दिल्ली की वे मस्जिदें, जहां महिलाओं के लिए शानदार नमाज की व्यवस्था
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मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली
अक्सर एक कौम के कुछ कट्टरवादी लोग यह दुष्प्रचार फैलाते हैं कि इस्लाम में महिलाओं को दोयम दर्जे का माना जाता है और वे मस्जिदों में पुरुषों के साथ नमाज नहीं पढ़ सकतीं। हालांकि, वास्तविकता इससे बिल्कुल अलग है। दुनिया भर में जहां भी बड़ी मस्जिदें हैं, वहां महिलाओं के लिए विशेष व्यवस्था होती है। वे उसी इमाम के पीछे नमाज अदा करती हैं, जिसके पीछे पुरुष नमाज पढ़ते हैं, हालांकि उनके लिए अलग जगह की व्यवस्था की जाती है।
दिल्ली में ऐसी कई मस्जिदें हैं जहां महिलाओं के लिए बेहतरीन इंतजाम किए गए हैं। इस रिपोर्ट में चार प्रमुख मस्जिदों का जिक्र किया गया है, जो न केवल ‘विमेन फ्रेंडली’ हैं बल्कि वहां महिलाओं के लिए अत्याधुनिक सुविधाएं भी उपलब्ध हैं। इनमें एसी, वजूखाना, सुंदर जानमाज और पुरुषों से अलग प्रवेश द्वार जैसी सुविधाएं शामिल हैं।

दिल्ली की चार प्रमुख विमेन फ्रेंडली मस्जिदें:
- ग्रीन पार्क मस्जिद (ग्रीन पार्क एक्सटेंशन, नई दिल्ली)
- नीली मस्जिद (हौज खास, नई दिल्ली)
- मोती मस्जिद (कनॉट प्लेस, नई दिल्ली)
- औलिया मस्जिद (कनॉट सर्कल, नई दिल्ली)
इनमें से दो मस्जिदों के बारे में विस्तार से जानते हैं:

नीली मस्जिद: हौज खास का ऐतिहासिक धरोहर
दिल्ली में कई ऐतिहासिक धरोहरें हैं, जिनमें से कुछ अनसुनी और अप्रकाशित रह गई हैं। हौज खास के पॉश इलाके में स्थित नीली मस्जिद ऐसी ही एक मस्जिद है, जिसका ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है।
मुगल पूर्वकाल की धरोहर
नीली मस्जिद लोदी वंश के समय की एक संरचना है, जिसे 1505-06 ईस्वी में कौशांबी नामक एक शाही नर्स ने बनवाया था। कौशांबी, खान-ए-आज़म खवास खान के बेटे की देखभाल करती थीं, जो उस समय के एक शक्तिशाली अधिकारी थे। मस्जिद का निर्माण इस उद्देश्य से किया गया था कि स्थानीय लोग यहां आकर नमाज अदा कर सकें।
मस्जिद की स्थापत्य कला
इस मस्जिद का नाम ‘नीली मस्जिद’ इसलिए पड़ा क्योंकि इसके ऊपरी हिस्से में नीली टाइलों की सजावट थी। हालांकि, समय के साथ इसका अधिकांश हिस्सा नष्ट हो गया है, लेकिन अभी भी इसकी दीवारों पर नीले रंग की झलक देखी जा सकती है।
- मस्जिद का गुंबद अष्टकोणीय आधार पर बना हुआ है।
- इसके अंदर तीन मेहराबें हैं और दीवारों पर ऐतिहासिक शिलालेख खुदे हुए हैं।
- लोधी युग की अन्य संरचनाओं की तरह यह भी मजबूत पत्थरों से बनी हुई है।
महिलाओं के लिए विशेष व्यवस्था
नीली मस्जिद में महिलाओं के लिए विशेष प्रार्थना कक्ष बनाया गया है। इसके अलावा, वजूखाने और प्रवेश के लिए अलग रास्ता है, जिससे महिलाएं आसानी से नमाज अदा कर सकती हैं।
कैसे पहुंचे?
यह मस्जिद हौज खास बाजार के पास स्थित है। आप अरविंदो मार्ग से यहां आसानी से पहुंच सकते हैं। ग्रीन पार्क और हौज खास के बीच मुख्य सड़क से यह मस्जिद दिखाई देती है।

मोती मस्जिद: लाल किले का संगमरमर का चमत्कार
दिल्ली के ऐतिहासिक धरोहरों में से एक मोती मस्जिद, लाल किले के भीतर स्थित है। इसे मुगल सम्राट औरंगजेब ने 1663 में बनवाया था। सफेद संगमरमर से बनी यह मस्जिद मुगल वास्तुकला का बेहतरीन उदाहरण है।
इतिहास और निर्माण
जब शाहजहां ने लाल किला बनवाया, तो उन्होंने जामा मस्जिद में सामूहिक प्रार्थना की व्यवस्था की थी। लेकिन औरंगजेब ने अपनी ताजपोशी के बाद लाल किले के अंदर एक निजी मस्जिद का निर्माण करवाया, ताकि वे अपने कक्षों के पास ही नमाज अदा कर सकें। इस मस्जिद का निर्माण 1,60,000 रुपये की लागत से किया गया था।
वास्तुशिल्प विशेषताएं
- पूरी मस्जिद सफेद संगमरमर से बनी है।
- इसमें तीन गुंबद हैं जो पहले सोने और तांबे से मढ़े हुए थे, लेकिन 1857 के विद्रोह के बाद ब्रिटिशों ने इन्हें लूट लिया।
- मस्जिद में तीन मेहराब हैं और इसकी मीनारें किले के बुर्जों की तरह दिखती हैं।
- मस्जिद का मुख्य हॉल 13×9 मीटर का है और इसमें 3 बड़े प्रवेश द्वार हैं।
महिलाओं के लिए विशेष व्यवस्था
मोती मस्जिद में महिलाओं के लिए अलग नमाज स्थल उपलब्ध है। यहां शानदार वजूखाने और एसी युक्त हॉल भी मौजूद हैं। साथ ही, पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग प्रवेश द्वार की व्यवस्था की गई है।
इतिहास में मोती मस्जिद की भूमिका
- 1663: औरंगजेब ने मस्जिद का निर्माण करवाया।
- 1857: ब्रिटिश सैनिकों ने मस्जिद के सुनहरे गुंबद लूट लिए और इसे सफेद संगमरमर से बदल दिया।
- आज: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के संरक्षण में यह मस्जिद एक ऐतिहासिक धरोहर के रूप में जानी जाती है।
कैसे पहुंचे?
मोती मस्जिद लाल किले के अंदर स्थित है। निकटतम मेट्रो स्टेशन चांदनी चौक है, जहां से पैदल या रिक्शा से यहां पहुंचा जा सकता है।
काबिल ए गौर
दिल्ली की कई मस्जिदें महिलाओं के लिए न केवल सुरक्षित, बल्कि सुविधाजनक भी हैं। नीली मस्जिद और मोती मस्जिद जैसी मस्जिदों में महिलाओं को समान अवसर दिए गए हैं, जहां वे शांति और सुकून के साथ नमाज अदा कर सकती हैं। यह मस्जिदें इस्लाम में महिलाओं की भागीदारी को उजागर करती हैं और इस धारणा को तोड़ती हैं कि इस्लाम में महिलाओं को दोयम दर्जा दिया जाता है।