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नमाजियों पर लात-थप्पड़ जड़ने वाले पुलिस कर्मी के समर्थन में आए सांप्रदायिकता फैलाने वाले

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

बिना इजाजत सड़क पर नमाज पढ़ना उतना ही बड़ा अपराध है जितना कि सार्वजनिक स्थान को घेर कर जागरण, कीर्तन, भंडारा और छबीलें लगाना. जनता और प्रशासन आम तौर पर ऐसे ‘अपराधांे’ को इसलिए नजरंदाज कर देते हंै कि इससे न केवल धार्मिक भावना जुड़ी होती है, परोपकार का भी पुट होता है.

हालांकि तब सड़क पर नमाज पढ़ने वालों की तरह जागरण, भंडारा, कीर्तन, शोभायात्रा निकाले और छबीलें लगाने वालों से नहीं पूछा जाता कि इतनी बड़ी संख्या में धर्मस्थल होते हुए वे सड़कों को घर कर यातायात में क्यों बाधा बने हुए हैं ? चूंकि यह सब भारत में ही संभव है, इसलिए प्रशासन ऐसे ‘अपराधों’ को अक्सर नजरअंदाज कर देता है. मगर जब से इसमें नफरती सियासत घुस आई है, ऐसे मामले तिल का ताड़ का रूप लेने लगे हैं.

ऐसे ही लोगों में शुमार हैं एक मिस्टर सिन्हा. उन्होंने सड़क पर जुमे की नमाज पढ़ने को लेकर अपने सोशल मीडिया एकाउंट से ऐसी-ऐसी बातें लिखी हैं, जिससे साफ झलकता है कि उनका मकसद यह जानने में कतई नहीं कि आखिर किन कारणों से मुसलमान सड़कों पर नमाज पढ़ने को मजबूर  हैं. इसकी जगह उन्होंने कल्पना की उड़ान देकर घटना को खास रहस्य से जोड़ने का प्रयास किया.

मिस्टर सिन्हा आरोपी पुलिस वाले का आंख मंूद कर समर्थन करते समय यह भूल गए कि यदि मुसलमानों ने सड़क पर नमाज पढ़कर  अपराध किया है तो इस जुर्म के लिए उनपर कानून कार्रवाई हो सकती है.उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता है या उनपर जुर्माना ठोंका जा सकता है, पर नमाज पढ़ते किसी नमाजी को थप्पड़ मारना, चूतड़ पर बूट से ठोकर लगाना, कहीं से कानून संगत नहीं है. यदि कानून संगत होता तो आरोपी सब इंस्पेक्टर मनोज तोमर को तीन महीने के लिए निलंबित नहीं किया जाता.

दिल्ली के जिस इलाके में यह घटना घटी, वहां मस्जिदों की कमी है. जमीन अब इतनी नहीं बची कि और मस्जिदें बनाई जाएं. रही बात लाखों की संख्या में देश में मस्जिद होने की तो उसमें उसी इलाके के लोग नमाज पढ़ने जा सकते हैं. अयोध्या में पूजा करने की इच्छा रखने वाला क्या केदारनाथ जाएगा ?

मीडिया आउटलेट रेड माइक के अनुसार, शुक्रवार को जुमे की एक नमाज हो चुकी थी. अधिक नमाजी होने के कारण दूसरी जमात चल रही थी. फिर भी भीड़ इतनी थी कि नमाजी रोड किनारे नमाज अदा करने को मजबूर थे. रेडमाइक के अनुसार, रोड किनारे जहां नमाजी नमाज पढ़ रहे थे उससे ट्रैफिक में किसी तरह की परेशानी नहीं आ रही थी.

बहरहाल, यदि सड़क पर नमाज पढ़ना अपराध है तो नमाजियों पर अवश्य कार्रवाई होनी चाहिए और इसी कानून के तहत ऐसी तमाम धार्मिक गतिविधियों पर भी रोक लगनी चाहिए. मगर मिस्टर सिन्हा ऐस मुददे उठाने की जगह एक के बाद एक अपने कई एक्स संदेश में अकारण मुस्लिम समुदाय को कटघरे में खड़ा करने समय और स्थान जाया कर गए.

मिस्टर सिन्हा के ट्वीट की बानगी देखिए. एक में मिस्टर सिन्हा कहते हैं, ‘‘तो एक बड़ी मस्जिद सड़क के ठीक बगल में है और फिर भी मुसलमानों ने सड़क पर नमाज पढ़ना पसंद किया.. ऐसा क्यों?

क्या इससे साबित नहीं होता कि उन्होंने जानबूझकर अपनी ताकत दिखाने के लिए ऐसा किया या शायद वे चाहते थे कि पुलिस कार्रवाई करे ताकि वे पीड़ित की भूमिका निभा सकें और हिंसा शुरू करने का कारण मिल सके?
  जांच होनी चाहिए कि क्या उन्हें वहां इकट्ठा होने के लिए कहा गया था…
लाखों मस्जिदें,खाली जमीनें हैं फिर भी मुसलमानों ने नमाज पढ़ने के लिए व्यस्त इलाके की सड़क के बीच को चुना..
यह प्रार्थना नहीं बल्कि आम लोगों को असुविधा पहुंचकर ताकत दिखाने का प्रयास है.’’
 पूरा समर्थन
दिल्ली पुलिस
  उन्हें बाहर निकालने के लिए… शाबाश!!!

एक अन्य ट्वीट में सिन्हा कहते हैं, ‘‘ दिल्ली में बीच सड़क पर नमाज नहीं पढ़ने देने पर मुस्लिमों ने दिल्ली पुलिस के खिलाफ प्रदर्शन किया.

ऐसा सिर्फ भारत में ही हो सकता है…

आगे क्या? क्या उन्हें हमारे घरों में नमाज पढ़ने की इजाजत है? वे पहले से ही इसे राजमार्गों, रेलवे पटरियों, ट्रेनों, पार्कों आदि पर कर रहे हैं!!
दिल्ली में बीच सड़क पर नमाज नहीं पढ़ने देने पर मुस्लिमों ने दिल्ली पुलिस के खिलाफ प्रदर्शन किया.‘‘

दरअसल, ऐसे ही लोग देश की शांति और विकास की राह में रोड़ा हैं. ऐसे लोग बात का बतंगड़ बनाते हैं. जब कि इतना कुछ होने के बावजूद पुलिस और जनता अपने-अपने काम में लग गई है. मिस्टर सिन्हा जैसे लोग सांप के मरने के बाद भी लाठी पटक रहते हैं. इसपर से यह खुद को विदेश नीति का जनकार और राष्ट्रवादी कहते हैं. उन्हें यह कतई एहसास नहीं कि उनकी बेकार की बातों से देश की छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नुकसान पहुंचेगा. इसके अलावा भारत विरोधी शक्तियों को इससे नई खुराक मिलेगी.

हालांकि तब सड़क पर नमाज पढ़ने वालों की तरह जागरण, भंडारा, कीर्तन, शोभायात्रा निकाले और छबीलें लगाने वालों से नहीं पूछा जाता कि इतनी बड़ी संख्या में धर्मस्थल होते हुए वे सड़कों को घर कर यातायात में क्यों बाधा बने हुए हैं ? चूंकि यह सब भारत में ही संभव है, इसलिए प्रशासन ऐसे ‘अपराधों’ को अक्सर नजरअंदाज कर देता है. मगर जब से इसमें नफरती सियासत घुस आई है, ऐसे मामले तिल का ताड़ का रूप लेने लगे हैं.

ऐसे ही लोगों में शुमार हैं एक मिस्टर सिन्हा. उन्होंने सड़क पर जुमे की नमाज पढ़ने को लेकर अपने सोशल मीडिया एकाउंट से ऐसी-ऐसी बातें लिखी हैं, जिससे साफ झलकता है कि उनका मकसद यह जानने में कतई नहीं कि आखिर किन कारणों से मुसलमान सड़कों पर नमाज पढ़ने को मजबूर  हैं. इसकी जगह उन्होंने कल्पना की उड़ान देकर घटना को खास रहस्य से जोड़ने का प्रयास किया.

मिस्टर सिन्हा आरोपी पुलिस वाले का आंख मंूद कर समर्थन करते समय यह भूल गए कि यदि मुसलमानों ने सड़क पर नमाज पढ़कर  अपराध किया है तो इस जुर्म के लिए उनपर कानून कार्रवाई हो सकती है.उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता है या उनपर जुर्माना ठोंका जा सकता है, पर नमाज पढ़ते किसी नमाजी को थप्पड़ मारना, चूतड़ पर बूट से ठोकर लगाना, कहीं से कानून संगत नहीं है. यदि कानून संगत होता तो आरोपी सब इंस्पेक्टर मनोज तोमर को तीन महीने के लिए निलंबित नहीं किया जाता.

दिल्ली के जिस इलाके में यह घटना घटी, वहां मस्जिदों की कमी है. जमीन अब इतनी नहीं बची कि और मस्जिदें बनाई जाएं. रही बात लाखों की संख्या में देश में मस्जिद होने की तो उसमें उसी इलाके के लोग नमाज पढ़ने जा सकते हैं. अयोध्या में पूजा करने की इच्छा रखने वाला क्या केदारनाथ जाएगा ?

मीडिया आउटलेट रेड माइक के अनुसार, शुक्रवार को जुमे की एक नमाज हो चुकी थी. अधिक नमाजी होने के कारण दूसरी जमात चल रही थी. फिर भी भीड़ इतनी थी कि नमाजी रोड किनारे नमाज अदा करने को मजबूर थे. रेडमाइक के अनुसार, रोड किनारे जहां नमाजी नमाज पढ़ रहे थे उससे ट्रैफिक में किसी तरह की परेशानी नहीं आ रही थी.

बहरहाल, यदि सड़क पर नमाज पढ़ना अपराध है तो नमाजियों पर अवश्य कार्रवाई होनी चाहिए और इसी कानून के तहत ऐसी तमाम धार्मिक गतिविधियों पर भी रोक लगनी चाहिए. मगर मिस्टर सिन्हा ऐसी मुददे उठाने की जगह एक के बाद एक अपने कई एक्स संदेश में अकारण मुस्लिम समुदाय को कटघरे में खड़ा करने समय और स्थान जाया कर गए.

मिस्टर सिन्हा के ट्वीट की बानगी देखिए. एक में मिस्टर सिन्हा कहते हैं, ‘‘तो एक बड़ी मस्जिद सड़क के ठीक बगल में है और फिर भी मुसलमानों ने सड़क पर नमाज पढ़ना पसंद किया.. ऐसा क्यों?

क्या इससे साबित नहीं होता कि उन्होंने जानबूझकर अपनी ताकत दिखाने के लिए ऐसा किया या शायद वे चाहते थे कि पुलिस कार्रवाई करे ताकि वे पीड़ित की भूमिका निभा सकें और हिंसा शुरू करने का कारण मिल सके?
  जांच होनी चाहिए कि क्या उन्हें वहां इकट्ठा होने के लिए कहा गया था…
लाखों मस्जिदें,खाली जमीनें हैं फिर भी मुसलमानों ने नमाज पढ़ने के लिए व्यस्त इलाके की सड़क के बीच को चुना..
यह प्रार्थना नहीं बल्कि आम लोगों को असुविधा पहुंचकर ताकत दिखाने का प्रयास है.’’
 पूरा समर्थन
दिल्ली पुलिस
  उन्हें बाहर निकालने के लिए… शाबाश!!!

एक अन्य ट्वीट में सिन्हा कहते हैं, ‘‘ दिल्ली में बीच सड़क पर नमाज नहीं पढ़ने देने पर मुस्लिमों ने दिल्ली पुलिस के खिलाफ प्रदर्शन किया.

ऐसा सिर्फ भारत में ही हो सकता है…

आगे क्या? क्या उन्हें हमारे घरों में नमाज पढ़ने की इजाजत है? वे पहले से ही इसे राजमार्गों, रेलवे पटरियों, ट्रेनों, पार्कों आदि पर कर रहे हैं!!
दिल्ली में बीच सड़क पर नमाज नहीं पढ़ने देने पर मुस्लिमों ने दिल्ली पुलिस के खिलाफ प्रदर्शन किया.‘‘

दरअसल, ऐसे ही लोग देश की शांति और विकास की राह में रोड़ा हैं. ऐसे लोग बात का बतंगड़ बनाते हैं. जब कि इतना कुछ होने के बावजूद पुलिस और जनता अपने-अपने काम में लग गई है. मिस्टर सिन्हा जैसे लोग सांप के मरने के बाद भी लाठी पटक रहते हैं. इसपर से यह खुद को विदेश नीति का जनकार और राष्ट्रवादी कहते हैं. इसके बावजूद उन्हें यह कतई एहसास नहीं कि उनकी बेकार की बातों से देश की छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नुकसान पहुंचेगा. इसके अलावा भारत विरोधी शक्तियों को इससे नई खुराक मिलेगी.

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