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कमाल मौला मस्जिद-भोजशाला मंदिर विवाद क्या है, मुस्लिम और हिंदू पक्ष के दावे

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, भोपाल

लगता है मस्जिद-मंदिर विवाद देश का पीछा नहीं छोड़ेगा. एक का समाधान निकलता नहीं, सियासी लाभ उठाने के लिए लोग दूसरा ऐसा मामला ले आते हैं. अब कमाल मौला मस्जिद-भोजशाला मंदिर विवाद सुर्खियों में है.2003 की व्यवस्था के अनुसार, हिंदू मंगलवार को परिसर में पूजा करते हैं, और मुस्लिम शुक्रवार को नमाज अदा करते हैं. अदालत ने हाल के एक फैसले में परिसर की प्रकृति और चरित्र को स्पष्ट करने की आवश्यकता बताई.

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को धार जिले में भोजशाला मंदिर और कमल मौला मस्जिद परिसर का सर्वेक्षण छह सप्ताह के भीतर पूरा करने का आदेश दिया. अदालत ने परिसर की प्रकृति और चरित्र को उजागर करने और स्पष्ट करने की आवश्यकता बताई, जिससे इसे प्रचलित भ्रम से मुक्त किया जा सके.

एएसआई-संरक्षित स्थल को हिंदू देवी वाग्देवी (सरस्वती) को समर्पित मंदिर के रूप में मानते हैं, जबकि मुस्लिम इसे कमल मौला मस्जिद का स्थान मानते हैं. 2003 की व्यवस्था के अनुसार, हिंदू मंगलवार को परिसर में पूजा करते हैं, और मुस्लिम शुक्रवार को नमाज अदा करते हैं.

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कोर्ट का आदेश क्या कहता है?

भोजशाला परिसर के व्यापक वैज्ञानिक अन्वेषण, सर्वेक्षण और उत्खनन का निर्देश देते हुए, न्यायमूर्ति सुश्रुत अरविंद धर्माधिकारी और देवनारायण मिश्रा के एक पैनल ने स्मारक की “प्रकृति और चरित्र” को निर्धारित करने और वर्तमान में इसे घेरने वाली उलझन से मुक्त करने की अनिवार्य आवश्यकता पर जोर दिया. न्यायाधीशों ने इस बात पर प्रकाश डाला कि स्मारक के रखरखाव के लिए जिम्मेदार केंद्र सरकार को प्रचलित “रहस्य” के कारण इसकी विशेषताओं को उजागर करना चाहिए, जिसके कारण विवाद बढ़ गया है.

अदालत ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को नवीनतम तरीकों और तकनीकों का उपयोग करते हुए गहन वैज्ञानिक जांच, सर्वेक्षण और उत्खनन करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति स्थापित करने का आदेश दिया। समिति को छह सप्ताह के भीतर अपने निष्कर्ष प्रस्तुत करने की आवश्यकता है.

इसके अलावा, एएसआई को परिसर के भीतर सीलबंद कमरे और हॉल खोलने के आदेश मिले, जिससे बाद की वैज्ञानिक जांच के लिए प्रत्येक कलाकृति, मूर्ति, देवता या संरचना की एक व्यापक सूची तैयार की जा सके.

हिंदू पक्ष की दलीलें

इस मामले में याचिकाकर्ता हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस का तर्क है कि कमल मौला मस्जिद का निर्माण 13वीं और 14वीं शताब्दी में अलाउद्दीन खिलजी के शासनकाल के दौरान पहले से निर्मित हिंदू मंदिरों की प्राचीन संरचनाओं को नष्ट करके किया गया था.

एएसआई की ओर से पेश सहायक सॉलिसिटर जनरल हिमांशु जोशी ने इस तर्क का खंडन करते हुए कहा कि एएसआई ने 2003 के मामले में तत्कालीन विशेषज्ञ निकाय द्वारा तैयार की गई 1902-03 की रिपोर्ट पर विचार नहीं किया था. इस ऐतिहासिक रिपोर्ट ने वाग्देवी के भोजशाला मंदिर के पूर्व-अस्तित्व की ओर इशारा करते हुए इसे एक महत्वपूर्ण गुरुकुल और वैदिक शिक्षा और अध्ययन के मंदिर के रूप में पहचाना.

मुस्लिम पक्ष की दलीलें

धार के शहर काजी वकार सादिक ने मस्जिद प्रबंधन की ओर से हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की मंशा जताई है. मुस्लिम पक्ष का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अजय बागड़िया ने 2003 के एक पूर्व मामले का हवाला दिया, जिसे उच्च न्यायालय की जबलपुर पीठ ने खारिज कर दिया था। बागड़िया ने तर्क दिया कि एएसआई का रुख सरकार से प्रभावित था और उन्होंने अदालत से भोजशाला वाग्देवी मंदिर के पक्ष में स्पष्ट पूर्वाग्रह को देखने का आग्रह किया, जो वर्षों से वहां प्रार्थना कर रहे मुसलमानों के हितों के खिलाफ है.