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Vikas Dubey encounter : सात वर्ष पहले DSP जियाउल हक के हत्यारे सलाखों के पीछे होते तो यह नौबत नहीं आती

ब्यूरो रिपोर्ट।
उत्तर प्रदेश के कुंडा डीएसपी जिया उल हक के हत्यारों को यदि सात वर्ष पहले कठोर सजा मिल गई होती तो आज इस प्रदेश की पुलिस को गैंगस्टर विकास दूबे को निपटाने के लिए ‘इनकाउंटर’ का ‘खेल‘ नहीं खेलना पड़ता। दूबे की मौत के बाद इस रहस्य पर से पर्दा उठना रह गया कि उसे किस सियासी शख्सियतों एवं पुलिस अधिकारियों से खाद-पानी मिल रहा था कि एक ही झटके में उसने आठ पुलिस वालों को मौत के घाट उतार दिया ? डीएसपी जियाउल हक की हत्या के मामले में भी ऐसा ही खेल खेला गया था। इसके कारण तमाम आरोपों के बावजूद एक बहूबली आज भी राजनीति के मैदान में सरगर्म है।
  उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के कुंडा इलाके में तैनात डीएसपी जियाउल हक को दो मार्च 2013 को बलीपुर गांव में गोलियों से छलनी कर दिया गया था। वह वहां जमीन और दुकान के विवाद में गांव प्रधान नन्हेे यादव की हत्या के सिलसिले में गए थे। उनकी मौजूदगी में प्रधान के भाई सुरेश यादव की भी हत्या कर दी गई थी। उसके बाद हिंसक भीड़ ने उन्हें दौड़ाने लगी। कुछ दूर जाकर वह जमीन पर गिर गए। तब उनकी लात-घुंसे से पिटाई की गई। फिर गोली मार कर मौत के घाट उतार दिया गया। डीएसपी बलीपुर गांव दल-बल के साथ गए थे। वारदात के समय सभी पुलिस वाले अपने अधिकारी को पिटता छोड़कर भाग गए।
   इस मामले में डीएसपी की पत्नी परवीन आजाद ने पुलिस को तहरीर देकर यूूपी के चर्चित बाहुबलि राजा भैया और उनके चार समर्थकों हरि ओम, नगर पंचायत अध्यक्ष गुलशन यादव, चालक रोहित सिंह व गुड्डू सिंह के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था। उस समय राजा भैया समाजवादी पार्टी की अखिलेश यादव सरकर में कैबिनेट मंत्री थे। परवीन आजाद की मांग पर सीबीआई जांच भी कराई गई। राजा भैया को सीबीआई द्वारा क्लीन चिट देने पर सीबीआई की विशेष अदालत ने सवाल भी उठाए। बावजूद तमाम तरह की आपत्तियों के राजा भैया आजाद घूम रहे हैं। पुलिस एवं सीबीआई ने हत्या के आरोपी पवन यादव द्वारा परवीन आजाद को जेल से लिखी गई तीन पेज की चिट्ठी के आधार पर मामले की नए सिरे से जांच करना भी जरूरी नहीं समझा। पवन ने 5 अगस्त 2014 को जेल से चिट्ठी लिखकर आरोप लगाया था कि डीएसपी जिया उल हक की हत्या राजा भैया के खास नन्हे सिंह ने की थी। राजा भैया अपने शत्रुओं को इसके जरिए निपटाते हैं। बावजूद इन तमाम आरोपों और सवालों के जिया उल हक हत्याकांड का लगभग पटाक्षेप हो चुका है।


 घटना के दिन उनका मोबाइल गायब कर दिया गया था, जो आज भी नहीं मिला है। वारदात के दिन उनकी पिस्टल भी गायब कर दी गई थी, जिसे सीबीआई ने कुछ दिनों बाद पानी से भरे एक गड्ढे से बरामद किया था। सीबीआई अदालत ने जो सवाल उठाए थे, वह आज भी अनुत्तरित हैं। तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव द्वारा जियाउल हक की पत्नी परवीन आजाद और उनके भाई को नौकरी देने के बाद से वह भी ठंडी पड़ गई हैं। मामले को ठंडे बस्ते में डालने,अधिकारियों को मुसीबत में छोड़कर भागने के पुलिस कर्मियों की मनोवृत्ति और अपराधियों को संरक्षण देने का नतीजा है कि यूपी में विकास दूबे जैसे कई दुर्दांत अपराधी सिर उठाए घूम रहे हैं। दूबे जिस संदिग्ध तरीके से यूपी पुलिस के हाथों मारा गया, उससे निश्चित ही उन्हें अवश्य लाभ मिलेगा जिनके नाम उसकी पूछताछ में खुल सकते थे। विकास दूबे की मौत  के बहाने एक बार फिर डीएसपी जियाउल हक की मौत पर सवाल उठने लगे हैं।

(तस्वीरें सोशल मीडिया से)

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