Uttar Pradesh हद कर दी आप नेः गोकशी को बना दिया राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा
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गौहत्या कानून के कारण रहमुद्दीन को 75 दिनों तक रहना पड़ा जेल में
2020 में गोकशी के आधे से अधिक मामलों को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम से जोड़ा गया
उत्तर प्रदेश की योगी आदित्य नाथ सरकार गोकशी कानून का कथित दुरुपयोग कर रही है. आरोप है कि कई मामलों में इसे राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा बना आरोपियों को लंबे दिनों तक जेल में सड़ाया जा रहा. इसका ताजा शिकार बने हैं धान की खेती करने वाले रहमुद्दीन. उन्हें 75 दिनों तक जेल काटनी पड़ी. उनके परिजनों को डर है कि इस आरोप में उन्हें दोबारा गिरफ्तार किया जा सकता है.
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गो हत्या के आरोपों में रहमुद्दीन को हाल में जमानत दी है. आरोप है कि वह और उसके साथी गो हत्या में शामिल थे. हालांकि इसके कोई ठोस सबूत नहीं. रहमुद्दीन के परिजन कहते हैं, ‘‘ फिर भी जाने क्यों लगता है कि पुलिस रहमुद्दीन को घर से उठा ले जाएंगे.’’ घर वाले खौफजदा हैं. वेबसाइट ‘आर्टिकल-14’ में प्रकाशित सौरभ शर्मा की रिपोर्ट कहती है कि 5 अगस्त 2020 को रहमुद्दीन को गोकुशी में हिरासत में लिया गया. पुलिस उसे और उसके पांच साथियों को दो महीने से तलाश रही थी. दबाव बनाने पर उन्होंने उत्तर प्रदेश पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया.
बिना फोरेंसिक जांच, नतीजे पर पहुंचना गलत
उनपर आरोप है कि वे गाय की हत्या कर उसका माँस बेचने की फिराक में थे. पश्चिमी यूपी पुलिस ने शामली जिले में 25 मई को गुप्त सूचना के आधार पर दबिश देकर घटनास्थल से कथित तौर पर गोमांस, चार पैर और किसी गोवंश का कटा सिर बरामद किया. सूचना मिली थी कि रहमुद्दीन और उसके साथी गाय की हत्या कर उसे बेचने की तैयारी में हैं . घटनास्थल पर छापा मारा तो सभी गोमांस छोड़ कर फरार हो गए. मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी के निरीक्षण के बाद माँस का नमूना फोरेंसिक जांच के लिए भेज दिया गया, जबकि बाकी को जमीन में दबा दिया गया. पशुचिकित्सक मोहम्मद नदीम का रहमुद्दीन मामले में कहना है कि बिना फोरेंसिक जांच के यह कहना सही नहीं कि बरामद माँस गाय का है. कोर्ट ने इस आधार पर 75 दिनों बाद रहमुद्दीन को जमानत दे दी. पशुचिकित्सक कहते है-‘‘मांस, यदि त्वचा, बाल या शरीर के अन्य अंगों के साथ बरामद होता है तो यह किस जानवर का है, इसकी पहचान संभव है, जबकि फोरेंसिक जांच से पता लगाया जाता है कि माँस गाय का है या किसी और पशु का. पशुचिकित्सक नदीम कहते हैं कि बिना फेरेंसिक जांच के किसी निष्कर्ष पर पहुंचना गलत है.
मुसलमानों के खिलाफ कानून के दुरुपयोग का आरोप
पुलिस ने रहमुद्दीन और उसके साथियों के खिलाफ उत्तर प्रदेश प्रिवेंशन ऑफ काउ स्लॉटर एक्ट, 1955 की धारा 8, 5 (गोमांस की बिक्री) और 3 (गो हत्या) के तहत मामला दर्ज किया है. यूपी में गौ हत्या गैर-ज़मानती अपराध है. देश के 22 राज्यों में इसको लेकर अलग-अलग कानून है. रहमुद्दीन के वकील ओंकार सिंह कहते हैं, यूपी में गो हत्या एवं राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) 1980 का दुरुपयोग निर्दोषों के खिलाफ किया जा रहा. उनका आरोप है कि पुलिस नियमित रूप से जब्त माँस को गोमांस बताकर संदिग्धों को जेल भेज रही है. उन्होंने पुलिस पर गोहत्या मामलों में मुसलमानों को विशेष तौर से निशाना बनाने का भी आरोप लगाया.
गोकशी को बना दिया राष्ट्रद्रोह मामला
सितंबर 2020 में इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत के सबसे अधिक आबादी वाले उत्तर प्रदेश में एनएसए के तहत आधे से अधिक गिरफ्तारियों में गौहत्या के संदिग्ध मामले हैं। एनएसए कानून के तहत पुलिस किसी को बिना किसी बंदिश के गिरफ्तार कर सकती है. ‘आर्टिकल-14’ में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, यूपी के गृह विभाग के प्रमुख सचिव अवनीश अवस्थी ने अगस्त 2020 में जानकारी दी कि ‘‘एनएसए के तहत उत्तर प्रदेश में 139 मामले दर्ज किए गए, जिनमें 76 गोकशी से संबंधित हैं.‘‘ सिंह ने रहमुद्दीन के मामले में अदालत में पैरवी करते हुए कहा कि कथित गोमांस की बरामदगी में सावधानियां नहीं बरती जा रहीं. ‘‘रिकवरी मेमो‘‘, से इसका खुलासा हुआ है. उन्होंने अदालत से कहा, ‘‘(गौ-वध) अधिनियम का निर्दोष व्यक्तियों के खिलाफ दुरुपयोग किया जा रहा है.‘‘ वैसे, रहमुद्दीन गौहत्या के आरोप में एक बार पहले भी जेल जा चुका है. पहली बार 2012 में गाय का माँस उसके खेत के पास से बरामद होने पर उसे 22 दिनों तक जेल की सजा काटनी पड़ी थी. (pic www. Article 14.com)
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संपादक