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Triple talaq ‘शुक्रिया मोदी भाईजान’ पर भड़के मुसलमान

केंद्र सरकार तीन तलाक निषेध कानून के पक्ष में चाहे जितनी दलीलें दें, आम मुसलमानों का एक साल बाद भी गुस्सा ठंडा नहीं हुआ है

तीन तलाक कानून’ बने एक साल पूरे होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मुस्लिम औरतों का मसीहा साबित करने की जोरदार तैयारी है। इसके लिए सरकार की ओर से शुक्रवार को एक ‘वर्चुअल कांफ्रेंस ’ किया जा रहा है जिसे कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद एवं महिला व बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी संबोधित करेंगी। हांलाकि इस आयोजन से वे लोग भड़के हुए हैं जो केंद्र सरकार की इस पहल का शुरू से विरोध करते रहे हैं। कार्यक्रम का नाम दिया गया है ‘शुक्रिया मोदी भाईजान।’
 

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  वर्चुअल कांफ्रेंस को कामयाब बनाने के लिए केंद्र सरकार एवं भारतीय जनता पार्टी सोशल मीडिया तथा प्रिंट-इलेक्ट्रोनिक मीडिया का सहारा ले रही है। अलग-अलग बैनर के माध्यम से सोशल मीडिया पर कुछ मुस्लिम महिलाओं के वीडियो शेयर किए गए हैं जिसमें वे कहती सुनाई दे रही हैं कि मोदी भाई जान ने उनकी जिंदगी उजड़ने से बचा ली। अल्पसंख्यक कार्यमंती्र मुख्तार अब्बास नकवी ने अपने ट्यूटर हैंडल से वर्चुअल कांफ्रेंस का कार्यक्रम साझा किया है। इसके अनुसार, इसमें ग्रेटर नोएडा, लखनउ, वाराणसी, जयपुर, मुंबई, हैदराबाद, भोपाल,  तमिनाडु के कृष्ण नगर आदि की महिलाएं भाग लेंगीं। कांफ्रेंस का समय शुक्रवार 31 जुलाई को साढ़े दस बचे रखा गया है।

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   सप्ताह भर पहले मुख्तार अब्बास नकवी ने दावा किया था कि तीन तलाक रोकने के लिए बनाए गए कानून की मदद से पिछले एक साल में 82 प्रतिशत ऐसी घटनाओं में कमी आई है। हालांकि, उन्होंने इसके सपोर्ट में कोई तथ्य नहीं दिए थे, न ही ऐसा कोई तुलनात्मक आंकड़ा प्रस्तुत किया था जिससे पता चले कि पिछले एक साल में मुसलमानों के अलावा दूसरे धर्मों में तलाक का प्रतिशत क्या रहा ? बावजूद इसके सरकार अपनी वाहवाही में जुटी है। दूसरी तरफ, कानून से खफा लोग सोशल मीडिया पर इसके प्रति खुलकर विरोध दर्ज करा रहे हैं। राशिद एवं इरशाद इस कदर भड़के हुए हैं कि नकवी के कांफ्रेंस की जानकारी देने पर उनके विरूद्ध ही अप शब्द कहने पर उतर आए। वैसे, इस सच्चाई से मना भी नहीं किया जा सकता कि केंद्र सरकार तीन तलाक बनाने के पक्ष में चाहे जितनी दलीलें दे, आम मुसलमानों का एक साल बाद भी गुस्सा ठंडा नहीं पड़ा है। वे जहां सरकार की पहल को ईमानदाराना नहीं मानते, वहीं इसे मजहबी कानून में दखलंदाज़ी करार देते हैं। कई गठनों ने तो खुलेतौर पर सरकार को चुनौती देते हुए इस कानून को मानने से मना किया है।


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