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वक्फ संशोधन विधेयक : आरएसएस की ‘पांचजन्य’ में कवर स्टोरी, बिल से बाहर हुए कई ‘मुस्लिम रहनुमा’

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली।
वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर आरएसएस की मुखपत्र पांचजन्य ने एक कवर स्टोरी प्रकाशित की है, जिसका शीर्षक है — ‘वक्फ संशोधन विधेयक : मनमानी पर नकेल’। यह विशेषांक उन मुस्लिम ‘रहनुमाओं’ के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है, जो बीते एक दशक से भाजपा और आरएसएस के लिए पर्दे के पीछे काम कर रहे थे, लेकिन मुस्लिम समाज में खुद को उसका हितैषी बताकर प्रस्तुत कर रहे थे।

इस विशेषांक में आरएसएस-बीजेपी विचारधारा से जुड़ी हस्तियों के लेख शामिल हैं। पृष्ठ 8 और 9 पर prominently प्रकाशित एक लेख ‘सशक्तिकरण, दक्षता और विकास की नई दिशा’ में सैयद नसीरूद्दीन चिश्ती — जो खुद को हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का वंशज बताते हैं — ने वक्फ बोर्ड में व्यापक बदलावों की पैरवी की है।

समर्थन में खड़े संगठन

एक विशेष बॉक्स में बताया गया है कि निम्नलिखित मुस्लिम संगठन विधेयक के समर्थन में हैं:

  • मुस्लिम राष्ट्रीय मंच
  • जमीयत हिमायत उल इस्लाम
  • मुस्लिम महिला बौद्धिक समूह
  • पसमांदा मुस्लिम महाज

साथ ही, इस विधेयक के समर्थन में बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान, राज्यसभा सांसद गुलाम अली खटाना और अखिल भारतीय मुस्लिम जनमंच के अध्यक्ष मुफ्ती शाहबुद्दीन रजवी जैसे नामों का भी उल्लेख किया गया है।

इसके अलावा, आसिफा जहां रिज़वी का लेख ‘ऐतिहासिक बदलाव का प्रतीक’ भी विशेषांक में प्रमुखता से प्रकाशित किया गया है।

लेख में क्या कहा गया?

सैयद नसीरूद्दीन चिश्ती के लेख में दावा किया गया है कि वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता, आधुनिक तकनीक और जवाबदेही लाकर मुस्लिम समाज को वास्तविक लाभ पहुंचाया जाएगा। उनका कहना है कि पहली बार वक्फ संपत्तियों के सशक्तिकरण, दक्षता और विकास को एकीकृत रूप में लागू किया जा रहा है।

प्रस्तावित बदलाव:

  • सशक्तिकरण: वक्फ बोर्डों और मुतवल्लियों को ज्यादा अधिकार और संसाधन।
  • दक्षता: डिजिटलीकरण, ऑडिट और प्रशासनिक सुधारों के ज़रिए बेहतर प्रबंधन।
  • विकास: शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और आवास क्षेत्र में वक्फ संपत्तियों का उपयोग।

एकीकृत वक्फ प्रबंधन प्रणाली के फायदे

  • मदरसों, विश्वविद्यालयों, अस्पतालों, प्रशिक्षण केंद्रों में वक्फ संपत्ति का उपयोग।
  • मुस्लिम युवाओं को शिक्षा और आर्थिक आत्मनिर्भरता में सहायता।
  • मुतवल्लियों को कानूनी सुरक्षा और वित्तीय स्वतंत्रता।
  • डिजिटल मॉनिटरिंग से अतिक्रमण, भ्रष्टाचार और घोटालों पर रोक।
  • स्टार्टअप्स और व्यावसायिक हब के लिए वक्फ संपत्ति का उपयोग।

विरोध और समर्थन की राजनीति

विधेयक के पक्ष में खड़े मुस्लिम संगठनों का कहना है कि इसका विरोध वे लोग कर रहे हैं जिन्होंने वक्फ संपत्तियों का वर्षों तक दुरुपयोग किया। सवाल उठाया गया है कि अब तक वक्फ बोर्ड ने मुस्लिम समुदाय की कितनी मदद की? कितने गरीबों को घर, बच्चियों की शादी या रोजगार उपलब्ध कराए?

पसमांदा मुस्लिम महाज ने सितंबर 2024 की संयुक्त संसदीय समिति में यह दावा किया था कि इस विधेयक से 85% वंचित मुसलमानों को लाभ मिलेगा। दिल्ली और भोपाल में इस विधेयक के समर्थन में मुस्लिम संगठनों ने रैलियां भी निकाली हैं।

मुस्लिम समाज के लिए क्यों जरूरी?

लेख में जोर देकर कहा गया है कि यह विधेयक मुस्लिम समाज को आत्मनिर्भर, शिक्षित और आर्थिक रूप से सशक्त बनाने की दिशा में एक ठोस कदम है। अब वक्त है कि मुस्लिम समाज राजनीतिक भ्रम और प्रोपेगेंडा से ऊपर उठकर असली सुधारों को अपनाए।

प्रमुख हस्तियों की राय:

  • आरिफ मोहम्मद खान (बिहार के राज्यपाल): “जब मैं यूपी में वक्फ मंत्री था, देखा कि 10% संपत्ति ही सही दिशा में खर्च हो रही थी।”
  • गुलाम अली (राज्यसभा सांसद): “यह विधेयक मुसलमानों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में बड़ा कदम है।”
  • मुफ्ती शाहबुद्दीन रजवी (अखिल भारतीय मुस्लिम जनमंच): “ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड मुसलमानों को गुमराह कर रहा है। यह बिल मजहब के खिलाफ नहीं है।”

निष्कर्ष:

वक्फ संशोधन विधेयक अब केवल एक कानूनी दस्तावेज नहीं रह गया है, बल्कि यह भारतीय मुस्लिम समाज के भीतर राजनीतिक और वैचारिक ध्रुवीकरण का प्रतीक बन गया है। यह विधेयक समाज को भ्रष्टाचार मुक्त, पारदर्शी और विकासोन्मुख प्रणाली की ओर ले जाने का दावा करता है — सवाल है कि क्या मुस्लिम समाज इस बदलाव को स्वीकार करेगा?

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