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विहिप का दोहरा मापदंड: वक्फ बोर्ड पर नियंत्रण की मांग, मंदिरों को सरकारीकरण से बचाने की वकालत

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

‘तिरूपति लड्डू कांड’ के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के नियंत्रण में चलने वाले विश्व हिंदू परिषद के एक बयान ने साबित कर दिया कि वक्फ संशोधन बिल और इस कांड पर दिए गए बयानों में भारी विरोधाभास है.विहिप एक तरफ जहां वक्फ संशोधन बिल के समर्थन में खड़ा है, वहीं दूसरी ओर तिरूपति बाला जी मंदिर के लड्डू कांड पर उसकी राय है कि ‘मंदिरों का सरकारीकरण नहींए सामाजीकरण हो.’’

विहिप के केंद्रीय संयुक्त महामंत्री डाॅ सुरेंद्र जैन के इस बयान को आरएसएस की पत्रिका माने जाने वाली ‘पांचजन्य’ की न्यूज वेबसाइट पर बड़ी प्रमुखता से छापा गया है. इस बयान में तकरीबन वही सब बातें हैं, जिनके बारे में मुसलमानों को आशंका है कि वक्फ बोर्ड कानून में संशोधन के बाद वही सब होने वाला है जो अब तक मंदिरों के बोर्ड को लेकर किया जा रहा है.

विहिप के केंद्रीय संयुक्त महामंत्री डाॅ सुरेंद्र जैन ने जहां तिरूपति बाला जी मंदिर के लड्डू के प्रसाद में गाय, सूअर की चर्बी और मच्छली का तेल मिलाने पर गम और गुस्से का इज्हार किया है.वहीं राजस्थान की तत्तकालीन सरकार द्वारा जयपुर के श्री गोविंद देव जी मंदिर का 9 करोड़ 82 लाख रूपये ईदगाह के विकास पर खर्च करने पर विरोध जताया है.

वक्फ संशोधन बिल की मुखालिफ करने वालों का भी यही कहना है. इसके सरकार के अधीन होने के बाद वक्फ संपत्तियां का किसी और काम में इस्तेमाल किया जाएगा.

यदि सनातन समुदाय मंदिर बोर्ड का पैसा हिंदू धर्मावलंबियों के विकास और उत्थान पर खर्च करने के हिमायती हैं, तो वे कैसे बोर्ड के धन का इस्तेमाल अन्य काम या समुदाय के उत्थान पर लगाने का समर्थन कर सकते हंै ? यह गंभीर सवाल हिंदू संगठनों के लिए है. इस मामले में कई हिंदू संगठनों के साथ विहिप इससे भी दो हाथ आगे चली जाती है. मिसाल के तौर पर जब महाराष्ट्र सरकार ने 10 करोड़ रूपये वक्फ बोर्ड के कामकाज के विकास पर खर्च करने के लिए बतौर अनुदान देने का ऐलान किया तो यह सड़कों पर उतरने की धमकी देने लगी.

यदि यह नजरिया मंदिर बोर्ड को लेकर है तो वक्फ बोर्ड को लेकर नजरिया कैसे बदल सकता है ? वक्फ संपत्ति मुसलमानों द्वारा बोर्ड को दान के रूप में इस शर्त के साथ दी गई है कि इससे मिलने वाले धन मुसलमानों के उत्थान और कल्याण पर खर्च किया जाए.

मगर इसको लेकर कई कट्टरपंथियों के पेट में मरोड़ है. अपने मंदिर बोर्ड में तो किसी तरह का सरकारी हस्तक्षेप नहीं चाहते, पर इसके उलट इनकी अच्छा है कि वक्फ बोर्ड सरकार के अधीन हो जाए. जिले का कलेक्टर इसे अपने हिसाब से चलाए. यह दोहरा मापदंड नहीं तो और क्या है ?

इसमें कोई दो राय नहीं कि वक्फ बोर्ड के कामकाज में कई खामियां हैं, कई बड़े लोगों ने इसकी करोड़ांे रूपये की संपत्ति पर अवैध कब्जा कर रखा है. सरकार एक नोटिफ़िकेशन पर वक्फ की जमीन अपने नाम कर लेती हैं. वक्फ संपत्ति का एक हिस्सा अभी भी विधिवत रूप से अपंजीकृत है.

सरकार की नियत यदि बोर्ड को लेकर साफ है तो इस मुद्दे पर काम करे. अवैध कब्जे हटाए, पंजीकृत कराए, बोर्ड की संपत्ति को दुरूपये होने से बचाएं. इस की बजाए इस प्रयास में है कि पिछड़े मुसलमानों के बहाने हिंदुओं को भी वक्फ बोर्ड का करता-धरता बना दिया जाए. ऐसा करोगे तो आज नहीं तो कल मुसलमान, बौद्ध, सिख, ईसाई भी ऐसी मांग उठने लगेगा.

जो देश में नफरत फैलाने के काम में लगे हैं और खुद को राष्ट्रभक्त बताकर मुल्क को पटरी से उतारने की फिराक में लगे रहते हैं, उन्हें समझना होगा कि जब देश बचेगा तक ही आप धर्म-मजहब कर सकते हो. ऐसे उलजुलूल मुद्दे पर शक्ति बर्बाद होती है. एक समुदाय के खिलाफ ‘सांस्कृतक युद्ध’ लड़ने की बजाए संयुक्त रूप से देश को आगे ले जाने की दिशा में हमें काम करना होगा.

कई वर्षों तक केंद्र में सेवा देकर स्वेच्छा से रिटार्यमेंट लेने वाले अफजल अमानुल्लाह अपने एक वीडियो में कहते हैं, ‘‘वक्फ संपत्तियों पर कई वर्षों तक काम के दौरान पाया कि जो संपत्ति पंजीकृत नहीं है, वह सांप्रदायिक झगड़े का कारण बनी हुई हैं. इस लिए उन्हांेने नितीश सरकार में रहते कब्रिस्तानों एवं शमशान घाटों की घेराबंदी का अभियान चलाया था.’’

देश, समाज, सियासत, बुद्धिजीवियों, धार्मिक लोगों की ओर से संयुक्त प्रयास होना चाहिए कि बोर्डों की संपत्ति का दुरूपयोग न हो और सरकार की मदद से इसे सुचारूप से रूप से चलाया, न कि इसपर कब्जा करने का षड़यंत्र रचा जाए. ऐसी नियत रखने वालों के खिलाफ फिर जाकिर नायक जैसे लोगों को सक्रिय होने का मौका मिल जाता है.

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