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राना सफवी की पुस्तक इन सर्च ऑफ द डिवाइन : लिविंग हिस्ट्री ऑफ सूफिज्म इन इंडिया में क्या है कि पाठक पसंद कर रहे हैं ?

मुस्लिम नाउ ब्यूरो, नई दिल्ली

मौजूदा समय में सूफीवाद पर लिखने वालों में एक नाम राना सफवी का भी है. उनकी नई किताब इन सर्च ऑफ द डिवाइनः लिविंग हिस्ट्री ऑफ सूफिज्म इन इंडिया (In Search of the Divine: Living Histories of Sufism in India) बाजार में आ गई है, जो काफी पसंद की जा रही है.पुस्तक में सूफीवाद के अलावा और भी बहुत कुछ है. सफवी की पुस्तक पढ़ने के बाद पाठक सूफीवाद को ईश्वर बनने की प्रक्रिया के रूप में समझत सकते हैं.सफवी ने अपनी पुस्तक में कबीर की एक कविता का उद्धरण दिया है जिसमें लिखा है-जब मैं था हरि नहीं जब हरि है मैं नहीं प्रेम गली अति संकरी तम दो न समाही.

सूफीवाद के इतिहास पर किताब में हरि और कबीर के दोहे का जिक्र करने का काम सफवी ही कर सकती हैं. कुछ भी हो, यह दर्शाता है कि जब सूफीवाद भारत में आया, तो उसने अन्य धर्मों और उसकी प्रथाओं का रंग ले लिया. यह सफवी की पुस्तक से भी झलकता है. वह पुस्तक के एक खंड का बड़ा हिस्सा भारत की प्रमुख दरगाहों को समर्पित करती हैं.

भारत में दरगाहों का इतिहास

जैसा कि सफवी याद दिलाती हैं, दरगाह केवल मुस्लिम समुदाय को समायोजित करने की जगह नहीं. सूफी संत धार्मिक सद्भाव पर जोर देती हैं. सेलिब्रेटिंग विद द संत नामक पुस्तक के 18वें अध्याय में, वह सहिष्णुता और स्वीकृति के बारे में बात करती हैं. बताया गया कि कुछ मुसलमान एक बार एक ऐसे क्षेत्र से गुजर रहे थे जहां होली मनाई जा रही थी. शायद शरारत के तौर पर या शायद अनजाने में, मुसलमानों के कपड़ों पर होली का रंग लगा लिए. इससे हिंदुओं और मुसलमानों के बीच तनाव की स्थिति पैदा हो जाती है. खबर हजरत निजामुद्दीन औलिया के दरबार (अदालत) में पहुंची. मुसलमानों ने शिकायत की कि उन्हें अपवित्र कर दिया गया.

पूछा गया अब वे नमाज कैसे पढ़ेंगे?

हजरत निजामुद्दीन औलिया ने उनसे कहा, मेरी कौम सब रंग अल्लाह से आते हैं. वह कौन सा रंग है, जो अल्लाह की ओर से नहीं आता ?तब हजरत निजामुद्दीन औलिया ने हजरत अमीर खुसरो से इसे एक दोहे में कैद करने को कहा. और हजरत खुसरो ने (निम्नलिखित) गीत लिखा-
आज रंग है री
मेरे ख्वाजा के घर रंग है री, आज रंग है.(आज मेरे महबूब का घर रंग में रंगा है.)

सफवी लिखती हैं, “कई रहस्यवादी उपमहाद्वीप में आए और बस गए. उन्होंने स्थानीय हिंदू प्रभावों को आकर्षित किया और यहां सूफीवाद का एक अनूठा रूप विकसित किया. यह विचारों का एक बड़ा और निरंतर संदर्भ था. स्थानीय रीति-रिवाजों और प्रभावों की अपनी समझ, स्वीकृति और एकीकरण के साथ, उन्होंने हर धर्म, वर्ग और जाति के स्थानीय लोगों के दिलों में अपनी अनूठी जगह बनाई. वे स्थानीय भाषा और बोलियां बोल सकते थे और जैसे-जैसे उनके करामात (चमत्कारों) की कहानियां बढ़ती गईं, वैसे-वैसे उनके अनुयायी भी बढ़ते गए.

देश भर में लोकप्रिय दरगाहों के वृत्तांतों का वर्णन करते हुए, सफवी दरगाहों (दरगाहों) का इतिहास प्रस्तुत करने से कहीं आगे निकल जाती हैं. वह अपने विश्वास की परवाह किए बिना पाठक को एक ऐसे स्थान की आवश्यकता के बारे में सोचने के लिए प्रेरित करती है जो सांत्वना प्रदान कर सके.

कर्नाटक में दरगाहों के बारे में लिखते हुए, वह कारगा उत्सव समिति के बारे में लिखती हैं, जिसमें वह टिप्पणी करती हैं, कि हिंदुत्व कार्यकर्ताओं द्वारा दरगाह पड़ाव को छोड़ने की कथित अपील के बावजूद, आयोजकों ने अंतर-धार्मिक एकता को बनाए रखने का फैसला किया.

पुस्तक मंे एक जगह कश्मीर की दरगाहों पर महिलाओं की विशेष उपस्थिति विचारोत्तेजक है.वह लिखती हैं,हजरतबल, दस्तगीर साहिब और मखदूम साहिब की दरगाहों में, महिलाओं के लिए आरक्षित अलग-अलग स्थान दिल को छूने वाले हैं. सभी उम्र की महिलाएं वहां बैठी थीं, प्रार्थना कर रही थीं और सिसक रही थीं. आतंकवाद और अशांति की चपेट में आए राज्य में, मैं केवल अनुमान लगाया जा सकता है कि वो अपने प्रियजनों के लिए रो रही थीं. अन्य राज्यों की दरगाहों के अनुभवों का विवरण भी पुस्तक में है.सफवी का लेखन और प्रतीकों का टूटना इरादतन न हो, पर सफवी कुछ मामले में अपना विद्रोह दर्ज कराने से नहीं चूकतीं.