उज्जैन में महाकाल मंदिर कॉरिडोर विवाद: मुस्लिम घर और मस्जिदें निशाने पर
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मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली
मध्य प्रदेश के उज्जैन में महाकाल मंदिर कॉरिडोर के विस्तार के लिए प्रशासन द्वारा किए जा रहे विध्वंस ने एक गंभीर विवाद खड़ा कर दिया है. स्थानीय प्रशासन पर आरोप है कि उन्होंने 257 मुस्लिम घरों और कई ऐतिहासिक मस्जिदों को कथित रूप से अवैध तरीके से ध्वस्त कर दिया. इस कार्रवाई ने न केवल स्थानीय निवासियों को बल्कि देशभर के सामाजिक और कानूनी विशेषज्ञों को भी आक्रोशित कर दिया है.
मुस्लिम समुदाय पर विशेष निशाना
पूर्व वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी अब्दुर रहमान ने इस विध्वंस अभियान की कड़ी निंदा की है. उन्होंने दावा किया कि स्थानीय प्रशासन ने सदियों से रह रहे लोगों को मात्र 24 घंटे का नोटिस देकर उनके घर खाली करने को कहा, लेकिन कार्रवाई केवल 12 घंटे के भीतर ही शुरू कर दी गई.
रहमान ने यह भी आरोप लगाया कि प्रशासन ने प्रभावित परिवारों को मुआवजा देने में घोर लापरवाही बरती. केवल खानापूर्ति के लिए मामूली रकम दी गई, जो न तो उनकी संपत्तियों की वास्तविक कीमत के बराबर थी और न ही पुनर्वास के लिए पर्याप्त.
उज्जैन में महाकाल मंदिर कॉरिडोर के विस्तार के लिए मुसलमानो के घर और मस्जिद गैर कानूनी तरीके से स्थानीय प्रशासन द्वारा तोड़े जा रहे हैं. 257 घरों और कई पुरानी मस्जिद तोड़े गए हैं. सदियों से रह रहे लोगों को अपने घर खाली करने के लिए 24 घंटे का नोटिस दिया लेकिन 12 घंटे के अंदर ही… pic.twitter.com/bcyDvFKIdS
— Abdur Rahman (@AbdurRahman_IPS) January 14, 2025
गणेश कॉलोनी को क्यों छोड़ा गया?
इस विध्वंस अभियान ने समुदायों के बीच भेदभाव के सवाल खड़े कर दिए हैं. रिपोर्ट्स के अनुसार, गणेश कॉलोनी, जहां हिंदू समुदाय के लोग रहते हैं, को इस अभियान से अछूता रखा गया. वहीं, मुस्लिम बहुल इलाकों में बिना ठोस कानूनी प्रक्रिया के घरों और धार्मिक स्थलों को निशाना बनाया गया.
धार्मिक स्थलों को भी नहीं बख्शा गया
कार्रवाई में न केवल घर बल्कि कई पुरानी मस्जिदें भी ध्वस्त कर दी गईं. यह मस्जिदें मुस्लिम समुदाय के लिए केवल इबादतगाह ही नहीं थीं, बल्कि उनकी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर का भी प्रतीक थीं.
सरकार पर भेदभाव और अत्याचार का आरोप
मध्य प्रदेश की बीजेपी सरकार पर मुसलमानों के साथ भेदभावपूर्ण रवैया अपनाने और अन्याय करने के गंभीर आरोप लग रहे हैं. अब्दुर रहमान ने इसे “गैर-कानूनी और आपराधिक कार्रवाई” बताते हुए कहा कि सरकार का यह कदम एक सभ्य लोकतंत्र पर काला दाग है.
कानूनी प्रक्रिया की अनदेखी
सुप्रीम कोर्ट ने अतीत में इसी तरह की विध्वंस कार्रवाइयों पर सख्त टिप्पणियां की थीं, जिनमें प्रशासन को उचित कानूनी प्रक्रिया अपनाने और किसी भी भेदभावपूर्ण कार्रवाई से बचने का निर्देश दिया गया था. इसके बावजूद उज्जैन में प्रशासन द्वारा उठाए गए कदम सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के खिलाफ जाते दिखाई दे रहे हैं.
इस कड़ाके की ठंडी में लोग अपने बच्चों और परिवार को लेकर कहाँ जायेंगे. इनको थोड़ी मानवता भी नहीं है.
— Abdur Rahman (@AbdurRahman_IPS) January 14, 2025
मानवाधिकार संगठनों और न्यायालय से उम्मीद
अब्दुर रहमान ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) से हस्तक्षेप की मांग की है. उन्होंने कहा, “सरकार की यह हरकत एक सभ्य लोकतंत्र और संविधान के मूल्यों के खिलाफ है. मुसलमान बेबस हैं और उनके पास न्याय पाने का कोई साधन नहीं है.”
मुस्लिम समुदाय के सामने संकट
विध्वंस से प्रभावित परिवार बेघर हो गए हैं और उनका भविष्य अनिश्चित है. पुनर्वास की कोई ठोस योजना न होने के कारण वे गहरे संकट में हैं. उन्होंने सरकार और प्रशासन पर अपमानजनक रवैया अपनाने का आरोप लगाया है.
सरकार का पक्ष
हालांकि, प्रशासन और राज्य सरकार ने इस मामले पर अपनी स्थिति स्पष्ट करने से इनकार कर दिया है. उनका कहना है कि विध्वंस का उद्देश्य महाकाल मंदिर कॉरिडोर के विस्तार और शहर के विकास के लिए अतिक्रमण को हटाना है.
एक सभ्य लोकतंत्र पर सवाल
यह विवाद केवल उज्जैन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह देश में न्याय, समानता और कानून के शासन पर भी सवाल खड़े करता है. सुप्रीम कोर्ट और अन्य न्यायिक संस्थानों का इस मामले में क्या रुख होगा, यह देखना बाकी है.
उज्जैन की यह घटना धार्मिक भेदभाव, कानूनी प्रक्रियाओं की अनदेखी, और प्रशासनिक अन्याय का प्रतीक बन गई है. यह भारत के धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक ढांचे के लिए एक गंभीर चुनौती है. अब देखना यह है कि न्यायालय और मानवाधिकार संस्थान इस मामले में क्या कदम उठाते हैं और प्रभावित समुदायों को न्याय दिलाने में कितने सक्षम होते हैं.