Muslim World

खाड़ी देशों के व्यापारियों का मुंबई से क्या है रिश्ता ?

मुस्लिम नाउ विशेष

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिवसीय यात्रा पर कुवैत पर क्या गए इन दोनों के व्यापारिक संबंधों पर चर्चा शुरू हो गई है. उम्मीद की जा रही है कि इन मुल्कों में घनिष्ठ संबंध तो होंगे ही इनके बीच व्यापारिक रिश्ता भी मजबूत होगा. हालांकि भारत और कुवैत का व्यापारिक रिश्ता कोई नया नहीं है. एक जमाने में में खाड़ी देशों के व्यापारियों का अड्डा हुआ करता था.

19वीं और 20वीं सदी की शुरुआत में खाड़ी देशों के कई अरब व्यापारी बंबई (अब मुंबई) आए और यहाँ स्थायी रूप से बस गए. इन व्यापारियों का मुख्य व्यवसाय मोती उद्योग था, जो उस समय पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र में बेहद समृद्ध था. इस लेख का उद्देश्य इन व्यापारियों के जीवन, उनके भारतीय समाज के साथ संबंधों, और बंबई और खाड़ी देशों के बीच व्यापारिक रिश्तों पर प्रकाश डालना है.

अरब व्यापारियों का आगमन और व्यापारिक नेटवर्क

अरब व्यापारी मुख्य रूप से खाड़ी क्षेत्र, जैसे जेद्दा और कुवैत से बंबई आए. इनमें जेद्दा के हाजी मुहम्मद अली जैनल और कुवैत के जसीम अल इब्राहिम जैसे प्रमुख व्यापारी शामिल थे. उन्होंने बंबई में गहरे व्यापारिक संबंध स्थापित किए और स्थानीय जीवन में घुल-मिल गए. 20वीं सदी की शुरुआत में बंबई का मोती उद्योग खाड़ी के व्यापारियों के लिए आकर्षण का मुख्य केंद्र बन गया.

इन व्यापारियों ने परिवार-आधारित व्यापार नेटवर्क स्थापित किए, जो मसाले, घोड़े, लकड़ी और मोती जैसी वस्तुओं पर आधारित थे. बंबई और खाड़ी के बीच इन संबंधों ने न केवल व्यापारिक आदान-प्रदान को मजबूत किया, दोनों समाजों के आर्थिक और सांस्कृतिक विकास में भी योगदान दिया.

सामाजिक और सांस्कृतिक योगदान

अरब व्यापारी केवल व्यापार तक सीमित नहीं थे, बल्कि उन्होंने बंबई के छोटे अरब समुदाय के सामाजिक और सांस्कृतिक विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. मोहम्मद अली रोड पर स्थित सेंट्रल रेस्टोरेंट इस समुदाय का प्रमुख सामाजिक केंद्र था. प्रथम विश्व युद्ध के दौरान स्थापित यह रेस्टोरेंट, खाड़ी के लोगों के लिए मिलने-जुलने और अरबी भोजन का आनंद लेने की जगह बन गया.

सेंट्रल रेस्टोरेंट का वातावरण अरबी संस्कृति की झलक प्रस्तुत करता था. इसके अलावा, इन व्यापारियों ने बंबई में अपने अनुभवों और भारतीय समाज के साथ संबंधों को दर्शाने वाली सुंदर कविताएँ भी लिखीं.

आर्थिक उतार-चढ़ाव और संकट

मोती उद्योग बंबई की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देता था, लेकिन यह अस्थिरता से भी ग्रस्त था. 1913 में आए आर्थिक संकट ने मोती उद्योग को गंभीर रूप से प्रभावित किया.

  • यूरोपीय और अमेरिकी बाजारों में मोतियों की मांग में भारी गिरावट आई.
  • भारतीय व्यापारियों को अपने मोती कम कीमत पर बेचने पड़े.

अरब व्यापारी भी इस संकट से अछूते नहीं रहे.कुवैत के एक प्रमुख व्यापारी शेख अब्दुल रहमान अल इब्राहिम (जिन्हें “मिस्टर लॉयन” कहा जाता था) दिवालिया हो गए.

प्रमुख हस्तियाँ और उनका योगदान

हाजी मुहम्मद अली जैनल

जेद्दा के यह व्यापारी बंबई के मोती उद्योग के प्रमुख नामों में से एक थे. उन्होंने भारतीय और खाड़ी व्यापारिक समुदायों के बीच सेतु का काम किया.

शेख अब्दुल रहमान अल इब्राहिम

कुवैत के इस प्रमुख व्यापारी ने मोती व्यापार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. आर्थिक संकट के दौरान उन्हें भारी नुकसान हुआ, लेकिन उनका नाम बंबई के व्यापारिक इतिहास में आज भी दर्ज है.

मुहम्मद सलेम अल-सुदैरावी

कुवैती व्यापारी, जिन्होंने बंबई और पूना (पुणे) में अपने आवास बनाए. उनकी ऐतिहासिक तस्वीरें आज भी इतिहास प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं.

मानवीय अनुभव और सांस्कृतिक धरोहर

बंबई में बसे अरब व्यापारियों की कहानियाँ केवल व्यापार और आर्थिक सफलता की नहीं हैं, बल्कि वे मानवीय अनुभवों और सांस्कृतिक समृद्धि की भी प्रतीक हैं. बंबई के कब्रिस्तानों में आज भी इन व्यापारियों की कब्रें मौजूद हैं, जैसे:

  • मस्कट और ओमान के सुल्तान शेख तैमूर बिन फैसल बिन तुर्की.
  • जेद्दा के ‘मोतियों के राजा’ हाजी मुहम्मद अली जैनल.

अरब व्यापारियों और बंबई के बीच यह ऐतिहासिक संबंध भारत और खाड़ी देशों के साझा इतिहास का एक अनमोल अध्याय है. मोती उद्योग ने न केवल बंबई को आर्थिक समृद्धि दी, बल्कि खाड़ी और भारतीय समाजों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान को भी बढ़ावा दिया.

आज यह इतिहास शोधकर्ताओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है. यह शोध उन संबंधों को फिर से समझने का एक प्रयास है, जिन्होंने भारत और खाड़ी देशों के बीच की दूरी को घटाकर एक सांस्कृतिक सेतु का निर्माण किया.