केंद्रीय कानून मंत्री बोले, यूसीसी हमारे एजेंडे में, क्या इस मुददे पर जदयू से होगा करार !
मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली
मोदी सरकार के गठन के साथ ही नागरिक संहिता पर सत्तारूढ़ भाजपा और सहयोगी जनता दल यूनाईटेड से तकरार की संभावना दिखने लगी है. जदयू प्रवक्ता केसी त्यागी ने सरकार के गठन से पहले ही मोदी सरकार को नहसीत दे दी थी कि वह यूसीसी पर बीजेपी से सहमत नहीं. त्यागी ने मीडिया से बात करते हुए बीजेपी को इस मुददे पर विचार करने की सलाह दी थी. मगर इससे इतर बीजेपी अपने घोषणा पत्र में शामिल यूसीसी के मुददे को लेकर अड़ी हुई है.
केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने पद संभालते ही कहा कि समान नागरिक संहिता का क्रियान्वयन सरकार के एजेंडे का हिस्सा है. उन्होंने यह भी कहा कि प्रक्रिया ज्ञापन के मुद्दे पर समाधान निकाला जाएगा. ज्ञापन में उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति, पदोन्नति और स्थानांतरण से संबंधित दस्तावेजों का एक सेट शामिल है. इसे अंतिम रूप दिए जाने तक इस पर काम किया जाएगा.
उन्होंने इस बात को भी खारिज कर दिया कि कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच टकराव है.मेघवाल ने मंगलवार को कानून और न्याय मंत्रालय के लिए राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) के रूप में कार्यभार संभाला. पिछली मोदी सरकार में भी उनके पास यही विभाग था. अपने मंत्रालय में प्रमुख रिक्तियों पर एक सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि जहां भी रिक्तियां हैं, चाहे वह सुप्रीम कोर्ट हो, हाई कोर्ट हो या हमारा मंत्रालय या अधीनस्थ न्यायालय, हम उन्हें जल्द से जल्द भरने की कोशिश करेंगे.
एक साथ चुनाव के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है और हम बाद में इसके बारे में सूचित करेंगे.उन्होंने कहा कि विधि आयोग भी इस विषय पर काम कर रहा है.विधि आयोग द्वारा अपनी रिपोर्ट सौंपे जाने से पहले ही इसके अध्यक्ष न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) ऋतु राज अवस्थी सदस्य के रूप में लोकपाल में चले गए.
समान नागरिक संहिता पर एक सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि यह सरकार के एजेंडे का हिस्सा है.समान नागरिक संहिता सत्तारूढ़ भाजपा के लगातार घोषणापत्रों का हिस्सा रही है.प्रक्रिया ज्ञापन पर एक सवाल का जवाब देते हुए मेघवाल ने कहा कि यह लंबित है और सरकार ने इस पर सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को लिखा है. उन्होंने कहा, मुझे विश्वास है कि हम निश्चित रूप से इसका समाधान निकाल लेंगे.
सरकार द्वारा संसद के साथ साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, निचली अदालतों, 25 उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में पांच करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं.लंबित मामलों की संख्या बढ़ने के कई कारण हैं, लेकिन सबसे प्रमुख कारण न्यायपालिका में रिक्तियां हैं.1 जून तक, शीर्ष न्यायालय में दो रिक्तियां हैं, जबकि उच्च न्यायालयों में 345 न्यायाधीशों के पद रिक्त हैं.
सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली को अधिक पारदर्शी नियुक्ति तंत्र से बदलने के लिए, सरकार ने संविधान (99वां संशोधन) अधिनियम, 2014 और राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014 को 13 अप्रैल, 2015 से प्रभावी किया था. नए कानून को संसद ने लगभग सर्वसम्मति से पारित किया था.
हालांकि, दोनों अधिनियमों को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई, जिसने अक्टूबर, 2015 में अधिनियमों को असंवैधानिक और शून्य घोषित कर दिया.दोनों अधिनियमों के लागू होने से पहले मौजूद कॉलेजियम प्रणाली को प्रभावी घोषित किया गया.
शीर्ष न्यायालय ने एमओपी को पूरक बनाने के बारे में एक आदेश जारी किया, जिसमें कहा गया कि सरकार भारत के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से पूरक दस्तावेज को अंतिम रूप दे सकती है.यह निर्धारित किया गया था कि भारत के मुख्य न्यायाधीश चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों वाले कॉलेजियम के सर्वसम्मत विचार के आधार पर निर्णय लेंगे.सरकार और शीर्ष न्यायालय के बीच कई बार आगे-पीछे होने के बावजूद, एमओपी को अंतिम रूप देना लंबित है.