अरब लीग की योजना को अमेरिका-इजरायल ने किया खारिज, लेकिन क्यों? एक विश्लेषण
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मुस्लिम नाउ ब्यूरो,रियाद
अरब लीग द्वारा गाजा के लिए प्रस्तावित योजना को अमेरिका और इजरायल ने पूरी तरह से खारिज कर दिया है, लेकिन सऊदी अरब के प्रसिद्ध स्तंभकार और राजनीतिक विश्लेषक अब्दुलरहमान अल-राशेद का मानना है कि यह योजना अब भी वार्ता को जीवित रखने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
अरब न्यूज़ के लोकप्रिय सामयिक कार्यक्रम “फ्रैंकली स्पीकिंग” में बातचीत के दौरान, अल-राशेद ने गाजा युद्ध के बाद अरब लीग की योजना, इसके विरोधी प्रस्तावों और लेबनान, सीरिया एवं सऊदी अरब में विकसित हो रहे राजनीतिक परिदृश्य का विस्तार से मूल्यांकन किया।
अरब लीग की योजना और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
4 मार्च को काहिरा में आयोजित अरब लीग के असाधारण शिखर सम्मेलन में इस योजना की घोषणा की गई। यह शिखर सम्मेलन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के विवादास्पद सुझाव के जवाब में आयोजित किया गया था, जिसमें उन्होंने गाजा पर अमेरिकी कब्जे की संभावना जताई थी। ट्रम्प की योजना के तहत, गाजा की फिलिस्तीनी आबादी को मिस्र और जॉर्डन में विस्थापित कर दिया जाता और इस भूमि को एक पर्यटक स्थल में बदला जाता।
इसके विपरीत, अरब लीग की योजना में कहा गया है कि गाजा को अस्थायी रूप से स्वतंत्र विशेषज्ञों की एक समिति द्वारा शासित किया जाएगा और क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय शांति सैनिकों की तैनाती होगी। इस योजना के तहत फिलीस्तीनी प्राधिकरण की देखरेख में मानवीय सहायता का प्रबंधन किया जाएगा और गाजा का पुनर्निर्माण 53 बिलियन डॉलर की लागत से किया जाएगा, जिससे वहाँ के निवासियों को विस्थापित करने की आवश्यकता नहीं होगी। यूरोपीय नेताओं ने इस योजना का समर्थन किया है, लेकिन अमेरिका और इजरायल ने इसे खारिज कर दिया है।
तीन प्रमुख योजनाएँ और उनकी तुलना
अल-राशेद ने कहा, “मुझे लगता है कि अब हमारे पास तीन योजनाएँ हैं।”
- अरब लीग की योजना: इस योजना के तहत गाजा में रहने वाले लोगों को वहीं बनाए रखा जाएगा और क्षेत्र का पुनर्निर्माण पाँच वर्षों में पूरा किया जाएगा।
- इजरायल की योजना: इजरायल का प्रस्ताव गाजा पर सैन्य कब्जे को जारी रखने पर केंद्रित है।
- ट्रम्प की योजना: इसे “रिवेरा योजना” कहा जा सकता है, जिसमें दो मिलियन लोगों को गाजा से बाहर निकालने और इस भूमि को एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की बात कही गई है।
अल-राशेद ने कहा, “मुझे वास्तव में यकीन नहीं है कि काहिरा शिखर सम्मेलन व्हाइट हाउस को समझाने में सफल रहा है, लेकिन कम से कम हमारे पास एक योजना है, और मुद्दा यही है – बातचीत करना।”
हमास की भूमिका और संभावित चुनौतियाँ
अरब लीग की योजना पर सबसे बड़ी आपत्तियों में से एक यह है कि इसके तहत गाजा के प्रशासन में हमास की भूमिका हो सकती है। इजरायल, अमेरिका और कई पश्चिमी देशों ने हमास को आतंकवादी संगठन घोषित किया है, खासकर 7 अक्टूबर, 2023 को दक्षिणी इजरायल पर हुए हमले के बाद।
जब अल-राशेद से पूछा गया कि क्या हमास की भागीदारी इस योजना को कमजोर बना सकती है, तो उन्होंने कहा कि हमास ने पहले ही सत्ता से अलग होने की इच्छा व्यक्त की है। उन्होंने कहा, “वास्तव में, हमास ने संकेत दिया है कि वे इस योजना को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं और वे गाजा के प्रशासन के लिए अन्य फिलिस्तीनी दलों के साथ मिलकर काम कर सकते हैं।”
हालांकि, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि हमास राजनीतिक नियंत्रण छोड़ने को तैयार हो सकता है, लेकिन समूह ने अब तक पूर्ण निरस्त्रीकरण के लिए कोई प्रतिबद्धता नहीं जताई है।

अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और आगे का रास्ता
अल-राशेद का मानना है कि अरब लीग के महासचिव अहमद अबुल घीत को योजना को सीधे व्हाइट हाउस में अमेरिकी प्रशासन के सामने प्रस्तुत करना चाहिए। उन्होंने कहा, “हमारे पास दो संभावनाएँ होंगी – या तो अमेरिका बातचीत करेगा और किसी समझौते पर पहुँचेगा, या फिर ट्रम्प इसे खारिज कर देंगे और अरब लीग पर एक और व्यावहारिक योजना लाने के लिए दबाव डालेंगे।”
उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि अगर अरब लीग की योजना को खारिज कर दिया गया, तो इसका नकारात्मक प्रभाव पूरे मध्य पूर्व में दिखाई देगा। उन्होंने कहा, “अगर ट्रम्प का सुझाव लागू किया जाता है और दो मिलियन फिलिस्तीनियों को गाजा से बाहर निकाल दिया जाता है, तो इससे मिस्र, जॉर्डन और पूरे क्षेत्र में अस्थिरता फैल सकती है।”
निष्कर्ष
गाजा के भविष्य पर असहमति स्पष्ट रूप से तीन प्रमुख योजनाओं में देखी जा सकती है। अरब लीग की योजना को यूरोपीय समर्थन मिला है, लेकिन अमेरिका और इजरायल इसे स्वीकार नहीं कर रहे हैं। वहीं, ट्रम्प की योजना को लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय में व्यापक असहमति है। इस बीच, इजरायल के सैन्य कब्जे को जारी रखने की योजना से क्षेत्र में अशांति और बढ़ने की संभावना है।
अल-राशेद का मानना है कि काहिरा शिखर सम्मेलन वार्ता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन जब तक प्रमुख हितधारक एक आम सहमति पर नहीं पहुँचते, तब तक गाजा संकट का हल निकालना मुश्किल होगा।