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वर्ल्ड कप 2023 में तालिबान की जगह अफगानिस्तान का राष्ट्रीय ध्वज फहराना राष्ट्रद्रोह तो नहीं ?

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

आईसीसी वर्ल्ड कप 2023 में अफगानिस्तान इकलौता देश है जिसका मौजूदा राष्ट्रीय ध्वज नहीं लहराया जा रहा है. इसकी जगह पिछली अफगानिस्तान सरकार में तय राष्ट्रीय ध्वज ही फहराया जा रहा है. यही झंडा लेकर क्रिकेट प्रेमी भी स्टेडियम में आते हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि कहीं यह खुला अपराध तो नहीं है ?

तकरीबन दो वर्ष पहले काबुल का तख्तापलट होने के बाद अफगानिस्तान में तालिबान सत्ता में आ गया. इसके बाद इसने अफगानिस्तान का पुराना नेशनल फलैग बदल कर सफेद कपड़े पर काले रंग से कलमा लिखे झंडे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में मान्यता दे दी.

1997 में तय हुआ था तालिबानी झंडा

अफगानिस्तान के इस्लामिक अमीरात का वर्तमान ध्वज एक सादा सफेद झंडा है जिसके केंद्र में काले रंग से कलमा शहादत लिखा है. सफेद रंग का अर्थ है (तालिबान का इस्लामी आंदोलन) आस्था. तालिबान ने अपना यह झंडा 1997 में तय किया था. तालिबान की  पहली सरकार में भी इसी झंडे को मान्यता मिली हुई थी.

मगर तालिबान के सत्ता से हटने के बाद अमेरिका के सहयोग से गठित अफगानिस्तान की नई सरकार ने देश का झंडा बदल दिया. सफेद की जगह काले, लाल और हरे रंग की तीन ऊर्ध्वाधर पट्टियों, लाल बैंड पर केंद्रित सफेद रंग में राष्ट्रीय प्रतीक वाला झंडा लागू कर दिया. मगर वर्ल्ड कप के मैच में तालिबान की जगह पुराना अफगानिस्तान राष्ट्रीय ध्वज ही फहराया जा रहा है. यहां तक कि मैच के दौरान दर्शक दीर्घा में बैठे अफगानिस्तान टीम के समर्थक भी तालिबान की जगह पुराना राष्ट्रीय ध्वज ही लहराते नजर आते हैं. क्या यह राष्ट्रद्रोह नहीं है ?

कोई राष्ट्रध्वज का अदानादर कर सकता है ?

यह सवाल इस लिए भी गंभीर है कि कोई भी देशवासी अपने राष्ट्रीय ध्वज का इस तरह अनादर नहीं कर सकता. भले ही सरकार आपकी पसंद की हो अथवा नहीं.उसके तय कानून का उल्लंघन अपराध की श्रेणी में आता है. मजे की बात है कि यह अपराध विश्व कप जैसे अंतरराष्ट्रीय मंच से खुले आम किया जा रहा है.

अफगानिस्तान में झंडा बदलने का इतिहास पुराना है

अफगानिस्तान का स्वतंत्रता दिवस अब 19 अगस्त को तालिबान द्वारा राजधानी काबुल पर कब्जा करने के बाद मनाया जाता है. इससे पहले देश में 20 वर्षों तक अमेरिकी सेना की निगरानी में अफगानिस्तान की सरकार चली. इसकी वापसी के बाद देश में उथल-पुथल मचा , जिसे पूरी दुनिया ने देखा.

राजधानी काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद प्रमुख प्रतीकात्मक सवाल यह था कि क्या अफगानी राष्ट्रीय ध्वज या तालिबान का झंडा ऊंचा लहराएगा. झंडों के लिए लड़ाई कुछ दिन पहले जलालाबाद में शुरू हुई, जब प्रदर्शनकारियों ने तालिबान के सफेद झंडे की जगह अफगानी तिरंगे झंडे का इस्तेमाल कर दिया. संघर्ष में तालिबान द्वारा तीन लोगों की हत्या कर दी गई. अफगानिस्तान का पूरा आधिकारिक झंडा अब तालिबान के खिलाफ विरोध का प्रतीक है.

अफगानिस्तान में 102 वर्षों में बदले 30 झंडे

वैसे अफगानिस्तान में झंडे का बदलना कोई नई बात नहीं. अफगानिस्तान की आजादी के 102 वर्षों में, देश के राष्ट्रीय बैनर 30 बार बदले गए. केवल 1919 में इसमें 6 बार बदलाव किया गया. अफगानिस्तान अमीरात, साम्राज्य, गणतंत्र, समाजवादी गणराज्य और अंत में इसके इस्लामिक राज्य के लिए विभिन्न झंडे लहराए गए.

अफगान इतिहास में झंडे का बार-बार बदलना लगभग निरंतर अस्थिरता वाले परिवर्तनशील समाज का उदाहरण है. झंडे की यह विविधता अफगान समाज की विविधता और हितों की एक विस्तृत श्रृंखला का भी प्रतिनिधित्व करती है.

इस प्रकार, राजनीति और समाज को समझने के लिए झंडे, उनके प्रतीकों और उनके उपयोग को समझना महत्वपूर्ण है. झंडे पहचान की सबसे सघन और ज्वलंत अभिव्यक्ति हैं. इसके अलावा, झंडे सीधे लोगों की भावनाओं और उनके साथ जुड़ने और पहचानने की गहरी जरूरत के बारे में बात करते हैं. लोग अपने झंडों के नीचे और उनके लिए लड़ते और मरते हैं और अब भी यह हो रहा है.