपादन प्रो. लावण्या वेमसानी ने किया है और उन्होंने तीन अध्यायों में अपना योगदान भी दिया है. पुस्तक में भारत की प्राचीन परंपराओं, जैसे हिंदू, बौद्ध, जैन और अन्य मूल परंपराओं पर गहन प्रकाश डाला गया है. लेकिन इस्लामी इतिहास और मुसलमानों के योगदान को प्रमुखता से स्थान न दिए जाने पर विवाद खड़ा हुआ.
अमेरिकी शिक्षाविद् और इस्लामिक अध्ययन के विशेषज्ञ प्रो. ब्रैनन इनग्राम ने सोशल मीडिया पर सबसे पहले आलोचना करते हुए कहा:“507 पन्नों की पुस्तक में इस्लाम का केवल 5 बार और मुसलमानों का केवल 9 बार उल्लेख किया गया है. क्या यह भारतीय इतिहास को हिंदुत्वीकरण करने का प्रयास नहीं है?”
इनग्राम के बाद इस्लामी अध्ययन के एक और विशेषज्ञ, प्रो. जोनाथन ए.सी. ब्राउन, जो स्वयं मुस्लिम धर्म अपना चुके हैं, ने भी इस पुस्तक को खारिज कर दिया. उन्होंने कहा:“यह पुस्तक केवल हिंदू राष्ट्रवादियों के लिए उपयोगी है. मैं इसे अपनी कक्षाओं में कभी नहीं पढ़ाऊंगा.”
इन आलोचनाओं के बाद अन्य इस्लामिक विद्वानों, जैसे मुफीद युकसेल ने भी आरोप लगाया कि पुस्तक में इस्लामी काल और मुस्लिम समुदायों के ऐतिहासिक योगदान को जानबूझकर हाशिए पर रखा गया है.
This is an amazing book if you don’t care about Indian history from 1100-1800 or about 1/4 of its population… so basically if you’re a Hindu nationalist. I will *not* be using this in my classes. Handbook of Indian History | SpringerLink https://t.co/ZSzit4uohs
— Jonathan AC Brown (@JonathanACBrown) November 23, 2024
पुस्तक का विश्लेषण: शामिल विषय और कथानक
पुस्तक मुख्य रूप से भारतीय उपमहाद्वीप की प्राचीन और स्वदेशी परंपराओं पर केंद्रित है. यह औपनिवेशिक और मार्क्सवादी इतिहास लेखन की उन पूर्व धारणाओं को चुनौती देती है, जिन्होंने भारत के इस्लाम-पूर्व अतीत को अनदेखा किया.
पुस्तक के तीन खंड
- पहला खंड – भारत के प्राचीन इतिहास और प्रारंभिक सभ्यताओं का विवरण.
- दूसरा खंड – पहली सहस्राब्दी में हुए विकास, जिसमें बौद्ध, जैन और हिंदू परंपराओं पर जोर दिया गया है.
- तीसरा खंड – औपनिवेशिक युग और आधुनिक भारत के विकास का वर्णन.
पुस्तक में शब्दों के उल्लेख का एक दिलचस्प पैटर्न सामने आया
- “हिंदू” शब्द 459 बार आता है.
- “बौद्ध” 267 बार और “जैन” 338 बार.
- वहीं, “मुस्लिम” केवल 55 बार और “इस्लाम” 51 बार उल्लेखित है.
यह अनुपात पुस्तक के आलोचकों को यह कहने का आधार देता है कि इसमें इस्लामी इतिहास और मुसलमानों के योगदान को महत्व नहीं दिया गया. हालांकि, वेमसानी और उनके समर्थकों का तर्क है कि भारतीय इतिहास में पांच सहस्राब्दी लंबी हिंदू परंपरा और केवल एक सहस्राब्दी लंबी इस्लामी उपस्थिति को अनुपातिक रूप से दर्शाया गया है.
आलोचनाओं का जवाब और दोहरे मापदंड
वेमसानी के समर्थकों का कहना है कि यह विवाद केवल वैचारिक पूर्वाग्रह का परिणाम है. उनका तर्क है कि मुख्यधारा का भारतीय इतिहास अकादमिक रूप से इस्लामी काल पर असंगत रूप से केंद्रित रहा है, जबकि स्वदेशी परंपराओं के योगदान को अक्सर अनदेखा किया गया.
वेमसानी का उद्देश्य भारत के इतिहास को औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्त कर, स्वदेशी परंपराओं और उनकी उपलब्धियों को उजागर करना है. उनके समर्थकों का कहना है कि आलोचक पुस्तक की व्यापक दृष्टि को अनदेखा कर केवल इस्लामी इतिहास के उल्लेख पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं.
विवाद का गहरा अर्थ
इस विवाद के केंद्र में यह सवाल है कि इतिहास को किस नजरिए से लिखा और पढ़ा जाना चाहिए.. भारत का इतिहास हजारों वर्षों की सांस्कृतिक विविधता और परंपराओं का गवाह है. लेकिन औपनिवेशिक और इस्लामी आक्रमणों ने कई ऐतिहासिक आख्यानों को प्रभावित किया है.
क्या यह धर्मनिरपेक्षता का सवाल है?
वेमसानी की पुस्तक पर उठे सवाल यह भी दर्शाते हैं कि आधुनिक शिक्षा जगत में वैचारिक विभाजन कितना गहरा है. आलोचकों का कहना है कि पुस्तक में इस्लामी इतिहास के योगदान को कम आंका गया है. लेकिन वेमसानी और उनके समर्थकों का कहना है कि इस्लामी इतिहास को पूरी तरह से नजरअंदाज करने का आरोप झूठा है.
पुस्तक में इस्लामी इतिहास का उल्लेख है, लेकिन यह मुख्य कथानक का केंद्र नहीं है. इसका उद्देश्य भारतीय इतिहास के उस हिस्से को उजागर करना है, जो स्वदेशी परंपराओं से जुड़ा है और जिसे अक्सर दरकिनार किया गया.
द हैंडबुक ऑफ इंडियन हिस्ट्री पर उठे विवाद ने भारतीय इतिहास लेखन में एक बड़े वैचारिक संघर्ष को उजागर किया है. यह केवल एक पुस्तक पर बहस नहीं है, बल्कि यह सवाल है कि भारत के इतिहास को किस तरह से लिखा और पढ़ा जाना चाहिए.