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जम्मू-कश्मीर में हजारों महिलाओं पर संकट! NCW ने विशेष प्रकोष्ठों की फंडिंग रोकी

मुस्लिम नाउ ब्यूरो,श्रीनगर

जम्मू-कश्मीर में हजारों महिलाएं अनिश्चितता के दौर से गुजर रही हैं क्योंकि राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) ने 31 मार्च, 2025 से आगे विशेष प्रकोष्ठों के लिए वित्तीय सहायता समाप्त करने का निर्णय लिया है। ये विशेष प्रकोष्ठ संकटग्रस्त महिलाओं को कानूनी, सामाजिक और मानसिक सहायता प्रदान करने के लिए स्थापित किए गए थे। इस कदम ने लिंग आधारित हिंसा के पीड़ितों के लिए गंभीर चिंता पैदा कर दी है, जो न्याय और पुनर्वास के लिए इन सहायता केंद्रों पर निर्भर हैं।

विशेष प्रकोष्ठों की भूमिका और उपलब्धियां

‘हिंसा-मुक्त घर – एक महिला का अधिकार’ पहल के तहत स्थापित ये विशेष प्रकोष्ठ नवंबर 2021 से संचालित हो रहे हैं। इन्हें टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS) द्वारा जम्मू-कश्मीर गृह और समाज कल्याण विभागों के सहयोग से चलाया जाता है। अब तक, इन प्रकोष्ठों ने 9,800 से अधिक मामलों को संभाला है, जिनमें घरेलू हिंसा, उत्पीड़न, शोषण और अन्य महिला सुरक्षा से जुड़े मुद्दे शामिल हैं।

इन प्रकोष्ठों की सबसे बड़ी विशेषता उनका रणनीतिक रूप से पुलिस स्टेशनों में स्थित होना है। इससे यह सुनिश्चित किया जाता है कि पीड़ित महिलाओं को प्रशिक्षित सामाजिक कार्यकर्ताओं का समर्थन मिल सके और वे कानूनी प्रक्रिया तक आसानी से पहुंच बना सकें। इस मॉडल ने अपराध पीड़ितों और न्याय प्रणाली के बीच की खाई को पाटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

फंडिंग बंद करने से उत्पन्न संकट

NCW के इस वित्तीय समर्थन को समाप्त करने के फैसले से सबसे ज्यादा प्रभावित वे महिलाएं होंगी, जो इन प्रकोष्ठों पर निर्भर हैं। कई पीड़ितों को इनके बंद होने के बाद कानूनी सहायता और परामर्श सेवाओं की कमी का सामना करना पड़ेगा।

परियोजना के तहत कार्यरत 40 सामाजिक कार्यकर्ताओं और दो क्षेत्रीय समन्वयकों की एक समर्पित टीम का कहना है कि वे स्थायी नौकरियों की मांग नहीं कर रहे, बल्कि वे महिलाओं की सेवा जारी रखना चाहते हैं। परियोजना से जुड़े एक सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा, “इन सेवाओं के बिना, अनगिनत महिलाएँ असुरक्षित रह जाएँगी, जिनके पास न्याय पाने के लिए कोई संरचित प्रणाली नहीं होगी।”

महिलाओं की सुरक्षा पर गंभीर सवाल

इस फैसले की चौतरफा निंदा हो रही है। वरिष्ठ मानवाधिकार कार्यकर्ता शबनम हाशमी ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि “जम्मू-कश्मीर में हजारों महिलाएँ अनिश्चितता में हैं। NCW का यह कदम उनके अधिकारों के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है।”

लिंग आधारित हिंसा के विशेषज्ञों का कहना है कि जम्मू-कश्मीर में अभी तक अपना अलग राज्य महिला आयोग नहीं है, जिससे पीड़ित महिलाओं के लिए न्याय प्रक्रिया और भी कठिन हो जाती है। ऐसे में, NCW की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह इस पहल को तब तक जारी रखे, जब तक केंद्र शासित प्रदेश की सरकार इसे संभालने के लिए तैयार न हो जाए।

क्या सरकार आगे आएगी?

इस महत्वपूर्ण परियोजना के बंद होने की आहट के बीच अब सभी की निगाहें जम्मू-कश्मीर प्रशासन, गृह विभाग और समाज कल्याण विभाग पर टिकी हैं। क्या वे इस पहल को जारी रखने के लिए वैकल्पिक फंडिंग का कोई रास्ता निकालेंगे, या फिर यह सुरक्षा जाल खत्म हो जाएगा?

अगर समय रहते समाधान नहीं निकाला गया, तो विशेषज्ञों का मानना है कि विशेष प्रकोष्ठों की अनुपस्थिति जम्मू-कश्मीर में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों के खिलाफ लड़ाई में एक बड़ा झटका साबित होगी। जैसे-जैसे 31 मार्च की तारीख नजदीक आ रही है, यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या अधिकारी पीड़ित महिलाओं के अधिकारों और उनकी सुरक्षा की रक्षा के लिए कदम उठाते हैं, या फिर वे उन्हें असुरक्षित छोड़ देंगे।

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