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वक्फ बिल: अजमेर, निजामुद्दीन और कुछ संगठनों का खेल, मुस्लिम समाज भ्रमित

मुस्लिम नाउ ब्यूरो,नई दिल्ली

अजमेर शरीफ दरगाह और दिल्ली की निजामुद्दीन दरगाह से जुड़े कुछ लोग, पसमांदा महाज, मुसलमान के नाम पर चलने वाले कुछ मीडिया हाउस और संगठन को लेकर देश के आम मुसलमानों को भ्रम में नहीं पड़ना चाहिए.दरअसल, इन्हें खड़ा ही इसलिए किया गया है कि जब एक वर्ग मुस्लिम समाज के खिलाफ कुछ कड़े फैसले ले तो ये उनके पक्ष में खड़े हो जाएं. इनके चरित्र को समझने के लिए विशेष मशक्कत की जरूरत नहीं. गूगल सर्च कर लीजिए. इनसे जुड़े कुछ नाम आपको बारबार ऐसी जगहों या मंचों पर उनके साथ खड़े दिख जाएंगे जो मुसलमानों के खिलाफ कड़े फैसले लेने के लिए जाने जाते हैं.

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जब भी कोई मुस्लिम मुखालिफ फैसला लिया जाता है, उसकी रफूगरी करने तुरंत यह तबका आगे आ जाता है. ऐसी हरकतें करने वाले कुछ नाम तो इतने बड़े हैं कि सुनकर चैंक जाएंगे. हालांकि, अब इनकी पूरी तरह से पहचान हो चुकी है और गाहे-बगाहे नाम लेकर तो कभी इशारे से उनकी पोल-पट्टी खोली जाने लगी है.

वैसे, इतने भर से काम नहीं चलने वाला. ऐसे लोगों को खुल कर एक्सपोज करने की जरूरत है, ताकि देश की जनता उनका इलाज कर सके.बहरहाल, वक्फ संशोधन बिल की मुखालफत के समय भी ऐसी मुस्लिम विरोधी ताकतें सक्रिय हैं. मुस्लिम संगठनों के दावों पर यकीन करें तो इस बिल के खिलाफ अब तक ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी को छह करोड़ से अधिक शिकायतें भेजी जा चुकी हैं.

बावजूद इसके आम मुसलमानों के दावों को पटरी से उतारने के लिए कौम विरोधी संगठन भी सक्रिय हैं. हालांकि, ऐसे लोगों पर इंडियन मुस्लिम फॉर सिविल राइट्स (आईएमसीआर) के चेयरमैन मोहम्मद अदीब ने सवाल उठाए हैं.एक न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, वक्फ संशोधन बिल पर पसमांदा समाज की ओर से सहमति जताने पर इंडियन मुस्लिम्स फॉर सिविल राइट्स (आईएमसीआर) के चेयरमैन मोहम्मद अदीब ने तीखी प्रतिक्रिया दी. उन्होंने पसमांदा समाज की सहमति पर सवाल उठाए और पसमांदा समाज की पहचान पर भी आपत्ति जताई है.

आईएमसीआर चेयरमैन मोहम्मद अदीब ने कहा कि मैं समझ नहीं पा रहा कि पसमांदा समाज है क्या ? क्या वे वास्तव में मुस्लिम समुदाय का एक वर्ग है या किसी राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा?उन्होंने कहा कि भारत में जो लोग मांस का कारोबार करते हैं, वे किसी से कम अमीर नहीं हैं.इस देश में केवल दो प्रकार के मुसलमान हैं- एक रईस और दूसरा गरीब. पसमांदा का लफ्ज इस्लाम में कहीं नहीं है.

पसमांदा समाज के सदस्यों की जानकारी पर भी सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा कि ये लोग यह बताने में असमर्थ हैं कि वे किस बुनियाद पर इस बिल को अप्रूव कर रहे हैं. ऐसा लगता है कि उन्हें केवल रटा-रटाया भेजा गया है. यह सभी एक साजिश का हिस्सा हैं, जो मुस्लिम समाज में विभाजन का प्रयास है.

भारत में 70-75 वर्षों में कोई विभाजन नहीं हुआ है. पसमांदा कौन हैं, यह कोई नहीं जानता.यह सब एक बड़े राजनीतिक खेल का हिस्सा हैं, जिसका मकसद मुस्लिम समुदाय को बांटना है.

आपको बताते चलें, गुरुवार को मुस्लिम समाज की तरफ से वक्‍फ विधेयक पर अपना पक्ष रखने के लिए आए पसमांदा मुस्लिम महाज के प्रतिनिधियों ने जेपीसी की बैठक में सरकार के बिल का पुरजोर शब्दों में समर्थन किया. उन्होंने इस बिल को 85 प्रतिशत मुसलमानों के लिए फायदेमंद करार देते हुए मुस्लिम समाज के दलितों और आदिवासियों को भी इसमें जगह देने की मांग की. बैठक में जब पसमांदा मुस्लिम महाज के प्रतिनिधि बिल पर अपनी बात रख रहे थे, तो विपक्ष के कई सांसद उन्हें रोक रहे थे.

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यहां एक बात और याद दिलाना बेहतर होगा कि वक्फ संशोधन बिल की हिमायत में अजमेर शरीफ दरगाह का जब एक स्वंय भू ‘सूफी’ सामने आया तो एआईएमआईएम के सदर ओवैसी ने उसकी खूब ले दे की थी. यहां तक इस ‘युवा सूफी’ को ओवैसी ने बेवकूफ भी करार दे दिया था.

इसके साथ ही मुस्लिम विरोधी तबका यह भ्रम फैलाने में लगा है कि वक्फ संशोधन बिल की मुखालफत वही लोग कर रहे हैं, जिन्होंने सैंकड़ों एकड़ जमीन अवैध तरीके से दबा रखे हैं. इस क्रम में जमीयत उलेमा ए हिंद का भी नाम लिया जा रहा है.

हालांकि, इसे पटना स्थित चाणक्य नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर एवं मुस्लिम बुद्धिजीवी प्रो. फैजान मुस्तफा बकवास बताते हैं. उन्होंने भी बिल को लेकर जेपीसी के समक्ष अपनी बातें रखी हैं. उन्होंने वक्फ बाई यूजर और वक्फ ट्रिब्यूनल सहित बिल के कई प्रावधानों का समर्थन तो किया, लेकिन इसके साथ ही उन्होंने डीएम को सारी शक्तियां देने सहित कई अन्य प्रावधानों को गलत करार दिया है.

प्रो. फैजान मुस्तफा ने सरकार को सभी की सहमति के आधार पर ही आगे बढ़ने की सलाह भी दी है.सूत्रों के मुताबिक, जेपीसी की बैठक में आम आदमी पार्टी और एआईएमआईएम ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बयान का भी मुद्दा उठाया.

दोनों सांसदों ने कहा कि जब वक्फ (संशोधन) बिल पर जेपीसी विचार कर रही है और मामला जेपीसी के पास है, तो फिर गृह मंत्री बिल को लेकर बाहर बयान क्यों दे रहे हैं? विपक्षी सांसदों ने तो यहां तक आरोप लगाया कि जेपीसी पर दबाव बनाने का प्रयास किया जा रहा है.

इन आरोपों पर भी जेपीसी की बैठक में तीखी बहस हुई. वहीं, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इस बिल को इस्लाम और मुसलमान विरोधी बताते हुए बिल का पूरी तरह से विरोध किया है. उन्होंने जेपीसी की बैठक में सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहा कि इबादत और दान, इस्लाम में आस्था का हिस्सा है, जिसका जिक्र कुरान में भी किया गया है.

उन्होंने वक्फ (संशोधन) विधेयक-2024 को वक्फ के अधिकारों में हस्तक्षेप करार देते हुए इस बिल का जोरदार विरोध किया. दूसरी तरफ भाजपा के एक सांसद ने वक्फ संपत्तियों के डॉक्युमेंटेशन का मुद्दा उठाया.

इस मुद्दे को लेकर जेपीसी चेयरमैन जगदंबिका पाल और विपक्षी सांसदों के बीच तीखी बहस हो चुकी है.जेपीसी की अगली बैठक शुक्रवार को हुई जिसमंे अखिल भारतीय सज्जादानशीन परिषद-अजमेर, मुस्लिम राष्ट्रीय मंच और भारत फर्स्ट-दिल्ली से जुड़े लोगों को बिल पर अपना पक्ष रखने के लिए बुलाया गया. इस बैठक में राय रखने वालों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये कौन लोग हैं और किसके इशारे पर काम कर रहे हैं ?