Muslim World

UAE, Israel normalise ties खतरे में इस्लामिक देशों की एकजुटता

ध्रुवीकरण से निश्चित ही इस्लामिक देशों में फूट का खतरा बढ़ेगा। इससे इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) का वजूद खतरे में पड़ सकता है

इजराइल एवं सउदी अरब अमीरात (UAE) में समझौते के बाद इस्लामिक देशों में फूट का खतरा कई गुणा बढ़ गया है। समझौते के साथ ही तुर्की एवं फिलिस्तीन ने यूएई से अपने राजनयिक संबंध खत्म कर लिए हैं। हाल के दिनों में यूएई के मुस्लिम विरोधी देशों के करीब जाने तथा तुर्की के मजबूत इस्लामी देश के तौर पर उभरने से इस्लामी देशों के बीच दरार सी बढ़ने लगी थी, जिसे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रयासों ने खाई की शक्ल शक्ल लेनी शुरू कर दी है।

बिचौलिए डोनाल्ड ट्रंप को खरी-खरी
कहते हैं समझौता के पीछे डोनाल्ड ट्रंप का दिमाग है। उन्हें अब तक का सबसे बड़ा इजराइली समर्थक अमेरिकी राष्ट्रपति माना जाता है। उन्होंने ही सबसे पहले विश्व बिरादरी को इजराइल-यूएई के बीच द्विपक्षीय समझौते की जानकारी ट्वीट कर दी थी। समझौते के तहत उनके बीच कूटनीतिक संबंध स्थापित करने को जल्द यूएई में इजराइल का दूतावास खोला जाएगा। हालांकि बिचौलिया बनकर समझौता कराने में अहम भूमिका निभाने पर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की जबर्दस्त आलोचना हो रही है। उन्हें अमेरिका एवं इंसानियत का दुश्मन बताया जा रहा है। एक अमेरिकी का कहना है कि कोरोना से अब तक देश में 163,000 लोग मारे गए और ड्रंप समझौता कराते फिर रहे हैं। अमेरिका के लिए नहीं इजराइली राष्ट्रपति बेंजामिन नेतन्याहू के लिए काम करते हैं। एक ने अमेरिका और नेतन्याहू को स्वतंत्रता, इंसानियत एवं शांति का शत्रु बताया। सीरियन गर्ल ट्वीटर हैंडल से कहा गया कि उसने बहुत पहले भविष्यवाणी की थी कि आतंकवादी संगठन इस्लामिक इस्टेट को खड़ा करने के पीछे सीरिया, इजराइल व यूएई का षड़यंत्र है। अब उनका फिलिस्तीनी विरोधी रूख सामने आ गया।

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समझौते से इस्लामिक देश खफा
आमतौर से मुसलमान इजराइल को इस्लामिक-फिलिस्तीन विरोधी मानते हैं। न केवल इस्लामी इतिहास के ऐतबार से महत्वपूर्ण मस्जिद-ए-अक्सा बल्कि फिलिस्तीन के एक बड़े भू-भाग पर भी कब्जा कर रखा है। उसपर फिलिस्तिनियों पर अत्याचार के गंभीर आरोप हैं। इसके कारण इस्लामिक, बल्कि अन्य देश भी इजराइल के कड़े आलोचक रहे हैं। मुस्लिम देशों ने एक तरह से उसका बाइकॉट कर रखा है। हाल के दिनों में यूएई ने भी वेस्ट बैंक्स और जॉर्डन की पहाड़ियों पर इजराइल के कब्जे के प्रयास की आलोचना की थी। चेतावनी देते हुए कहा था कि इससे हिंसा भड़केगी। इसके कुछ दिन बाद ही यूएई ने अपने पुराने रूख से पलटी मारते हुए इजराइल संग पर्यटन, टेलिकम्यूनिकेशन, स्वास्थ्य आदि पर द्विपक्षीय समझौता कर लिया। समझौते में यूएई की तरफ से फिलिस्तीन पर इजराली कार्रवाई तुरंत रोकने की बात कही गई है। यह भी बताया गया कि समझौते के बाद इजराइल के कब्ज़े वाली ऐतिहासिक मस्जिद-ए-अक्सा नमाज  के लिए खोल दी जाएगी। इजराइल के बाकी धर्मस्थलों पर भी अन्य लोग इबादत के लिए जा सकेंगे। बावजूद इसके इस्लामिक जगत समझौते से खुश नहीं। इसको लेकर कितनी नाराज़गी है, इसे समझने के लिए सोशल मीडिया को पैमाना माना जाए तो जानकर हैरत होगी कि यूएई को खूब गालियां पड़ रही हैं। उसे इस्लाम व मुसलमान दुश्मन बताया जा रहा है। इससे संबंधित कार्टून पोस्ट हो रहे हैं। फिलिस्तीन की ज्यादतियों की दास्तां कहने वाली बच्चियों के वीडियो भी शेयर किए जा रहे हैं। उमर गरजेब ने ट्वीट कर बताया कि समझौते की खुशी में इजराइल की ओर से गाजा में बम बरसाए गए। साराह लिह तो मानती ही नहीं कि समझौते में फिलिस्तनियों के अधिकार वापसी के लिए कुछ है। पाकिस्तान के वकार खान ने ट्वीट किया कि इजराइल आतंकवादी देश है। यूएई के समझौते से यह वास्तविकता खत्म नहीं होगी।

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खतरे में OIC का वजूद

अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार कंचन गुप्ता ट्वीट कर कहते हैं इजराइल-यूएई समझौते के दूरगामी परिणाम दिखेंगे। यह इजिप्ट-जॉर्डन समझौते से बड़ा है। ऐसे तमाम कयास वास्तविक होते दिखने भी लगे हैं। समझौते के बाद इस्लामिक देश दो खेमे में बंटे से दिखने लगे है। इसके कारण इस्लामिक सहयोग संगठन यानी ओआईसी कमजोर पड़ सकता है। अभी संगठन के साथ 57 मुस्लिम देश हैं। ओआईसी को मुस्लिम देशों की संयुक्त आवाज माना जाता है। शायद अब ऐसा न रहे। अरब देशों में भी फूट के आसार हैं। समझौते के विरोध में तुर्की व फिलिस्तीन ने यूएई से अपने राजदूत बुला लिए हैं। ऐसे फैसले वे मुल्क भी ले सकते हैं जो तुर्की के करीब हैं। सउदी मुल्कों के मुकाबले तुर्की इस्लामी मुद्दे पर नुमाइंदगी के तौर पर उभर रहा है। भारत के अनुच्छेद 370 हटाने, सीएए और कश्मीर के मुद्दे पर वह ओआईसी से भी अधिक मुखर रहा। इसके साथ पड़ोसी पाकिस्तान भी खुलकर सामने आ गया है। हालांकि आर्थिक तंगी से जूझते पाकिस्तान को मुसीबत से उबर ने में यूएई ने भरपूर मदद की है। बावजूद इसके अभी वह खुद को तुर्की के साथ खड़ा दिखना चाहता है। अमेरिकी रवैये से खफा ईरान जैसे मुल्क भी न चाहते हुए तुर्की के साथ जा सकते हैं। ध्रुवीकरण से निश्चित ही इस्लामिक देशों में बँटवारे का खतरा बढ़ेगा। इससे इस्लामिक सहयोग संगठन का वजूद खतरे में पड़ सकता है। ऐसा होने पर इस्लाम विरोध मुल्क अपने उद्देश्य में कामयाब होगे। 1969 में स्थापित इस संगठन के खात्मे का मतलब है इस्लाम और मुसलमान समर्थक एक बड़ी ताकत का अंत। अभी अमेरिका, रूस, चीन के बाद ओआईसी ही दुनिया की चौथी बड़ी शक्ति है। इसके तहत 2015 के हिसाब से दुनिया की 1.81 बिलियन मुस्लिम आबादी आती है।

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संपादक

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