ReligionTOP STORIES

हलाला क्या होता है मुसलमानों में ?

मुस्लिम नाउ विशेष

इस्लाम में शादी एक पद्धति का हिस्सा ‘हलाला’ को लेकर हमेशा गलतफहमी रही है. इस गलतफहमी की खाई को वे लोग और बढ़ाने में लगे हैं, जो इस्लाम और मुसलमान विरोधी माने जाते हैं. अब तो हलाला को लेकर ऐसी तस्वीर बना दी गई है मानों एक वर्ग अय्याशी मात्र के लिए हलाला करने का काम करता है.

इस्लाम में हलाला एक ऐसा शब्द है जिसकी जड़ें हलाल शब्द से जुड़ी हैं. इसका अर्थ है कुछ ऐसी चीज जो जायज है, इसलिए हलाल है. निकाह के संदर्भ में, इसका मतलब यह है कि एक तलाकशुदा महिला निकाह हलाला पूरा होने के बाद ही अपने पूर्व पति के लिए फिर से हलाल हो सकती है. ऐसे ही कुछ मामले सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा दिए गए हैं.मुसलमानों के बीच बहुविवाह और निकाह हलाला की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ गठित की गई है.मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठ ने हलाला को चुनौती देने वाले ऐसे ही एक संघी वकील कुतर्क पर संज्ञान लिया है.

सियासत के लिए तीन तलाक

दरअसल, निकाह हलाला उसे कहते हैं, जब कोई व्यक्ति अपनी पत्नी को तलाक दे देता है और उसे फिर अपनाना चाहता है तो उस औरत को पहले किसी अन्य मर्द से शादी कर जिस्मानी रिश्ता बनाना होगा. इसके बावजूद जब औरत चाहते तभी वह इसे तलाक देकर अपने पूर्व पति से दोबारा शादी कर सकती है. आम तौर से ऐसा होता नहीं है.निकाह हलाला की परंपरा ब्रिटेन और दुनिया के अन्य देशों के मुसलमानों में भी प्रचलित है. चूंकि भारत में कट्टरपंथी हिंदुओं को मुसलमानों के नाम पर सियासत करनी है, इसलिए वे ऐसे मुददे महिलाओं को अधिकार दिलाने के नाम पर उछालते रहते हैं. तीन तलाक पर जितने आनन-फानन में कानून बना, इसका उदाहरण है. बिना पोख्ता सर्वे और सबूत के सियसत करने के लिए काननू बना दिया गया. जबकि भारत में तीन तलाक से बड़ी समस्या शादी कर महिलाओं को बेसहारा छोड़ देने की है. हिंदुओं में यह समस्या आम है.

इस्लाम में जहां एक मुस्लिम पुरुष को चार पत्नियां रखने की अनुमति है, वहीं निकाह हलाला उस प्रक्रिया को संदर्भित करता है जिसके तहत एक मुस्लिम महिला, जो तलाक के बाद अपने पति से दोबारा शादी करना चाहती है, को पहले किसी अन्य व्यक्ति से शादी करनी होगी. फिर तलाक लेना होगा. उसके बाद ही उसे पहले पति से निकाह की इजाजत है.

तलाक के पेंच

इस्लाम की एक व्याख्या के अनुसार, एक मुस्लिम पुरुष को एक ही महिला को दो बार तलाक देने और दोबारा शादी करने की आजादी है. हालांकि, अगर वह तीसरी बार शादी को खत्म करने का फैसला करता है, तो वह उसी महिला से दोबारा शादी कर सकता है, अगर वह पहले किसी अन्य पुरुष से शादी करती है. शादी की शर्तों को पूरा करती है और केवल तभी जब पुरुष मर जाता है या स्वेच्छा से अगर कोई महिला तलाक चाहती है, तो वह तलाक ले सकती है. इस्लाम में ऐसी महिलाओं के बारे में कहा गया है, अपने पहले पति के पास वापस जाओ, उससे दोबारा शादी करो.

भारत के प्रसिद्ध धार्मिक नेता मौलाना अशरफ अली थानवी (1863-1943) ने अपनी बेहिश्ती मेवर (महिलाओं के लिए इस्लामी मान्यताओं और प्रथाओं की एक व्यापक पुस्तक) में इस अवधारणा को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया है. एक व्यक्ति स्वीकार्य (राजी) है), जब तलाक की घोषणा करता है. फिर वह सुलह कर लेता है और फिर से साथ रहने लगता है. दो-चार साल बाद उकसावे में आकर एक बार फिर तीन तलाक का ऐलान कर देता है. जैसे ही भावनाएं ठंडी होती हैं, वे फिर से साथ रहना शुरू कर देते हैं. अब दो तलाक हो चुके हैं. इसके बाद जब भी वह तलाक की घोषणा करेगा, इसे तीसरे तलाक के रूप में गिना जाएगा, जिससे शादी तुरंत भंग हो जाएगी. यदि दोनों पक्ष पुनर्विवाह करना चाहते हैं तो हलाला की आवश्यकता होगी.तलाक की घोषणा के बाद महिला अपने पति के लिए हराम हो जाती है.

तलाक रोकने को हलाला

यह सुनिश्चित करने के लिए तलाक के संदर्भ में एक प्रतिबंध निर्धारित किया गया है कि पुरुष इसे अपनी पत्नी को प्रताड़ित करने के लिए एक उपकरण के रूप में उपयोग न करे (जितनी बार चाहे शादी करके और तलाक देकर). यह एक अटल नियम है. यह नियम सख्त अनुशासन बनाए रखने और यह सुनिश्चित करने के लिए पेश किया गया है कि तलाक एक मजाक तक सीमित न रहे.

इंडियन लॉ इंस्टीट्यूट के रिसर्च एसोसिएट डॉ. फुरकान अहमद ने तलाक के इस्लामी कानून को समझने की कोशिश करते हुए लिखा है कि पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने पत्नी को तलाक देने की पूर्व-इस्लामिक बर्बर प्रथा को खत्म करने की कोशिश की थी.उसे तलाक देना और उसके साथ दुर्व्यवहार करना उससे दोबारा शादी करना, बर्बर है. इसलिए यदि पति सचमुच पत्नी को वापस ले जाना चाहता है तो उसे हलाला करना चाहिए. यदि ऐसा नहीं हुआ तो दो बार की सहमति के बाद तीसरे तलाक की घोषणा को अंतिम माना जाएगा.

फिक्ह मौलाना अशरफ अली थानवी ने बेहिश्ती जेवर में आगे बताया कि अगर पति और पत्नी तीसरी शादी करना चाहते हैं, तो यह केवल एक शर्त पर किया जा सकता है, महिला को किसी अन्य पुरुष से शादी करनी होगी. उसके साथ सोना होगा.

थानवी ने लिखा कि अब अगर सेक्स करने के बाद दूसरे पति की मौत हो जाती है या वह उसे तलाक दे देती है तो वह इद्दत की अवधि पूरी करने के बाद पहले पति से दोबारा शादी कर सकती है. अगर दूसरा पति संभोग से पहले मर जाए या उसे तलाक दे दे तो उसे कोई फायदा नहीं होगा. ऐसी स्थिति में वह पहले पति से शादी नहीं कर सकती.इस कानून का पालन भारत में मुसलमानों का एक छोटा वर्ग करता है जिसे निकाह हलाला कहा जाता है.

मोदी ने तीन तलाक को बनाया सियासी मुद्दा

भारत में तलाक और विवाह से संबंधित व्यक्तिगत कानून धर्म पर आधारित है. तीन तलाक (जहां कोई पुरुष तलाक, तलाक, तलाक कहकर अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है) एक गंभीर और विवादास्पद मुद्दा है, जिसका केंद्र सरकार को लगता है कि मुस्लिम महिलाओं को इसका विरोध करना चाहिए. 2016 में उत्तर प्रदेश में एक रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि ऐसे कानून मुस्लिम महिलाओं को उनके मौलिक अधिकारों से वंचित करते हैं. उन्होंने कहा कि तीन तलाक से मुस्लिम महिलाओं की जिंदगी बर्बाद नहीं की जा सकती.

इस बीच, सरकार भारत में निकाह हलाला और बहुविवाह को खत्म करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से आग्रह कर रही है. लेकिन कई इस्लामिक अधिकारियों और धार्मिक नेताओं का कहना है कि भारत में तीन तलाक को खत्म करने का बीजेपी का अभियान एक राजनीतिक चाल है.

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने अपने धार्मिक कानूनों का बचाव करते हुए पहले कहा कि इस तरह के कुरान के आदेश (तीन तलाक) से कोई भी विचलन स्वयं सर्वशक्तिमान अल्लाह के आदेश के खिलाफ होगा. बयान में कहा गया है कि ऐसा कृत्य इस्लाम की अनिवार्य प्रथा के खिलाफ होगा और अल्लाह और उसके दूत के सही निर्देशों की अनदेखी होगी, जो एक पाप के अलावा और कुछ नहीं है.