वक्फ संशोधन बिल: एक नया शाह बानो मामला,JummaTulWida में मुसलमान बांधेंगे काली पट्टी
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मुस्लिम नाउ विशेष
वक्फ संशोधन बिल ‘शाह बानो केस‘ जैसा बड़ा मामला बन सकता है. रमजान के जुम्मातुल विदा की फ़ज्र नमाज में पूरे देश के इमामों ने नमाजियों को जिस तरह के संदेश दिए, उससे एक बड़े आंदोलन के संकेत मिलते हैं.
इमामों की ओर से साफ तौर से कहा गया कि इनके इस तरह के आंदोलन से भले कामयाबी न मिले, पर वे देश-दुनिया में नजीर पेश करने को तैयार हैं. मस्जिदों से जुम्मातुल विदा के मौके पर नमाजियों से बाजू पर काली पट्टी बांध कर वक्फ संशोधन बिल का विरोध करने की अपील की गई.
साथ ही उन्हें यह समझाया गया है-‘‘जब खामोश रहकर विरोध करने की जरूरत हो तो शोर न मचाएं और आवाज बुलंद करना पड़े तो खामोश न रहें.अपने रहनुमाओं के आदेश का पालन करें.’’ यानी आने वाले समय में यह आंदोलन सड़कों पर भी आ सकता है और राष्ट्रव्यापी भी बन सकता है.
आरोप एकतरफा कार्रवाई का
पिछले बारह वर्षों में तीन तलाक, एनआरसी, बाबरी मस्जिद-राम मंदिर, अनुच्छेद 370, यूसीसी, शादी की उम्र, मदरसों को लेकर कई मुस्लिम विरोधी फैसले लिए गए. मगर मुसलमानों की ओर से किसी तरह एकतरफा कार्रवाई कोई विरोध नहीं हुआ. यदि किसी ने किया तो भय पैदा करने के लिए या तो उन्हें लंबे समय तक जेल में डाल दिया गया या मकान ढहा दिए गए.
ऐसे में जब कुछ कट्टरपंथियों ने मस्जिद,दरगाहों में मंदिर ढूंढकर विवाद खड़ा करने की कोशिश की तब भी वे खामोश रहे. संभल जामा मस्जिद और नागपुर में औरंगजेब को लेकर हिंसकात्मक झड़पों के बाद एकतरफा कार्रवाई पर भी वैसा विरोध नहीं जताया गया जैसा कि देश के एक वर्ग से उम्मीद थी.
मगर वक्फ संशोधन बिल को लेकर घेराबंदी की जा रही है, वह निश्चित ही आने वाले समय में बड़े विवाद को जन्म देगा. परिणाम कुछ भी हो सकता है.
शुरूआत शाह बानो जैसे बड़े आंदोलन की
पिछले बारह वर्षों में इस देश ने किसान आंदोलन को छोडकर लोकतांत्रिक ढंग से कोई बड़ा आंदोलन नहीं देखा है. पहले इस तरह के बड़े आंदोलन की शुरूआत जमीनीस्तर पर होती थी. मांगे नहीं मानने पर बड़े आंदोलन का रूप लेता था. मुददे पर शुरूआत जिलाधिकारी या किसी अन्य बड़े अफसर के कार्यालय पर धरने से होती. फिर बाजू पर काली पट्टी बांध कर विरोध दर्ज कराया जाता था.
उसके बाद छोटे-छोटे आंदोलन जिला स्तर पर होते थे. फिर भी बात नहीं बनती तो राष्ट्रव्यापी आंदोलन होता था. ट्रेनों और बसों में भर-भर कर दिल्ली पहुंचते थे. एक बड़ा आंदोलन जयप्रकाश नारायण की अगुवाई में हुआ था और कांग्रेस का न केवल सत्ता गंवानी पड़ी थी, बल्कि आज कई पार्टियों के नेता उसी आंदोलन से निकले हैं और केंद्र तथा सूबे में हुकूमत में हैं.
शाह बानो मामले को लेकर एक बड़ा आंदोलन मुसलमानों ने आल इंडिया पर्सनल ला बोर्ड़ के आहवान पर किया था. तब तत्तकालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को भत्ता कानून वापस लेना पड़ा था.
आंदोलन दूसरे स्टेज में
वक्फ संशोधन बिल के खिलाफ आंदोलन संभवतः दूसरे स्टेज में है . यह व्यापक आंदोलन की ओर बढ़ा चुका है. इस आंदोलन में मुसलमानों के सभी फिरके के लोग एकजुट दिख रहे हैं. उनकी ओर से आम मुसलमानों को समझाया जा रहा है कि वक्फ संशोधन बिल पास हो गया तो कौम की तमाम मस्जिदें, कब्रिस्तान, खानकाह, वक्फ के पैसे से चलने वाले अदारे मुसलमानों के हाथ से निकल जाएंगे.
अभी वक्फ की लाखों संपत्तियों पर निम्न वर्ग के मुसलमान नाम मात्र के पैसे से अपने छोटे-छोटे कारोबार चलाते हैं और रिहायश बनाई हुई है. नया कानून बनने के बाद वह भी छिन जाएगा.
वक्फ संशोधन बिल को लेकर केंद्र सरकार जिस तरह से अड़ी हुई है और जेपीसी में बड़े पैमाने पर विरोध दर्ज कराने के बावजूद मुसलमानों के सुझावों को मसौदे में जगह नहीं दी गई, उससे आम मुसलमानों को लगने लगा है कि मस्जिद, दरगाहें, खानकाहें, मुस्लिम अदारे उनसे छिनने जा रहे हैं. यहां सरकार से एक बड़ी चूक हुई या किसी बड़ी रणनीति का हिस्सा है कि इसने इतना बड़ा फैसला लेने से पहले मजबूती से अपना पक्ष नहीं रखा.
न ही मुसलमानों को विश्वास में लिया. यदि कानून से मुस्लिम वर्ग का भला होने वाला है तो यह संदेश पहुंचाने में केंद्र सरकार चूक गई. केंद्र पर ऐसे कई बार आरोप लग चुके हैं कि बिना संबंधित पक्ष और वर्ग को विश्वास में लिए बड़ा फैसले किए गए है. उदाहरण के लिए किसानों का मामला, जो आज भी आंदोलन का विषय बना हुआ है.
सियासी बहिष्कार के संकेत
अलविदा जुम्मा के दिन फ़ज्र की नमाज में इमामों ने मिंबर से आम मुसलमानों को साफ संदेश दिया कि हो सकता है, उनके विरोध के बावजूद वक्फ को लेकर नया कानून सदन में पास हो जाए. इसके बावजूद विरोध बंद नहीं होगा.
पटना में तथाकथित सेक्यूलर पार्टियों के इफ्तार की दावत ठुकरा कर मुस्लिम रहनुमाओं ने यह सियासी तौर पर साबित करने की कोशिश की. भारत में तकरीबन 22 करोड़ मुसलमान हैं. तमाम तिकड़म, परपंच कर उन्हें सियासत-सत्ता से दूर रखने के प्रयासों के बावजूद केंद्र में भाजपा को तीसरी बार सरकार बनाना मुश्किल हो गया था. पचीस-तीस सीटें कम आती तो खेल खत्म था.
यहां तक कि कुछ सेक्यूलर पार्टियों ने आगे बढ़कर सरकार बनाने में बीजेपी का साथ दिया. तब जाकर बीजेपी की तीसरी बार सत्ता वापसी हुई है. इसके बाद ही बीजेपी की ओर से मुसलमानों को पटाने और सूफी-हनफी और अशराफ-पसमांदा के नाम पर उनमें फूट डालने की कोशिशें तेज हुई हैं.
सौगात ए मोदी और पसमांदा मुसलमान
ईद पर सौगात ए मोदी उसका हिस्सा माना जा रहा है. देश के 35 लाख मुसलमानों को यह सौागत बीजेपी की ओर से भेंट की जाएगी. इसमें ईद में इस्तेमाल होने वाला तमाम जरूरी सामान होगा. मगर जिसने भी बीजेपी आलाकमान को यह सुझाव दिया, दरअसल यह सही नहीं है. क्योंकि फितरा और जकात से गरीब से गरीब मुसलमानों की ईद और रमजान की जरूरतें पूरी हो जाती हैं. रमजान के महीने में मुसलमान दिल खोलकर और हैसियत से ज्यादा एक दूसरे की मदद करते हैं.
यहां तक कि ईद के तुरंत बाद होने वाली शादियों में काम आने वाले सामान भी कुछ लोग गरीब परिवार को मुहैया कराते हैं. ईद के बाद मुसलमानों में शादियों का चलन है. इसके अलावा बीजेपी समर्थिक पसमांदान नेता कहते हैं कि देश के कुल मुसलमानों का 80 फिसदी हिस्सा पसमांदा यानी गरीब हैं.
यानी 22 में से 18 से 20 करोड़ मुसलमान निर्धन हैं. ऐसे में मात्र 35 लाख ईद की सौगात से क्या होने वाला है ? यह मुसलमानों की मदद नहीं, आईवाॅश है. दूसरा यह संकेत गया कि बीजेपी भारत के मुसलमानों को पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगान के अल्पसंख्यक जैसा समझने की भूल कर रही है.
BIG ANNOUNCEMENT
— All India Muslim Personal Law Board (@AIMPLB_Official) March 27, 2025
⭕ वक्फ़ संशोधन बिल के खिलाफ मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का बड़ा ऐलान!
रमज़ान के इस आख़री जुमा, जुमातुल विदा को मुसलमान यह काम ज़रूर करें…👇🏻
This Ramazan's Jumma Tul Wida Let us Protest against Waqf Amendment Bill by this method 👇🏻#IndiaAgainstWaqfBill… pic.twitter.com/FPFC0XSZbk
बीजेपी कहीं गलती तो नहीं कर गई
भारत का मुसलमान वैसा अल्पसंख्यक नहीं, जैसा समझाने बताने का प्रयास हो रहा है. इस देश में एपीजे अब्दुल कलाम और प्रेम जी जैसे लोग हैं तो भारत को अपने प्रयासों से पूरी तरह प्रभवित करते रहे हैं. ऐसे में वक्फ संशोधन बिल का पास होना और मुसलमानों का बढ़ता विरोध निश्चित ही भविष्य में एक नजीर बन सकता है.
बड़े आंदोलन के बाद भी यदि नया कानून बनता है तो मुसलमानों को यह समझ जाना चाहिए कि वे इससे भी किसी बड़े फैसले के लिए तैयार रहे. शायाद यह सब समझी समझी रणनीति के तहत वक्फ संशोधन बिल के खिलाफ आंदोलन को बड़ा बना की रणनीति का हिस्सा हो ?देखना है आगे क्या होने वाला है!!