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पहले कैसा होता था काबा के किस्वा का रंग, जानें इसके रंग बदलने कहानी

मुस्लिम नाउ ब्यूरो,मक्का

हर साल की इस बार भी इस्लामिक कैंलेंडर के इस्लामी नए साल के पहले महीने मुर्हरमम की पहली तारीख को मक्का में पवित्र काबा का किस्वा बदल कर नया चढ़ा दिया गया. इस दौरान ग्रैंड मस्जिद और पैगंबर मस्जिद के मामलों के जनरल प्रेसीडेंसी मौजूद रहे.

  • किस्वा बदलने की परंपरा: हर साल इस्लामी नए साल के पहले महीने मुर्हरम की पहली तारीख को मक्का में पवित्र काबा का किस्वा बदल कर नया चढ़ा दिया जाता है.
  • किस्वा का निर्माण: किस्वा के निर्माण में 120 किलोग्राम सोना, 100 किलोग्राम चांदी और 1,000 किलोग्राम रेशम का उपयोग होता है.
  • किस्वा का इतिहास: पैगंबर मोहम्मद ने काबा को सफेद और लाल धारीदार यमनी कपड़े से ढका था। बाद में इसे अबू बकर अल-सिद्दीक, उमर इब्न अल-खत्ताब और उथमन इब्न अफ्फान ने सफेद रंग के कपड़े से ढका.
  • रंग परिवर्तन: अब्बासिद खलीफा अल-नासिर ने किस्वा का रंग बदलकर हरा और बाद में काला ब्रोकेड कर दिया। उसके बाद से अब तक किस्वा का रंग काला ही है.
  • प्राचीन काल: इस्लाम-पूर्व काल में यमन के राजा तुब्बा अल-हुमैरी ने काबा को खसफ नामक मोटे कपड़े से और बाद में माफिर से ढका था.
  • किस्वा का निर्माण और प्रक्रिया: किस्वा के निर्माण में 159 कुशल कारीगर और इंजीनियर शामिल होते हैं। इसे काबा पर चढ़ाने की प्रक्रिया जटिल होती है और इसमें समय और कौशल की आवश्यकता होती है.
  • रंग बदलने का कारण: सफेद रंग चमकीला होता है पर टिकाऊ नहीं है। हज यात्रियों के छूने से यह अक्सर फट जाता था और गंदा व अशुद्ध हो जाता था, इसलिए इसे काले और सफेद ब्रोकेड से बदल दिया गया.
  • हज के समय किस्वा: हज यात्रा से लगभग तीन सप्ताह पहले किस्वा के निचले हिस्से को ऊपर उठा दिया जाता है ताकि इसे गंदा और क्षतिग्रस्त होने से बचाया जा सके.
  • काबा किस्वा का महत्व: किस्वा के निर्माण और उसके रंग परिवर्तन में धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व होता है जो समय के साथ बदलता गया है.

काबा किस्वा किंग अब्दुलअजीज कॉम्प्लेक्स की एक टीम द्वारा डिजाइन किए गए काले कपड़े के गिलाफ को स्थापित करने का काम किया जाता है. किस्वा के निर्माण में 159 कुशल कारीगर लगाए गए थे. ये सभी प्रशिक्षित इंजीनियर और तकनीशियन हैं.सरकारी एजेंसी एसपीए के अनुसार, विशेष कार्य दल ने पहले काबा के पुराने किस्वा के सोने की कढ़ाई वाले टुकड़ों को हटाया. फिर नए को कॉम्प्लेक्स से ग्रैंड मस्जिद में लाया गया.

किस्वा में 53 सोने की कढ़ाई वाले टुकड़े लगे हैं. इनमें बेल्ट क्षेत्र में 16, बेल्ट के नीचे हिस्से में सात, कोने में चार टुकड़े , 17 अन्य, दरवाजे के पर्दे के तौर पर पांच, अल-रुकन अल-यमानी के लिए एक टुकड़ा और ब्लैक स्टोन के लिए दो टुकड़े शामिल हं

काबा पर नए किस्वा की स्थापना एक जटिल प्रक्रिया है जिसे पूरा करने के लिए 200 कुशल तकनीशियन और कारीगरों को घंटों मेहनत करनी पड़ती है. इसमें कॉम्प्लेक्स के संचालन कर्मचारियों के 159 कुशल कारीगर भी शामिल है. इनके जिम्मे ही पवित्र काबा के किस्वा के लिए 56 सोने की कढ़ाई वाले टुकड़े बनाने की जिम्मेदारी होती है. एक सोने की कढ़ाई वाला टुकड़ा तैयार करने में उन्हें 60 से 120 दिन लगते हैं.

किस्वा के निर्माण में 120 किलोग्राम सोना, 100 किलोग्राम चांदी और 1,000 किलोग्राम रेशम लगता है. किस्वा उत्पादन के प्रभारी के अनुसार, एक टुकड़े के रूप में, किस्वा का वजन 1,350 किलोग्राम है. इसकी ऊंचाई 14 मीटर है.इसमें चार अलग-अलग पक्ष और एक दरवाजे का पर्दा शामिल है.गिलाफ को बाहर से काले धागों से बुने गए कैलिग्राफी से सजाया जाता है.

किस्वा को स्थापित करने के लिए चारों तरफ से अलग-अलग काबा के शीर्ष पर उठाना पड़ता है. सभी किनारों को ठीक करने के बाद, कोनों को आवरण के ऊपर से नीचे तक सिल दिया जाता है. ऐसा करने के बाद, पर्दा लगाया जाता है. इसे लगाने में समय और कौशल की आवश्यकता होती है. काले कपड़े में एक छेद बनाया जाता है जो पर्दे के आकार का होता है. यह आवरण के अंत तक लगभग 3.33 मीटर चैड़ा और 6.35 मीटर लंबा होता है.

कपड़े के नीचे से पर्दे को ठीक करने के लिए काले कपड़े में तीन छेद किए जाते हैं. अंत में, किनारों को आवरण पर काले कपड़े में सिलकर ठीक किया जाता है.हज यात्रा से लगभग तीन सप्ताह पहले 22 मई को, किस्वा के निचले हिस्से को ऊपर उठा दिया गया था. हज यात्रियों द्वारा काबा का तवाफ करते समय किस्वा को गंदा और क्षतिग्रस्त होने से बचाने के लिए हर साल ऐसा किया जाता है.

पहले हज के मौसम में किस्वा को बदला जाता था. खास तौर पर धुल हिज्जा 9 की सुबह जब हज यात्री अराफात की पहाड़ी की ओर जाते थे, ताकि अगली सुबह उनके स्वागत की तैयारी की जा सके.मगर इस पुरानी परंपरा को बदल दिया गया. दो पवित्र मस्जिदों के जनरल प्रेसीडेंसी ने परंपरा में बदलाव कर दिया ताकि वार्षिक कार्यक्रम मुहर्रम 1 की पूर्व संध्या पर आयोजित किया जा सके. यह हिजरी कैलेंडर का पहला दिन होता है.

दो पवित्र मस्जिदों के प्रेसीडेंसी के अध्यक्ष शेख अब्दुलरहमान अल-सुदैस ने कहा कि यह बदलाव शाही फैसले के आधार पर किया गया है.

इस बुधवार को किंग सलमान की ओर से, मक्का के गवर्नर प्रिंस खालिद अल-फैसल ने काबा के वरिष्ठ कार्यवाहक सालेह बिन जैन अल-अबिदीन अल-शैबी को काबा किस्वा (काला कपड़ा) सौंपा था.बताया गया कि नौवें हिजरी वर्ष में मक्का पर विजय के बाद, पैगंबर ने अपनी विदाई हज यात्रा के दौरान काबा को यमनी कपड़ों से ढक दिया था.

पैगंबर मोहम्मद ने किस रंग के कपड़े से ढका था खाना-ए-काबापैगंबर मुहम्मद ने इसे सफेद और लाल धारीदार यमनी कपड़े से ढका था. बाद में इसे अबू बकर अल-सिद्दीक, उमर इब्न अल-खत्ताब और उथमन इब्न अफ्फान ने सफेद रंग के कपड़े से ढका. इब्न अल-जुबैर ने इसे लाल ब्रोकेड से ढका था.

अब्बासिद काल में इसे एक बार सफेद और एक बार लाल रंग से ढका गया था, जबकि सेल्जुक सुल्तान ने इसे पीले ब्रोकेड से ढका था. अब्बासिद खलीफा अल-नासिर ने किस्वा का रंग बदलकर हरा और बाद में काला ब्रोकेड कर दिया. उसके बाद से अब तक किस्वा का रंग काला ही है.

मक्का इतिहास केंद्र के निदेशक डॉ. फवाज अल-दहास ने बताया, “काबा को एक बार सफेद, एक बार लाल और एक बार काले रंग से ढका गया था. हर युग में रंग का चुनाव वित्तीय साधनों पर आधारित था.”कुबाती कपड़ा मिस्र से लाया गया था, जो काबा को ढकने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले सबसे अच्छे कपड़ों में से एक था. यमनी किस्वा भी एक बेहतरीन कपड़ा है. उस समय यह सबसे मशहूर कपड़ा था.

समय के साथ रंग क्यों बदलते हैं, इस पर अल-दहास ने कहा कि सफेद सबसे चमकीला रंग है, पर यह टिकाऊ नहीं है. हज यात्रियों के छूने से यह अक्सर फट जाता था और गंदा व अशुद्ध हो जाता था. यह व्यावहारिक या लंबे समय तक चलने वाला रंग नहीं है, इसलिए इसे काले और सफेद ब्रोकेड से बदल दिया गया.

अल-दहास ने कहा, “अलग-अलग वित्तीय साधन भी काबा के किस्वा के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले कपड़े के प्रकार को नियंत्रित करते हैं.”उन्होंने कहा कि मनुष्य ने किस्वा को जिस तरह से देखा, वह उसके बाद विकसित हुआ और इसे लाल ब्रोकेड और कुबाती मिस्र के कपड़े से बदल दिया गया.

उन्होंने कहा, पहले जब भी कपड़ा उपलब्ध होता, समय-समय पर किस्वा बदल दिया जाता था. रशीदुन खलीफा, उमय्यद और अब्बासिड्स के युगों में ऐसा ही हुआ है.उमराह के मौसम की निरंतरता के साथ, अल-दहास ने कहा कि किस्वा को काबा के बीच में उठाया गया है ताकि इसे संरक्षित किया जा सके और लोगों को इसे छूने से रोका जा सके.

इतिहास की किताबों में पूर्व-इस्लामी समय में काबा को ढकने वाले पहले व्यक्ति, यमन के राजा तुब्बा अल-हुमैरी का जिक्र है. वे उल्लेख करते हैं कि उन्होंने मक्का की यात्रा करने और आज्ञाकारी रूप से प्रवेश करने के बाद इस्लाम-पूर्व काल में काबा को ढक दिया था.

काबा के इतिहास विशेषज्ञ ने कुछ खतों में उल्लेख किया है कि अल-हुमैरी ने काबा को खसफ नामक एक मोटे कपड़े से और बाद में माफिर से ढक दिया, जिसका नाम मूल रूप से यमन के एक प्राचीन शहर के नाम पर रखा गया था.फिर उन्होंने इसे मिलआ से ढक दिया, जो नरम, पतला कपड़ा होता था. उसके बाद, उन्होंने काबा को वसेल से ढक दिया, जो एक लाल धारीदार यमनी कपड़ा है.

अल-हुमैरी के उत्तराधिकारियों ने इस्लाम-पूर्व काल में कई अन्य लोगों के साथ चमड़े और कुबाती गिलाफों का इस्तेमाल किया.कुछ अन्य विवरण में बताया गया है कि उस समय किस्वा परतदार होता था.