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भारत के पूर्व राष्ट्रपति जाकिर हुसैन पाकिस्तान के जनरल जिया-उल-हक के क्या लगते थे ?

अली अब्बास, लाहौर

भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन का जीवन, शिक्षा और राजनीति में किए गए उनके योगदान किसी भी राष्ट्रवादी भारतीय के लिए गर्व का विषय हैं. उनके परिवार की जड़ें उत्तर भारत में फैली थीं, जबकि उनके भाई पाकिस्तान में उच्च पदों पर आसीन रहे. दिलचस्प बात यह है कि उनका पारिवारिक संबंध पाकिस्तान के पूर्व सैन्य शासक जनरल जिया-उल-हक से भी जुड़ा था. यह ऐतिहासिक संबंध भारतीय उपमहाद्वीप के विभाजन के बाद भी कायम रहे और उपमहाद्वीप के राजनीतिक और सामाजिक ताने-बाने पर प्रभाव डालते रहे.

एक शैक्षणिक परिवार से भारत के सर्वोच्च पद तक

डॉ. जाकिर हुसैन का जन्म 8 फरवरी 1897 को हैदराबाद रियासत में हुआ था. वे मेडिकल की पढ़ाई करना चाहते थे, लेकिन परिस्थितियों ने उन्हें एक अलग राह पर धकेल दिया. उन्होंने अलीगढ़ के मोहम्मडन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज (एमएओ कॉलेज) से दर्शनशास्त्र, अंग्रेजी साहित्य और अर्थशास्त्र में स्नातक करने के बाद अपनी मास्टर डिग्री प्राप्त की और वहीं व्याख्याता के रूप में नियुक्त हुए.

1920 में, महात्मा गांधी ने अलीगढ़ में एमएओ कॉलेज का दौरा किया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ असहयोग आंदोलन की अपील की. उसी वर्ष स्वतंत्र राष्ट्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना की गई, जो बाद में जामिया मिलिया इस्लामिया बना. 29 वर्ष की आयु में डॉ. जाकिर हुसैन इस संस्थान के कुलपति बने, जिससे वे विश्व के सबसे युवा कुलपति बन गए.

डॉ. जाकिर हुसैन ने भारतीय शिक्षा प्रणाली में क्रांतिकारी बदलाव लाने के लिए गांधी जी के नेतृत्व में बुनियादी शिक्षा नीति तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. यह नीति मातृभाषाओं, हस्तशिल्प, संगीत और भारतीय भाषाओं पर आधारित थी. मुस्लिम लीग ने इस नीति का विरोध किया, क्योंकि उन्हें लगा कि इससे उर्दू पर संस्कृत का प्रभुत्व बढ़ जाएगा.

1948 में उन्होंने जामिया मिलिया इस्लामिया के कुलपति पद से इस्तीफा दिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति बने. यह वही विश्वविद्यालय था जिसने पाकिस्तान आंदोलन में अहम भूमिका निभाई थी. विभाजन के दौरान हुए सांप्रदायिक दंगों में जालंधर रेलवे स्टेशन पर उनकी जान बाल-बाल बची थी.

राजनीति में प्रवेश और राष्ट्रपति पद तक का सफर

1952 में वे राज्यसभा के सदस्य चुने गए। 1957 में बिहार के राज्यपाल नियुक्त हुए और शिक्षा को लेकर किए गए उनके प्रयासों को राष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया. 1962 में वे भारत के उपराष्ट्रपति बने और उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया.

1967 के राष्ट्रपति चुनाव में उन्होंने ऐतिहासिक जीत दर्ज की और भारत के पहले मुस्लिम राष्ट्रपति बने. उन्होंने अपने उद्घाटन भाषण में कहा, “सम्पूर्ण भारत मेरा घर है और इसके लोग मेरे परिवार का हिस्सा हैं.”

पाकिस्तान से पारिवारिक संबंध और जनरल जिया-उल-हक से जुड़ाव

डॉ. जाकिर हुसैन के सबसे छोटे भाई महमूद हुसैन विभाजन के बाद पाकिस्तान चले गए और वहां महत्वपूर्ण पदों पर आसीन हुए. वे पाकिस्तान की संविधान सभा के सदस्य रहे और प्रधानमंत्री लियाकत अली खान की कैबिनेट में शामिल हुए. बाद में वे पाकिस्तान के शिक्षा मंत्री और ढाका विश्वविद्यालय के कुलपति बने.

दिलचस्प तथ्य यह है कि महमूद हुसैन के दामाद जनरल रहीमुद्दीन खान पाकिस्तान के संयुक्त चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी के अध्यक्ष बने. वे बलूचिस्तान और सिंध के गवर्नर भी रहे और जनरल जिया-उल-हक के करीबी सहयोगी थे. उन्होंने न केवल राष्ट्रपति जिया-उल-हक के सैन्य शासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, बल्कि उनके बेटे एजाज-उल-हक के ससुर भी बने. इस प्रकार, डॉ. जाकिर हुसैन का परिवार भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में शीर्ष पदों पर आसीन रहा.

डॉ. जाकिर हुसैन ने शिक्षा के क्षेत्र में कई क्रांतिकारी बदलाव लाए. उन्होंने प्लेटो की ‘द रिपब्लिक’ का उर्दू में अनुवाद किया और बच्चों के लिए साहित्य का सृजन किया. उनके नेतृत्व में 1969 में गालिब अकादमी की स्थापना की गई और गालिब की जन्मशती समारोह का आयोजन किया गया.

उनके दामाद खुर्शीद आलम खान वरिष्ठ कांग्रेस नेता रहे, जिन्होंने कर्नाटक और गोवा के राज्यपाल के रूप में कार्य किया. उनके पोते सलमान खुर्शीद भारत के विदेश मंत्री बने और मनमोहन सिंह सरकार में विदेश मंत्रालय संभालने वाले पहले और एकमात्र मुस्लिम नेता रहे। यह परिवार संभवतः विश्व का एकमात्र परिवार है जिसके तीन भाइयों ने तीन अलग-अलग देशों में चार विश्वविद्यालयों के कुलपति के रूप में कार्य किया.

अंतिम विदाई और अमर योगदान

3 मई 1969 को डॉ. जाकिर हुसैन का हृदयाघात से निधन हो गया. उनकी मृत्यु के बाद भारत में 13 दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया गया. उनके अंतिम संस्कार में दस लाख से अधिक लोग शामिल हुए, और उन्हें जामिया मिलिया इस्लामिया के परिसर में दफनाया गया. पाकिस्तान में भी उनकी मृत्यु पर राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका दिया गया, और राष्ट्रपति याह्या खान के प्रतिनिधि के रूप में एयर चीफ मार्शल मलिक नूर खान अंतिम संस्कार में शामिल हुए.

गुलाब की खुशबू पसंद करने वाले डॉ. जाकिर हुसैन सिर्फ एक राजनेता नहीं, बल्कि एक सच्चे शिक्षाविद् और राष्ट्रनिर्माता थे. उनकी शिक्षा और राष्ट्रवाद पर आधारित विचारधारा आज भी प्रेरणास्रोत बनी हुई है. उनके योगदान को सीमाओं से परे जाकर भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में सम्मान और गर्व के साथ याद किया जाता है.