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संयुक्त राष्ट्र की उप महासचिव अमीना मोहम्मद ने इस्लामी देशों में महिलाओं की दुर्दशा पर क्या कहा ?

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

संयुक्त राष्ट्र की उप महासचिव अमीना मोहम्मद इस्लामी देशों में महिलाओं की दुर्दशा को लेकर बहुत चिंतित हैं. उन्होंने सऊदी अरब में अपने भाषण के दौरान इस मसले पर गहन चिंतन जाहिर किया. संयुक्त राष्ट्र की उप महासचिव अमीना मोहम्मद ने कहा कि भले ही महिलाओं ने इस्लामी सभ्यता में असाधारण योगदान दिया है, लेकिन कई देशों में वे अभी भी पीछे हैं.

इस्लाम में महिलाओं के अधिकारों और भूमिका पर जेद्दा में एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए संयुक्त राष्ट्र की उप महासचिव अमीना मोहम्मद ने शिक्षा, आर्थिक सशक्तिकरण और शांति के क्षेत्रों में कार्रवाई का आह्वान किया.

इजराइल-गाजा संघर्ष समाप्त हो

इजरायल और गाजा में सामने आ रही मानवीय तबाही के साथ, नागरिकों की हत्या और बंधक बनाए जाने की महासचिव ने निंदा की. साथ ही उनकी बिना शर्त रिहाई, मानवीय युद्धविराम और लोगों तक निर्बाध पहुंच का आह्वान किया.

उन्होंने कहा, हमें,इस क्षेत्र और दुनिया में, इस भयानक हिंसा, दर्द और पीड़ा को खत्म करने और शांति की मेज पर लौटने के लिए अपनी पूरी शक्ति लगानी चाहिए. इसमें महिलाएं भी अहम रोल अदा कर सकती हैं. उन्हांेने कहा, हमारा इस्लामी विश्वास हमसे मांग करता है कि हम जरूरत के समय अपने पड़ोसियों की देखभाल करें.

विश्व विफलता की शिकार महिलाएं

संयुक्त राष्ट्र की उप महासचिव अमीना मोहम्मद ने कहा कि वह इस चर्चा का हिस्सा बनकर सम्मानित महसूस कर रही हैं. कैसे हम किसी व्यक्ति को उनके लिंग के आधार पर नहीं बल्कि उनके विश्वास की ताकत और उनके कृत्यों के गुणों के आधार पर मापने की इस्लाम की मूल और सुंदर दृष्टि पर लौट सकते हैं.

उन्होंने याद दिलाया कि शुरू से ही, इस्लाम ने राजनीतिक निर्णय में भाग लेने, विरासत पाने और संपत्ति और व्यवसायों के मालिक होने के महिलाओं के अधिकार को मान्यता दी है. फिर भी कई शताब्दियों के बाद, कई देशों में और जीवन के कई क्षेत्रों में, महिलाओं को पीछे छोड़ दिया गया है.

उन्होंने कहा कि यह पूरे इतिहास में एक दुखद तथ्य है. महिलाएं और लड़कियां अक्सर सबसे पहले और सबसे बुरी तरह पीड़ित होती हैं. हर कोई इसकी कीमत चुकाता है. महिलाओं के मामले में समाज कम शांतिपूर्ण है. अर्थव्यवस्थाएं कम समृद्ध हैं और दुनिया कम न्यायपूर्ण है.

आज दुनिया भर में महिलाओं को असफल किया जा रहा है. हमारी मांएं, पत्नियां, बेटियां,” परेशान हैं.लड़कियों के खिलाफ भेदभाव, हिंसा और दुर्व्यवहार के पुराने रूप हर जगह मौजूद हैं. लैंगिक पूर्वाग्रह और असमानता के नए रूप अक्सर डिजिटल दुनिया के नए युग के एल्गोरिदम में निर्मित होते हैं.

गलत को करें सही

संयुक्त राष्ट्र की उप महासचिव अमीना मोहम्मद ने गलतियों को सुधारने के लिए तीन मोर्चों पर एकजुटता से काम करने का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि सभी लोगों, विशेषकर महिलाओं और लड़कियों के लिए शिक्षा का अधिकार सुरक्षित करने के लिए और अधिक प्रयास किए जाने चाहिए. पवित्र कुरान हमसे इसकी मांग करता है.

हालांकि, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि शिक्षा को एक समावेशी, प्रगतिशील, प्रक्रिया द्वारा परिभाषित किया जाना चाहिए जो सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक मानदंडों का सम्मान करती है जो कोई नुकसान नहीं पहुंचाती, बल्कि सभी व्यक्तियों को एजेंसी और सम्मान देती है.

अफगानिस्तान में तत्काल बदले स्थिति

उन्होंने कहा कि इस्लाम स्पष्ट रूप से उन सभी भेदभावपूर्ण कानूनों और प्रथाओं को समाप्त करने का आह्वान करता है जो शिक्षा तक पहुंच में बाधा डालते हैं. उन्होंने कहा कि दुनिया भर में 130 मिलियन लड़कियां स्कूल से बाहर हैं, जो अफगानिस्तान में विशेष स्थिति को उजागर करती हैं.

उन्हांेने कहा,अफगान महिलाओं को अपने देश के भविष्य के निर्माण में अपनी पूरी भूमिका निभाने की जरूरत है. उनके देश को अपनी महिलाओं और लड़कियों के फलने-फूलने की जरूरत है. तालिबान के कठोर प्रतिबंधों और दैवीय रूप से प्रदत्त अधिकारों से इनकार को तत्काल एक विषय के रूप में संबोधित किया जाना चाहिए.

आर्थिक, सशक्तिकरण और न्याय मिले

दूसरे मोर्चे की ओर मुड़ते हुए, संयुक्त राष्ट्र की उप महासचिव अमीना मोहम्मद ने कहा कि महिलाओं और लड़कियों के आर्थिक अवसरों और अधिकारों को आगे बढ़ाना सिर्फ निष्पक्षता या समानता का सवाल नहीं है, बल्कि पूरे समाज के लिए न्याय, प्रगति और समृद्धि का मामला है.

जब लाखों महिलाओं और लड़कियों को उनके समुदायों और अर्थव्यवस्था में योगदान देने से रोका जाता है, तो हम महिलाओं के अधिकारों को कुचलते हुए देखते हैं. जैसा कि आज अफगानिस्तान में होता है.हम सभी हार जाते हैं.लेकिन संयुक्त राष्ट्र की उप महासचिव अमीना मोहम्मद ने इस्लामी दुनिया भर में आशा के संकेतों की ओर भी इशारा किया, जहां देश इस्लामी सिद्धांतों की अनुकूलता और महिलाओं के सशक्तिकरण का प्रदर्शन कर रहे हैं.

परंपरा का सम्मान करें, परिवर्तन को अपनाएं

सऊदी अरब, कतर, मिस्र, संयुक्त अरब अमीरात, इंडोनेशिया और सेनेगल जैसे देशों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, मुस्लिम महिला विद्वान, महिला डॉक्टर, महिला उद्यमी और राजनीतिक नेता परंपरा में निहित लेकिन प्रगति और बदलाव को अपनाते हुए आगे बढ़ने का रास्ता तलाश रहे है.उन्होंने विशेष रूप से संघर्ष को सुलझाने, मध्यस्थता और शांति बनाए रखने में महिला नेतृत्व को आगे बढ़ाने की आवश्यकता को रेखांकित किया.

महिला, शांति और सुरक्षा

उन्होंने कहा, हम शांति प्रक्रियाओं को जानते हैं, जिसमें घर से लेकर युद्ध के मैदान तक मध्यस्थता भी शामिल है. इसमें महिलाएं भी शामिल होती हैं, ताकि अधिक स्थायी शांति परिणाम प्राप्त हों. यहां भी, यह महिलाओं पर उपकार करने का मामला नहीं है.यह समावेशी, शांतिपूर्ण और समृद्ध समुदायों के लिए स्थितियों को सुरक्षित करने के बारे में है.

संयुक्त राष्ट्र की उप महासचिव अमीना मोहम्मद ने कहा कि मुस्लिम समाज के स्थिर और अपरिवर्तनीय होने की रूढ़ि के विपरीत, इतिहास निरंतर परिवर्तन और गतिशील परिवर्तन दिखाता है.

महिलाओं की आवाज को करें बुलंद

उदाहरण के लिए, मुस्लिम न्यायविद बदलती परिस्थितियों और उभरते मूल्यों के अनुरूप इस्लामी कानून की व्याख्या खोजने के लिए खुले हैं, जबकि मुस्लिम देशों ने महिलाओं की अधिक आर्थिक और राजनीतिक भागीदारी की अनुमति देने के लिए अपने कानूनों में सुधार किया है.उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया को तेज और प्रोत्साहित किया जाना चाहिए.

उन्होंने कहा, मैं आप सभी से आग्रह करती हूं कि हमारे समाज में हमारी महिलाओं, खासकर अफगानिस्तान में हमारी बहनों की आवाज सुनें और बढ़ाएं.आइए हम सब मिलकर इस गलत धारणा और अज्ञानता को दूर करें कि लड़कियों और महिलाओं को शिक्षा और अवसरों से वंचित करना हमारे इस्लामी विश्वास के अनुरूप है.